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हाशिमपुरा नरसंहार: दिल्‍ली हाईकोर्ट ने 31 साल पुराने मामले में 16 पुलिसकर्मियों को दी उम्र कैद

दिल्ली हाईकोर्ट ने 31 साल पुराने हाशिमपुरा नरसंहार मामले में उत्तर प्रदेश की प्रोवेंशियल ऑर्म्स कॉन्स्टेबुलरी(पीएसी) के 16 जवानों को उम्र कैद की सजा सुनाई है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated : October 31, 2018 13:40 IST
Delhi High Court
Delhi High Court

दिल्‍ली हाईकोर्ट ने 31 साल पुराने हाशिमपुरा नरसंहार मामले में उत्‍तर प्रदेश की प्रोवेंशियल ऑर्म्‍स कॉन्‍स्‍टेबुलरी(पीएसी) के 16 जवानों को उम्र कैद की सजा सुनाई है। यह मामला 1987 में घटा था। इससे पहले ट्रायल कोर्ट ने इन सभी पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया था। लेकिन जस्टिस एस मुरलीधर और विनोद गोयल की खंडपीठ ने इस फैसले को पलटते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। इस मामले में हाइकोर्ट ने आईपीसी की विभिन्‍न धाराओं के तहत हत्‍या, अपहरण, हत्‍या की साजिश रचने और सबूतों को नष्‍ट करने के आरोपों को सही पाया। 

अपना फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि यह एक लक्षित हत्‍याएं थीं। इस हत्‍याकांड में अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के लोग मारे गए थे। हाइकोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा कि पीडि़त परिवारों को न्‍याय पाने के लिए 31 साल इंतजार करना पड़ा। इस मामले में दोषी ठहराए गए सभी पुलिसकर्मी अब रिटायर हो चुके हैं। 

बता दें कि 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा में हुए इस नरसंहार में 42 लोगों की मौत हुई थी। इस मामले में 19 पुलिस कर्मियों का नाम सामने आया था, जिसमें से 2006 में 17 पर मामला दर्ज किया गया था। 

निचली अदालत द्वारा हत्या तथा अन्य अपराधों के आरोपी 16 पूर्व पुलिसकर्मियों को बरी करने के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। जिसके बाद उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया। उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा जनसंहार में बचे जुल्फिकार नासिर सहित निजी पक्षों की अपीलों पर छह सितंबर को आदेश सुरक्षित रख लिया था। 

अदालत ने भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की उस याचिका पर भी फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसमें उन्होंने इस मामले में तत्कालीन केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री पी चिदंबरम की कथित भूमिका का पता लगाने के लिए जांच आगे बढ़ाने की मांग की थी। अदालत ने 17 फरवरी 2016 को स्वामी की याचिका को इस मामले की अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया था। 

इससे पहले 21 मार्च 2015 को निचली अदालत ने पीएसी के 16 पूर्व जवानों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। अदालत ने कहा था कि सबूतों के अभाव में उनकी पहचान निर्धारित नहीं की जा सकती। इसके बाद नरसंहार के प्रभावित परिवारों की याचिका पर उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर सितंबर 2002 में मामले को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया था। 

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