नई दिल्ली: दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद, नोएडा और गाजियाबाद में हर साल 5,900 टन मेडिकल कचरा जमा होता है। यह आंकड़ा उद्योग संगठन एसोचैम के एक सर्वेक्षण में उजागर हुआ है। एसोचैम के सर्वेक्षण में बताया गया है कि ज्यादातर मेडिकल कचरे असंसाधित होते हैं और महानगर के कचरे में फेंक दिए जाते हैं। इससे स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा होता है।
सर्वेक्षण के मुताबिक, सिर्फ दिल्ली और एनसीआर में तकरीबन 5,900 टन बायो मेडिकल कचरा सालाना पैदा होता है जिसमें दिल्ला का हिस्सा करीब 2,200 टन है। एसोचैम के सर्वेक्षण के अनुसार, एनसीआर के अंतर्गत नोएडा और ग्रेटर नोएडा में 1,200 टन बायो मेडिकल कचरा सालाना निकलता है और गुरुगाम में 1,100 टन जबकि गाजियाबाद में 800 टन मेडिकल कचरा पैदा होता है। फरीदाबाद में सालाना 600 टन मेडिकल कचरा पैदा होता है।
एसोचैम के महासचिव डी. एस. रावत ने कहा, "अस्पताल के कचरे का उचित ढंग से निपटान नहीं होने से लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। राज्य सरकार की ओर से तय नीतिगत दिशानिर्देशों में कचरे को निपटान होना चाहिए।"उन्होंने कहा, "सर्वेक्षण के नतीजों के अनुसार, पिछले दस साल से राजधानी में करीब 200 टन मेडिकल कचरा रोज पैदा हो रहा है।"
सर्वेक्षण में कहा गया है कि करीब 65 फीसदी कचरा खतरनाक नहीं है। लेकिन सामान्य कचरे में खतरनाक खचरों के मिल जाने से सब दूषित हो जाता है इन चीजों के संपर्क मे आने से संक्रामक रोग का खतरा पैदा होता है। रावत ने कहा, "असंसाधित कचरों से हमेशा जनस्वास्थ्य को खतरा पैदा होता है। इससे एड्स, हेपेटाइटिस बी व सी, आंतों का संक्रमण, सांस रोग, रक्त संक्रमण, चर्म रोग का खतरा पैदा हो सकता है।"