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दिल्ली: जीबी रोड की सेक्सवर्कर्स नई जिंदगी की ओर, कोरोना के चलते बना रही मास्क

दिल्ली के जीबी रोड की कई सेक्स वर्कर्स ऐसे भी हैं जो कि काम न होने की वजह से अपने अपने घर वापस चली गईं हैं। दूसरी ओर कुछ सेक्सवर्क्स ऐसी भी हैं जो कि एनजीओ में जाकर मास्क बनाना सीख रही हैं।

Reported by: IANS
Published on: June 27, 2020 19:37 IST
दिल्ली: जीबी रोड की...- India TV Hindi
Image Source : REPRESENTATIONAL IMAGE दिल्ली: जीबी रोड की सेक्सवर्कर्स नई जिंदगी की ओर, कोरोना के चलते बना रही मास्क

नई दिल्ली: दिल्ली के जीबी रोड की गिनती भारत के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया में होती है। ये अजमेरी गेट से लाहौरी गेट तक फैला हुआ है यानी कि करीबन एक किलोमीटर के दायरे में है। जर्जर भवनों और दुकानों के ऊपर कोठों में भारी संख्या में सेक्सवर्कर्स रहती हैं। लॉकडाउन और कोरोना महामारी के दौरान यहां आने वाले ग्राहकों की संख्या में भारी गिरावट आई है। कई सेक्स वर्कर्स ऐसे भी हैं जो कि काम न होने की वजह से अपने अपने घर वापस चली गईं हैं। दूसरी ओर कुछ सेक्सवर्क्‍स ऐसी भी हैं जो कि एनजीओ में जाकर मास्क बनाना सीख रही हैं।

कटकथा एनजीओ की एसोसिएट डायरेक्टर गीतांजलि ने बताया, "हमारे एनजीओ में जीबी रोड से 8 महिलाएं मास्क बनाने आ रहीं है। अभी हम उन्हें ट्रेनिंग दे रहे हैं, ताकि भविष्य में वो बाकी महिलाओं को मास्क बनाना सिखा सकें। जीबी रोड में मौजूद अन्य महिलाओं की गुजारिश है कि उनके कोठे में ही मास्क बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाए। इसके लिए हम कोशिश कर रहे है लेकिन इसमें अभी समय लगेगा। इस वक्त 750 महिलाएं जीबी रोड पर मौजूद हैं।"

उन्होंने कहा, "मास्क की ट्रेनिंग का काम हमने 15 दिन पहले ही शुरू किया है। हमारा स्कूल भी चौथी मंजिल पर है, हम कोशिश कर रहे हैं कि नीचे शिफ्ट हो जाएं। जिसके लिए मैं डीएम से भी बात कर रही हूं। इससे अन्य महिलाएं भी आराम से आ सकेंगी। भरोसा कायम होने में कई साल लग गये, इसलिए काफी समय लगा इन्हें बाहर निकलने में।"

जीबी रोड पर 22 बिल्डिंग है। इन सभी बिल्डिंग में कुल 84 कोठें है और हर कोठे का एक नम्बर होता है। ये सभी कोठे दूसरी और तीसरी मंजिल पर बसे हुएं हैं। हर कोठे में 10 से 15 सेक्सवर्कर्स हैं। कुल 750 सेक्सवर्कर्स है। आईएएनएस ने कोठे नम्बर 44, 40 और 51 में रह रहीं सेक्सवर्कर्स से बात की।

संगीता (बदला हुआ नाम) ने बताया, "लॉकडाउन की वजह से मैं मास्क बनाना सीख रही हूं। मैं यहां से रोजाना जाती हूं और मास्क कैसे बनाते हैं, सीखती हूं।" सरस्वती (नाम बदला हुआ) ने बताया, "हमारा ये रोजगार है। हम यही काम करते है और यही बंद हो गया। अब हम क्या करेंगे ? मेरे 3 बच्चे हैं, उनका खर्चा कैसे चलेगा? मैं यहां 15 साल से हूं। कोरोना से बहुत डर लगता है। कोई ग्राहक आता भी है तो हम मना कर देते हैं। अब कोठे में सब सेनिटाइजर और मास्क लगाकर रहते हैं।"

कलकत्ता की रहने वाली अनिता (बदला हुआ नाम) 20-25 सालों से यहां है। उन्होंने बताया, "अभी तो सब कुछ बंद है। हमें सूखा राशन मिलता है अभी उसी से पेट भर रहे हैं, लेकिन उतना काफी नहीं है। हमारे पास पैसा नहीं है। यहां जान हथेली पर लेकर बैठे हैं। मेरे 2 बच्चे हैं जो कलकत्ता में पढ़ाई कर रहे हैं। अगर इसी तरह बंद रहा तो मेरे बच्चों का और मेरा भविष्य मुश्किल नजर आ रहा है।"

इस इलाके के पुलिस अफसर ने बताया, "यहां अभी फिलहाल सब कुछ बंद पड़ा हुआ और किसी भी तरह की गतिविधि की अनुमती नहीं है। इन्हें भी अपनी जान का खतरा है।"

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