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दिल्ली हाई कोर्ट ने ‘तलाक-उल-सुन्नत’ से जुड़ी याचिका पर केंद्र से मांगा जवाब

जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ ने समीक्षा याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: October 08, 2021 19:49 IST
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Image Source : PTI REPRESENTATIONAL दिल्ली हाई कोर्ट ने उसके आदेश की समीक्षा का अनुरोध करने वाली एक याचिका पर शुक्रवार को केंद्र का रुख जानना चाहा।

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को बिना किसी कारण और नोटिस के अपनी पत्नी को तलाक (तलाक-उल-सुन्नत) देने के एक मुस्लिम पति के ‘पूर्ण विवेकाधिकार’ को दी गई चुनौती को खारिज करने वाले अपने आदेश की समीक्षा की अपील करने वाली याचिका पर केंद्र का जवाब मांगा। दिल्ली हाई कोर्ट ने उसके आदेश की समीक्षा का अनुरोध करने वाली एक याचिका पर शुक्रवार को केंद्र का रुख जानना चाहा जिसमें पत्नी को बिना किसी कारण के और बिना नोटिस दिये तलाक (तलाक-उल-सुन्नत) देने के एक मुस्लिम व्यक्ति के ‘कल्पित निरंकुश विवेकाधिकार’ को दी गई चुनौती को खारिज कर दिया गया था।

‘मामले की अगली सुनवाई 12 जनवरी को’

जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ ने समीक्षा याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया। इस याचिका में अदालत से 23 सितंबर के उसके आदेश की ‘सटीकता’ का परीक्षण करने की अपील की गई है। मामले की अगली सुनवाई 12 जनवरी को होगी। ‘तलाक-उन-सुन्नत’ को दी गई चुनौती को खारिज करते हुए पीठ ने कहा था, ‘हमें इस याचिका में कोई दम नहीं नजर आता है क्योंकि संसद पहले ही इस संबंध में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम बना चुकी है। यह याचिका उस हिसाब से खारिज की जाती है।’

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में लगाया है ये आरोप
पीठ ने कहा था कि याचिकाकर्ता महिला की आशंका है कि उसका पति तलाक-ए-सुन्नत को अपनाते हुए उसे तलाक दे देगा। उसने कहा था, ‘हमारी राय में यह याचिका मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम के बनने और खासकर उसकी धारा 3 के आलोक में पूरी तरह गलत धारणा पर आधारित है।’ याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि यह प्रथा ‘मनमानी, शरियत विरूद्ध, असंवैधानिक, भेदभावकारी एवं बर्बरतापूर्ण है’ तथा उसने अपील की कि किसी भी वक्त पत्नी को तलाक देने के कल्पित निरंकुश विवेकाधिकार को स्वेच्छाचारिता घोषित किया जाए।

28 वर्षीय शादीशुदा मुस्लिम महिला ने दायर की है याचिका
यह याचिका 28 वर्षीय एक शादीशुदा मुस्लिम महिला ने दायर की है जिसने कहा है कि उसके पति ने इस साल 8 अगस्त को 3 तलाक बोलकर उसे छोड़ दिया और उसके बाद उसने वैवाहिक अधिकार की बहाली के लिए अपने पति को कानूनी नोटिस भिजवाया। याचिका में कहा गया है कि कानूनी नोटिस के जवाब में वह व्यक्ति 3 तलाक बोलने की बात से ही पलट गया और उसने उससे (पत्नी से) उसे 15 दिनों के अंदर तलाक देने को कहा। महिला ने कहा कि मुस्लिम पति द्वारा अपनी पत्नी को अकारण तलाक देने के लिए कथित रूप से इस प्रकार विवेकाधिकार का इस्तेमाल करना प्रक्रिया का दुरूपयोग करना है। (भाषा)

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