मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। रविवार सुबह तक मिली जानकारी के मुताबिक, मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर 129 हो गई है। श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) में 109 जबकि केजरीवाल अस्पताल में 20 बच्चों की मौत हुई है। बच्चों की मौत के बढ़ते हुए आरोपों के बीच डॉक्टरों की लापरवाही के मामले में सामने आने लगे हैं।
लापरवाह डॉक्टर
काम में लापरवाही बरतने के कारण एसकेएमसीएच अस्पताल में एक सीनीयर रेजिडेंट डॉक्टर भीमसेन कुमार को सस्पेंड किया गया है। जिसके बाद यहां स्वास्थ्य विभाग ने पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से डॉक्टर को तैनात किया गया। बताया जा रहा है कि ये बुखारा राज्य के 16 जिलों में फैल गया है। गुरुवार को जारी स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में एक जून से राज्य में एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के 626 मामले दर्ज हुए है।
क्या है चमकी बुखार?
चमकी बुखार को एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के नाम से जाना जाता है। इस बीमारी में मस्तिष्क में सूजन हो जाती है। ये सब वायरल इंफेक्शन के कारण होता है। जो कि शरीर के इम्यूनिटी सिस्टम और दिमाग के ऊतकों पर हमला करती है। इस बीमारी में तुरंत देखभाल की जरुरत पड़ती है। इसका सबसे बड़ा कारण वायरल इंफेक्शन होता है। जिससे हमारा शरीर लड़ता है। जो कि दिमाग में सूजन का कारण बन जाता है।
चमकी बुखार के लक्षण
इस बीमारी के सबसे बड़ा लक्षण होता है कि सिरदर्द के साथ बुखार आना। इसके साथ ही फोटोफोबिया हो जाना जो एक समान लक्षण है। मांसपेशियों और ज्वाइट्स में दर्द
कमजोरी होना आदि नजर आते हैं। चमकी बुखार के लक्षण क्या हैं? लगातार मर रहे बच्चों की संख्या के बीच जब हमने डॉक्टर से पूछा कि चमकी बुखार के लक्षण क्या है? लोग ये कैसे अंतर कर पाएंगे कि उनके बच्चे को चमकी बुखार है आम बुखार नहीं। तब मुज़फ्फरपुर के चाइल्ड स्पेस्लिस्ट डॉक्टर अरुण शाह ने इसके बार में बताया।
डॉक्टर अरुण शाह ने बताया कि चमकी बुखार में बच्चे को लगातार तेज़ बुखार चढ़ा ही रहता है। बदन में ऐंठन होती है। बच्चे दांत पर दांत चढ़ाए रहते हैं। कमज़ोरी की वजह से बच्चा बार-बार बेहोश होता है। यहां तक कि शरीर भी सुन्न हो जाता है। कई मौकों पर ऐसा भी होता है कि अगर बच्चों को चिकोटी काटेंगे तो उसे पता भी नहीं चलेगा। जबकि आम बुखार में ऐसा नहीं होता है।
गर्मियों के दौरान ही मौतें क्यों?
डॉक्टरों की मानें तो गर्मी और चमकी बुखार का सीधा कनेक्शन होता है. पुरानें कुछ सालों के पन्नों को पलट कर देखें, तो इससे ये साफ हो जाता है कि दिमागी बुखार से जितने बच्चे मरे हैं, वो सभी मई, जून और जुलाई के महीने में ही मरे हैं। लेकिन और ज्यादा गहराई से देखेंगे तो पता चलेगा कि मरनेवालों में ज्यादातर निम्न आय वर्ग के परिवार के ही बच्चे थे।आसान शब्दों में कहें तो जो बच्चे भरी दोपहरी में नंग-धड़ंग गांव के खेत खलिहान में खेलने निकल जाते हैं। जो पानी कम पीते हैं। तो सूर्य की गर्मी सीधा उनके शरीर को हिट करती है. तो वे दिमागी बुखार के गिरफ्त में पड़ जाते हैं।
बच्चे ही क्यों होते हैं शिकार?
एसकेएमसीएच के डॉक्टर से बात करने पर पता चला कि इस केस में ज्यादातर बच्चे ही दिमागी बीमारी के शिकार होते हैं। चूंकि बच्चों के शरीर की इम्युनिटी कम होती है, वो शरीर के ऊपर पड़ रही धूप को नहीं झेल पाते हैं। यहां तक कि शरीर में पानी की कमी होने पर बच्चे जल्दी हाइपोग्लाइसीमिया के शिकार हो जाते हैं। कई मामलों में बच्चों के शरीर में सोडियम की भी कमी हो जाती है। हालांकि कई डॉक्टर इस थ्योरी से इनकार भी करते हैं। 3 साल पहले भी जब मुज़फ्फरपुर में दिमागी बुखार से बच्चे मर रहे थे तब मामले की जांच करने मुंबई के मशहूर डॉक्टर जैकब गए। उन्होंने भी इस थ्योरी पर जांच करने की कोशिश की, लेकिन वो सफल नहीं हो पाए।
कैसी सावधानी बरती जाए?
गर्मी के मौसम में फल और खाना जल्दी खराब होता है। घरवाले इस बात का खास ख्याल रखें कि बच्चे किसी भी हाल में जूठे और सड़े हुए फल नहीं खाए। बच्चों को गंदगी से बिल्कुल दूर रखें। खास कर गांव-देहात में जो बच्चे सूअर और गाय के पास जाते हैं गर्मियों में दूरी बना कर रखें। खाने से पहले और खाने के बाद हाथ ज़रूर धुलवाएं। बच्चे नहीं मान रहे हैं तो कान पकड़ कर हाथ धुलवाएं। साफ पानी पिएं, बच्चों के नाखून नहीं बढ़ने दें। और गर्मियों के मौसम में धूप में खेलने से मना करें।