नई दिल्ली: चुनाव आयोग द्वारा केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में डिलिमिटेशन यानी परिसीमन अभ्यास किया जाएगा। आपको बता दें कि किसी संसदीय या विधानसभा क्षेत्र की सीमाएं निर्धारित करने को परिसीमन कहते हैं। केंद्रिय शासित प्रदेश का दर्जा मिलने के बाद अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सीटें 107 से बढ़कर 114 हो गईं। एससी/एसटी के लिए आरक्षण शामिल किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर अब पुडुचेरी मॉडल का पालन करेगा। पुडुचेरी पर लागू होने वाले अनुच्छेद 239ए अब केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर क्षेत्र पर भी लागू होंगे।
परिसीमन क्या है?
किसी संसदीय या विधानसभा क्षेत्र की सीमाएं निर्धारित करने को परिसीमन कहते हैं। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए कुछ वर्षों में की जाती है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर है या नहीं। इसलिए, इसे हर जनगणना के बाद प्रयोग में लाया जाता है। प्रत्येक जनगणना के बाद, संसद संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत परिसीमन अधिनियम लागू करती है। इसके बाद, परिसीमन आयोग के रूप में जाने वाला एक निकाय गठित किया जाता है, जो निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं के सीमांकन की प्रक्रिया को अंजाम देता है।
इस आयोग का आदेश मानना कानूनी रूप से अनिवार्य है और कानून की किसी भी अदालत के जांच के अधीन नहीं है। वास्तव में, यहां तक कि संसद भी आयोग द्वारा जारी आदेश में संशोधन का सुझाव नहीं दे सकती है। आयोग में एक अध्यक्ष होता है। सर्वोच्च न्यायालय का एक सेवानिवृत्त या वर्तमान न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त या दो चुनाव आयुक्तों में से कोई भी, और उस राज्य का चुनाव आयुक्त जहां ये प्रक्रिया अपनानी हो। इसके अलावा, राज्य के पांच सांसदों और पांच विधायकों को आयोग के सहयोगी सदस्यों के रूप में चुना जाता है।
चूंकि आयोग एक अस्थायी बॉडी है जिसका कोई खुद का स्थाई कर्मचारी नहीं है, इसलिए इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए उसे चुनाव आयोग के कर्मचारियों पर निर्भर होना पड़ता है। प्रत्येक जिले, तहसील और ग्राम पंचायत के लिए जनगणना के आंकड़े एकत्र किए जाते हैं, और नई सीमाओं का सीमांकन किया जाता है। इस अभ्यास को पूरे देश में संपन्न होने में पांच साल तक लग सकते हैं।