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दिल्ली: इन गंभीर बीमारियों के चलते पिछले 6 महीने में 433 नवजात बच्चों की मौत

राष्ट्रीय राजधानी के स्वास्थ्य क्षेत्र में तमाम दावों और कोशिशों के बावजूद बीते साल के शुरूआती 6 महीनों में ही ‘स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट’ में विभिन्न बीमारियों की वजह से 433 बच्चों की जान चली गई...

Reported by: Bhasha
Published on: February 04, 2018 13:52 IST
Representational Image | PTI Photo- India TV Hindi
Representational Image | PTI Photo

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी के स्वास्थ्य क्षेत्र में तमाम दावों और कोशिशों के बावजूद बीते साल के शुरूआती 6 महीनों में ही ‘स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट’ में विभिन्न बीमारियों की वजह से 433 बच्चों की जान चली गई। सबसे ज्यादा नवजातों की मौत, रक्त में संक्रमण, निमोनिया और मेनिनजाइटिज से हुई। एक RTI के जवाब में राज्य सरकार ने यह जानकारी दी है। दिल्ली सरकार के 16 ‘स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिटों’ (SNCU) में जनवरी 2017 से जून 2017 के बीच 8,329 नवजातों को भर्ती कराया गया था जिनमें 5,068 नवजात लड़के और 3,787 नवजात लड़कियां थीं।

दिल्ली के RTI कार्यकर्ता युसूफ नकी के सूचना का अधिकार आवेदन पर राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने बताया कि जनवरी 2017 से जून 2017 के बीच दिल्ली के 16 SNCU में 433 बच्चों की मौत हुई है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने बच्चों की मौत का कारण रक्त में संक्रमण, निमोनिया और मेनिनजाइटिज (116), सांस संबंधी बीमारी (109), पैदा होने के वक्त ऑक्सीजन की कमी (105), वक्त से पहले जन्म ( 86) मेकोनियम ऐपीरेशन सिंड्रोम (55), पैदाइशी बीमारी (36) और अन्य कारण (22) बताएं हैं। इसके अलावा 2 नवजातों की मौत की वजहों का पता नहीं है।

इंडियन मेडिकल असोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल ने बताया कि अगर बच्चे के खून में संक्रमण है और यह फेफड़ों में जाता है तो इससे निमोनिया होता है और यही संक्रमण दिमाग की बाहरी दीवारों में चला जाता है तो इससे मेनिनजाइटिज होता है। उन्होंने बताया कि पैदा होने के वक्त ऑक्सीजन की कमी से मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो जाता है, जिससे बच्चे की मृत्यु हो जाती है, जबकि मेकोनियम के तहत बच्चा पैदा होते ही कीटाणु को अपने अंदर ले लेता है। यह एक प्रकार का मेडिकल आपातकाल होता है। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे में पैदाइशी दिल की बीमारी, गुर्दे का रोग, मस्तिष्क की बीमारी होती है और अगर इन बीमारियों में बच्चे को तुरंत इलाज नहीं दिया जाता है तो उससे मौत हो सकती है। 

डॉ. अग्रवाल ने बताया कि SNCU में सांस संबंधी या गंभीर बीमारी से पीड़ित या ऐसे बच्चों को भेजा जाता है जिन्हें विशेष देखभाल की अधिक जरूरत हो। विभाग ने बताया कि दिल्ली में 2016 में शिशु मृत्यु दर 1000 बच्चों पर 18 थी। हालांकि इसी अवधि में राष्ट्रीय दर 34 रही। शिशु मृत्यु दर सबसे कम गोवा की है जहां 2016 में प्रति 1000 बच्चों पर आठ की मौत हुई थी। इसके बाद केरल में 1000 बच्चों पर 10 की मौत हुई। हालांकि वर्ष 2016 में सबसे ज्यादा शिशु मृत्यु दर मध्य प्रदेश में रही, जहां प्रत्येक 1000 बच्चों पर 47 बच्चों की मौत हुई।

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