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‘क्या राज्य में 68 फीसदी मुसलमानों को अल्पसंख्यक समझा जा सकता है?’

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने केंद्र एवं जम्मू कश्मीर सरकारों से कहा कि वे आपस में बातचीत कर विवादित मुद्दों का समाधान ढूढें। इनमें यह प्रश्न शामिल है कि क्या राज्य में 68 फीसदी मुसलमानों

Bhasha
Updated : March 28, 2017 8:54 IST
Supreme court
Supreme court

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने केंद्र एवं जम्मू कश्मीर सरकारों से कहा कि वे आपस में बातचीत कर विवादित मुद्दों का समाधान ढूढें। इनमें यह प्रश्न शामिल है कि क्या राज्य में 68 फीसदी मुसलमानों को अल्पसंख्यक समझा जा सकता है और वे इस श्रेणी के तहत लाभ पा सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे एस खेहर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस के कौल की पीठ ने कहा, यह बहुत, बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है। आप दोनों मिल-बैठकर इस विवादास्पद मुद्दे का हल ढूंढिए। न्यायालय ने उनसे चार सप्ताह के भीतर इस मुद्दे पर प्रस्ताव दाखिल करने को कहा।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह राष्ट्रीय मुद्दा है क्योंकि कुछ राज्यों में कोई खास समुदाय, जो राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों का हिस्सा है, बहुसंख्यक है। यह भी बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक श्रेणी में आने वाले सिख पंजाब में बहुसंख्यक हैं। पीठ ने कहा, हम जम्मू कश्मीर पर ध्यान दें। वर्तमान मुद्दे से निबटें। जम्मू कश्मीर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि राज्य सरकार मिल-बैठकर इस मुद्दे का समाधान ढूंढने की इच्छुक है।

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अदालत ने दोनों सरकारों की इच्छा का संज्ञान लेते हुए कहा, हम आशा करते हैं कि सुनवाई की अगली तारीख को कोई उपयोगी निर्णय सामने आएगा। इससे पहले शीर्ष अदालत ने जम्मू निवासी वकील अंकुर शर्मा की अर्जी पर केंद्र, राज्य सरकार और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को नोटिस जारी किया था। शर्मा ने आरोप लगाया था कि मुसलमान अल्पसंख्यकों को मिलने वाले लाभ उठा रहे हैं जबकि जम्मू कश्मीर में वे बहुसंख्यक हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि राज्य में धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकार अवैध और मनमाने तरीके से छीने जा रहे हैं और जनसंख्या के अपात्र वर्गों को फायदे पहुंचाए जा रहे हैं।

शर्मा ने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत लगी आपत्ति के चलते जम्मू कश्मीर में लागू नहीं किए जा सकते, ऐसे में बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों को ऐसी योजनाओं के नाम पर करोड़ों रूपए दिए जा रहे हैं, जो योजनाएं दरअसल भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए हैं। न्यायालय ने पिछले महीने एक जनहित याचिका के संबंध में अपना जवाब दायर नहीं करने पर केंद्र पर 30,000 रपए जुर्माना लगाया था। याचिका में आरोप लगाया गया था कि जम्मू कश्मीर में बहुसंख्यक मुसलमान अल्पसंख्यकों के लिए निर्धारित लाभ उठा रहे हैं। न्यायालय ने केंद्र को अपना जवाब दायर करने के लिए अंतिम अवसर देते हुए कहा था कि यह मामला बहुत महत्वपूर्ण है।

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