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कोर्ट ने IMA अध्यक्ष से कहा- किसी धर्म का प्रचार न करें, चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति पर ध्यान दें

दिल्ली की एक अदालत ने इंडियन मेडिकल असोसिएशन (IMA) के अध्यक्ष जे. ए. जयालाल को संगठन के मंच का प्रयोग किसी भी धर्म के प्रचार के लिए नहीं करने का निर्देश दिया है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: June 04, 2021 19:32 IST
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Image Source : PIXABAY REPRESENTATIONAL कोर्ट ने IMA के अध्यक्ष जे. ए. जयालाल को संगठन के मंच का प्रयोग किसी भी धर्म के प्रचार के लिए नहीं करने का निर्देश दिया है।

नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने इंडियन मेडिकल असोसिएशन (IMA) के अध्यक्ष जे. ए. जयालाल को संगठन के मंच का प्रयोग किसी भी धर्म के प्रचार के लिए नहीं करने का निर्देश दिया है। अदालत ने ‘मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना’ कहते हुए उन्हें आगाह किया कि जिम्मेदार पद की अध्यक्षता करने वाले किसी व्यक्ति से हल्की टिप्पणी की उम्मीद नहीं की जा सकती। अतिरिक्त जिला न्यायाधीश अजय गोयल ने जयालाल के खिलाफ दायर वाद में आदेश पारित किया। 

IMA अध्यक्ष पर ईसाई धर्म के प्रचार का आरोप

जयालाल पर कोविड-19 रोगियों के उपचार में आयुर्वेद पर एलोपैथिक दवाओं की श्रेष्ठता साबित करने की आड़ में ईसाई धर्म का प्रचार कर हिंदू धर्म के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक अभियान शुरू करने का आरोप लगाया गया था। शिकायतकर्ता रोहित झा ने कहा कि जयालाल हिंदुओं को ईसाई धर्म अपनाने के लिए जोर देने के मकसद से IMA की ओट लेकर, अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं और देश और उसके नागरिकों को गुमराह कर रहे हैं।

'कोई आदेश देने की जरूरत नहीं है'
आईएमए के अध्यक्ष के लेखों और साक्षात्कारों का हवाला देकर, झा ने अदालत से लिखित निर्देश देकर उन्हें हिंदू धर्म या आयुर्वेद के लिए अपमानजनक सामग्री लिखने, मीडिया में बोलने या प्रकाशित करने से रोकने का अनुरोध किया है। यह गौर करते हुए कि यह मुकदमा एलोपैथी बनाम आयुर्वेद के संबंध में एक मौखिक द्वंद्व का परिणाम प्रतीत होता है, अदालत ने गुरुवार को कहा कि जयालाल द्वारा दिए गए आश्वासन कि वह ऐसी गतिविधि में शामिल नहीं होंगे, के आधार पर कोई आदेश देने की जरूरत नहीं है।

'IMA के मंच का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए'
अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने 3 जून को पारित आदेश में निर्देश दिया, ‘उन्हें किसी भी धर्म के प्रचार के लिए आईएमए के मंच का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और इसके बजाय उन्हें चिकित्सा समुदाय के कल्याण और चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति पर ध्यान देना चाहिए।’ न्यायाधीश ने उन्हें भारत के संविधान में निहित सिद्धांतों के विरोध में किसी गतिविधि में शामिल नहीं होना चाहिए और अपने पद की गरिमा बरकरार रखनी चाहिए।

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