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दिल्ली: एंबुलेंस में मरीजों, परिजनों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर बना चुनौती

अगर इस अस्पताल ने भर्ती करने से इंकार कर दिया तो एंबुलेंस के अंदर पर्याप्त ऑक्सीजन की व्यवस्था करनी होगी ताकि वह दूसरे अस्पताल में जाकर कोशिश करें। तीन अस्पताल, कई किलोमीटर का चक्कर, कई घंटे और सिर्फ एक सिलेंडर।

Written by: Bhasha
Published : June 12, 2020 19:37 IST
Ambulance
Image Source : AP Representational Image

नई दिल्ली. जीटीबी अस्पताल के पास एंबुलेंस रूकती है और सरवर अली उसमें से निकलकर अस्पताल के अंदर की तरफ भागते हैं। उन्हें उम्मीद है कि उनकी अचेत पत्नी को वहां भर्ती कर लिया जाएगा। वाहन के अंदर लगे सिलेंडर में ऑक्सीजन का स्तर काफी नीचे चला गया है और एक मिनट का विलंब भी मरीज के लिए खतरा साबित हो सकता है। मिस्कीन बेगम को पहले दो अस्पतालों ने भर्ती करने से इंकार कर दिया और अब जिंदा रहने की उनकी सारी उम्मीदें जीटीबी अस्पताल पर टिकी हुई हैं।

अगर इस अस्पताल ने भर्ती करने से इंकार कर दिया तो एंबुलेंस के अंदर पर्याप्त ऑक्सीजन की व्यवस्था करनी होगी ताकि वह दूसरे अस्पताल में जाकर कोशिश करें। तीन अस्पताल, कई किलोमीटर का चक्कर, कई घंटे और सिर्फ एक सिलेंडर। निराश अली को अपनी पत्नी की जिंदगी बचाने के लिए काफी कठिनाइयों से गुजरना पड़ा। किडनी और मधुमेह की बीमारी से पीड़ित मिस्कीन बेगम सुबह अचेत हो गईं और उनके 57 वर्षीय पति अस्पतालों का चक्कर लगाते रहे।

उतरपूर्व दिल्ली के खजूरी खास स्थित अपने घर से वे पहले जग प्रवेश अस्पताल गए जहां उन्हें भर्ती करने से इंकार कर दिया गया। इसके बाद वे मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान (इहबास) संस्थाान गए और वहां भी उन्हें जगह नहीं मिली। अंतत: वे सरकारी जीटीबी अस्पताल पहुंचे। पेशे से बुनकर अली ने कहा, ‘‘उन्हें ऑक्सीजन मास्क के बगैर नहीं ले जाया जा सकता।’’ मिस्कीन बेगम को अंतत: अस्पताल ने भर्ती कर लिया और अली ने राहत की सांस ली।

दिल्ली में इस तरह के रोगियों की कई कहानियां हैं जिन्हें कई अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं और एंबुलेंस में ऑक्सीजन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होना भी बड़ी चुनौती है। ऐसे मामले काफी संख्या में सामने आ रहे हैं। दिल्ली सरकार के केंद्रीकृत एंबुलेंस आघात सेवाएं (कैट्स) के पास नौ उन्नत जीवनरक्षक एंबुलेंस (एएलएस), 142 बेसिक सपोर्ट एंबुलेंस (बीएलएस) और 109 रोगी परिवहन एंबुलेंस (पीटीए) हैं।

इसके अलावा, 154 एंबुलेंस को कोविड-19 एंबुलेंस में तब्दील किया जा रहा है ताकि संसाधनों को कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों और अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए अलग किया जा सके। एएलएस और बीएलएस एंबुलेंस में जहां दो ऑक्सीजन सिलेंडर होते हैं वहीं पीटीए में केवल एक सिलेंडर होता है, क्योंकि ये वाहन छोटे होते हैं और उनमें पर्याप्त जगह नहीं होती।

कैट्स के कार्यक्रम अधिकारी संजय त्यागी ने कहा, ‘‘कोरोना वायरस के कारण रोगियों को अलग-अलग अस्पतालों में ले जाना पड़ता है। रोगियों को भर्ती कराने में काफी समय लगता है, कभी-कभी चार घंटे लग जाते हैं। इसलिए काफी समय रोगियों को लाने- ले जाने में ही बीत जाता है।’’ निजी अस्पतालों और कई अन्य संस्थानों के अपने एंबुलेंस हैं। त्यागी ने ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी होने से इंकार किया। केवल कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के लिए ही नहीं बल्कि अन्य बीमारियों से अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

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