नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में भाजपा शासित नगर निगमों की निष्क्रियता के कारण जगह-जगह लगते कूड़े के ढेरों की अनदेखी पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उपराज्यपाल अनिल बैजल को फटकार लगाई और कहा कि क्यों न आपके राजनिवास के सामने कूड़ा फेंका जाए? ठोस अपशिष्ट को घरेलू स्तर पर ही अलग करने का सुझाव देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा करने से इनकार करने वालों से निपटने के लिए दंड का प्रावधान होना चाहिए। मानव निवास के पास कचरा फेंकना कचरा आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 133 के तहत एक अपराध है।
सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल से कहा कि "सिर्फ दक्षिण दिल्ली से 1800 टन कूड़ा रोज इकट्ठा हो रहा है। आपके वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट दिसंबर तक शुरू होंगे। आपको अंदाजा है कि तब तक कितना और कचरा इकट्ठा हो जाएगा? सात लाख टन से भी ज्यादा!" शीर्ष अदालत ने कहा, "दिल्ली में आपातकाल जैसी स्थिति है, लेकिन आपका रिएक्शन वैसा नहीं है। आपको उसका आभास भी नहीं है।"
न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा, "कूड़े को क्यों न राजनिवास के सामने फेंका जाए? आप किसी एक के घर से कूड़ा हटाकर किसी दूसरे के घर के सामने नहीं फेंक सकते। आपको विकल्प तलाशना होगा।" पीठ ने कहा, "सोनिया विहार के लोगों का विरोध जायज है, क्योंकि वे अंडर प्रिविलेज्ड हैं तो आप उनके घरों के पास कूड़े का पहाड़ खड़ा करना चाहते हैं? गंगाराम अस्पताल की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में आधी आबादी फेफड़े के कैंसर के खतरे की चपेट में है।"
उपराज्यपाल की तरफ से अदालत में कहा गया कि प्लांट को लगाने में समय लगेगा। रातोंरात प्लांट नहीं लगाया जा सकता। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि लोगों को यह अधिकार है कि उनके घर के सामने कूड़ा न फेंका जाए।
उपराज्यपाल की तरफ से पेश हुए वकील का कहना था कि कूड़ा कहीं तो फेंका जाएगा, उसके लिए उपाय किए जा रहे हैं। इसपर अदालत ने कहा कि हमें भविष्य को देखना होगा। घरों से निकलने वाले कूड़े को अलग-अलग हिस्सों में रखा जाए। जैसे कौन सा बायो है कौन सा नहीं। ऐसे ही इसको तीन अलग-अलग हिस्सों में रखना चाहिए और सरकार को घरों से ही इसे उठाना चाहिए।