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सुविधाओं का अभाव: ‘रावण’ और पुतले बनाने वाले कलाकार दोनों पर मंदी की मार

विजयादशमी के सबसे बड़े दिन के लिए रावण के पुतले जोर-शोर से तैयार किये जा रहे हैं, जिन्हें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कोने-कोने में भेजा जायेगा, लेकिन प्रशासनिक अव्यवस्था और मंदी की मार के चलते इस बार के दशहरे में इन पुतलों को बनाने वालों के लिए त्योहार का रंग कुछ फीका सा है।

Reported by: PTI
Published : October 06, 2019 17:29 IST
An artist prepares an effigy of the demon King Ravana ahead...
An artist prepares an effigy of the demon King Ravana ahead of 'Dussehra' festival celebrations

नई दिल्ली: विजयादशमी के सबसे बड़े दिन के लिए रावण के पुतले जोर-शोर से तैयार किये जा रहे हैं, जिन्हें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कोने-कोने में भेजा जायेगा, लेकिन प्रशासनिक अव्यवस्था और मंदी की मार के चलते इस बार के दशहरे में इन पुतलों को बनाने वालों के लिए त्योहार का रंग कुछ फीका सा है। दिल्ली की भीड़-भाड़ वाली मुख्य सड़क से दूर, मंद रोशनी में पश्चिमी दिल्ली के सुभाष नगर में पुतला बाजार सज चुका है। 2018 से पहले यह बाजार टैगोर गार्डन मेट्रो स्टेशन के पास तितारपुर गांव में लगा करता था, जिसे अब सुभाष नगर स्थानांतरित कर दिया गया है।

पुतला निर्माण से जुड़े कलाकारों का कहना है कि कोई सुविधा उपलब्ध नहीं होने होने के कारण कारोबार और जीवन दोनों पर मार पड़ी है। दिल्ली के तितारपुर पुतला बाजार को एशिया में अपनी तरह के सबसे बड़े बाजार में से एक माना जाता था, जहां दशहरा से कुछ दिन पहले से ही इसके व्यस्त बाजार में बड़े-बड़े सिर वाले रावण के रंग-बिरंगे पुतले सड़क पर एक कतार में खड़े दिखाई देने लगते थे। हालांकि अब पुतला बनाने वाले कलाकारों को जिन दो जगहों पर भेजा गया है वहां सुविधाओं के नाम पर सिर्फ बड़ी-बड़ी घास के मैदान हैं। कलाकारों ने बताया कि वहां न पानी है, न बिजली है और न शौचालय की सुविधा है। ये कलाकार अपनी साल भर की बेहद कम मेहनताना वाली नौकरियों को छोड़कर त्योहारी मौसम में कुछ अतिरिक्त धन कमाने की उम्मीद से पुतले बनाते और बेचते हैं।

बहरहाल, इन सबके बावजूद ये कलाकार लंबे और दस सिर वाले शक्तिशाली रावण तथा उसके भाइयों कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतलों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं जबकि उन्हें पर्याप्त आय होने की उम्मीद कम है। ये पुतले पांच फीट से करीब 50 फीट के होते हैं और इनकी कीमत प्रति फीट करीब 500 रुपये है जो पिछले सालों के मुकाबले कम है। ये कलाकार मुख्यत: राजस्थान, हरियाणा और बिहार से दिहाड़ी मजदूर होते हैं।

ऐसे ही एक कारोबारी महेंद्र रावणवाला ने बताया, ‘‘जब हम यहां आये तो अधिकारियों ने हमें शौचालय, पानी और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने का वादा किया था। अब हम ऐसी जगह पुतले बना रहे हैं जो जंगल से भी बदतर है।’’ कमाई तो दूर, हमें पीने के पानी के लिये हर दिन 300-400 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। रावणवाला ने बताया, ‘‘यहां जो थोड़ी बहुत रोशनी दिख रही है उसकी व्यवस्था भी हमने ही की है और इसके लिए हमने 2,000 रुपये खर्च किए।’’ रावणवाला पिछले 45 साल से पुतले बना रहे हैं। बाजार के लिये आवश्यक सुविधाओं की कमी के बारे में पूछे जाने पर दक्षिण दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) के प्रवक्ता ने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

दो साल पहले एसडीएमसी ने कहा था कि कलाकार सार्वजनिक जगह पर अतिक्रमण कर रहे हैं और आरोप लगाया था कि इन पुतलों के कारण इलाके में यातायात प्रभावित होता है। दिल्ली उच्च न्यायालय के दखल के बाद एसडीएमसी ने डेढ़ रुपये प्रति वर्गफुट प्रति महीने की दर पर कलाकारों के पुतला बनाने के लिये पिछले साल सुभाष नगर में दो जगहों की पहचान की थी। नई जगह पर बाजार का यह दूसरा साल है, जहां पुतलों के लिये ऑर्डर न सिर्फ दिल्ली-एनसीआर से बल्कि उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और यहां तक कि विदेशों से आता है। एक और कारोबारी दासे रावणवाला के अनुसार कारोबार इस वजह से भी प्रभावित हुआ है क्योंकि उनके कई नियमित ग्राहक नई जगह से अवगत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कई ऑडर इसलिए भी रद्द हो गये क्योंकि रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) को पुतला दहन के लिए अनुमति नहीं मिल सकी।

51 वर्षीय दासे ने कहा, ‘‘यहां ऐसा कोई बोर्ड भी नहीं लगाया गया हैं जिससे यह पता चल सके कि आगे रावण मंडी है या ऐसा कुछ। प्रशासन ने इतना भी नहीं किया है। हमारा काफी कारोबार खत्म हो गया है।’’ दासे और उनके साथ काम करने वाले उनके 12 सहयोगियों ने कहा कि वे अन्याय महसूस कर रहे हैं। कई का आरोप है कि अधिकतर पुतला बनाने वाले कलाकारों को वहां से जाने के लिये कह दिया गया लेकिन तितारपुर गांव में अब भी कुछ लोग पुतला बना रहे हैं और वह भी प्रशासन के संरक्षण में। उन्होंने कहा, ‘‘वो सब दबंग हैं।

उन्होंने हमसे पहले कहा था कि ‘उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, हमें नहीं छुआ जाएगा’। और देखिए ये कितना सच निकला।’’ दासे ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय और एसडीएमसी का आदेश गरीबों के लिए है न कि उन जैसे दबंगों के लिए।’’ एसडीएमसी के प्रवक्ता ने कहा कि उन्हें ऐसे कलाकारों के बारे में जानकारी नहीं है जो अब भी तितारपुर गांव में पुतले बेच रहे हैं। उन्होंने कहा कि निगम जल्द जरूरी कार्रवाई करेगा।

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