नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इंटरनेट से आपत्तिजनक सामग्रियों को हटाने से संबंधित मामलों पर विचार करने के दौरान अदालतों द्वारा पालन किये जाने वाले दिशा-निर्देश मंगलवार को निर्धारित कर दिये, ताकि ऐसी सामग्रियों तक पहुंच को यथाशीघ्र रोका जा सके और कोई अन्य इन्हें दोबारा पोस्ट नहीं करे। ये दिशा-निर्देश न्यायमूर्ति ए जे भंभानी ने एक महिला की तस्वीर को कुछ शरारती तत्वों द्वारा वेबसाइट पर अपलोड किये जाने के मामले पर सुनवाई करते हुए निर्धारित किये।
अदालत के आदेश के बावजूद सामग्री को वर्ल्ड वाइड वेब से पूरी तरह नहीं हटाया जा सका था और दोषी पक्ष इसे फिर से पोस्ट करता रहा और दूसरी साइटों पर रिडायरेक्ट करता रहा। अदालत ने पुलिस को इस बात को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि आपत्तिजनक सामग्री हटाई जाए और गूगल, याहू और बिंग जैसे सर्च इंजनों को अपने खोज परिणामों से इसे हटाने को कहा।
निर्देशों के अनुसार, जब ऐसा कोई मामला अदालत के सामने आता है और वह संतुष्ट हो जाता है कि अंतरिम चरण में तत्काल निवारण की आवश्यकता है, तो वह जिस वेबसाइट पर आपत्तिजनक सामग्री है, उसे सामग्री हटाने के लिए तत्काल और न्यायिक आदेश प्राप्त होने के अधिकतम 24 घंटे के भीतर उन्हें हटाने के लिये निर्देश जारी कर सकता है।
निर्देश में कहा गया है, "वेबसाइट या ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म जिस पर आपत्तिजनक सामग्री है, उसे उससे संबंधित सभी जानकारी और संबंधित रिकॉर्ड को संरक्षित करने के लिए निर्देश जारी किया जाना चाहिये, ताकि जांच में इस्तेमाल के लिये आपत्तिजनक सामग्री के संबंध में साक्ष्य कम से कम 180 दिन के लिये या उससे अधिक अवधि के लिए प्रभावित नहीं हो।’’
इसमें कहा गया है कि सर्च इंजनों को अपने खोज परिणामों में 'डी-इंडेक्सिंग' और 'डीरेफ्रेंसिंग' द्वारा आपत्तिजनक सामग्री तक पहुंच को रोकने के लिये निर्देश जारी किया जाना चाहिये और उन्हें प्राप्त होने के 24 घंटे के भीतर इन निर्देशों का पालन करना चाहिये।