Saturday, November 23, 2024
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बिहार में एईएस से बच्चों की मृत्यु का सिलसिला जारी, अबतक 128 की मौत, डॉक्टर बीमारी का सटीक कारण बताने में नाकाम

बिहार के मुजफ्फरपुर और पड़ोसी जिलों में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण बच्चे मर रहे हैं, लेकिन डॉक्टर और स्वास्थ्य अधिकारी अभी भी बीमारी की सटीक प्रकृति और सटीक कारण के बारे में अंधेरे में हैं।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: June 19, 2019 20:21 IST
Acute Encephalitis Syndrome (AES) in Bihar- India TV Hindi
Image Source : PTI Acute Encephalitis Syndrome (AES) in Bihar

पटना | एक पखवाड़े से अधिक समय से बिहार के मुजफ्फरपुर और पड़ोसी जिलों में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण बच्चे मर रहे हैं, लेकिन डॉक्टर और स्वास्थ्य अधिकारी अभी भी बीमारी की सटीक प्रकृति और सटीक कारण के बारे में अंधेरे में हैं। राज्य और केंद्र सरकारों के पास भी इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, बिहार में अबतक 128 बच्चों की मौत हो चुकी है।

बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने बताया कि कुल 128 मौतों में से 91 राजकीय श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच), 16 निजी केजरीवाल अस्पताल (दोनों मुजफ्फरपुर में), दो पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज में और चार अन्य जिलों में हुई हैं। इस साल राज्य में अब तक 501 एईएस के मामले सामने आए हैं। डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों के एईएस महामारी के पीछे के कारकों और मौतों के कारण पर अलग-अलग विचार हैं। इस भ्रम ने एईएस के मौसमी प्रकोप से निपटने या नियंत्रित करने की प्रक्रिया को और जटिल कर दिया है, जो हर साल आता है। 

बिहार के मुख्य सचिव दीपक कुमार ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि यहां तक कि सरकार को भी स्पष्ट रूप से पता नहीं है कि वास्तव में एईएस के प्रकोप के पीछे का कारण क्या है, जो 1995 से मुजफ्फरपुर में नियमित रूप से दर्ज किया गया है। उन्होंने कहा, "हमें अभी भी पता नहीं है कि यह लीची के सेवन, कुपोषण या उच्च तापमान और आद्र्रता जैसी पर्यावरणीय स्थितियों के कारण कुछ वायरस, बैक्टीरिया, टॉक्सिन प्रभाव के कारण हुआ है या नहीं।" उन्होंने कहा, "कई शोध किए गए हैं, जिनमें रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र, अटलांटा (यूएस) के विशेषज्ञों की एक टीम शामिल है, लेकिन अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला है।"

एसकेएमसीएच के मुख्य चिकित्सा अधिकारी एस. पी. सिंह ने कहा कि इस बीमारी के फैलने के पीछे की वजह की पुष्टि नहीं की जा सकी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन, जो खुद एक डॉक्टर हैं, जिन्होंने तीन दिन पहले मुजफ्फरपुर का दौरा किया था और एसकेएमसीएच में कई बच्चों की जांच की थी, ने कहा कि मौतों का कारण इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन और चयापचय प्रणाली से संबंधित हो सकता है।

उन्होंने वायरल संक्रमण या टॉक्सिन प्रभाव के कारण एईएस की संभावना को भी खारिज नहीं किया, जो संभवत: लीची के सेवन के साथ-साथ उच्च तापमान और आद्र्रता के कारण हो सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए, हर्षवर्धन ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र और एम्स पटना के सहयोग से मुजफ्फरपुर में एक अत्याधुनिक, बहु-विषयक अनुसंधान इकाई की स्थापना के साथ ही एईएस पर शोध की आवश्यकता पर जोर दिया। 

हालांकि, मुजफ्फरपुर के एक भूमिहीन मजदूर हरदेव मांझी, जिनके चार वर्षीय बेटे का इलाज एसकेएमसीएच में किया जा रहा है, उन्होंने कहा, "मेरे बेटे को पिछले हफ्ते अचानक तेज बुखार आ गया, उसके बाद ऐंठन हुआ और बाद में वह बेहोश हो गया, जिसके बाद, हम उसे इलाज के लिए अस्पताल ले आए। उसकी हालत में थोड़ा सुधार दिख रहा है।" मांझी ने बताया कि ज्यादातर बच्चों को पहले तेज बुखार हुआ और उसके बाद कमजोरी, ऐंठन और फिर चेतना खोना जैसे लक्षण देखे गए। एईएस के लिए इलाज करवा रही छह साल की बच्ची की मां मारला देवी ने कहा कि उनकी बेटी का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने बताया कि दिमागी सूजन और तेज बुखार के कारण वह बेहोश हो गई थी। उन्होंने कहा, "हमने केवल तेज बुखार और ऐंठन का लक्षण देखा।"

एसकेएमसीएच के पीडियाट्रिक्स विभाग के प्रमुख गोपाल शंकर साहनी ने कहा कि एईएस का प्रकोप अत्यधिक गर्मी के दौरान हुआ। उन्होंने कहा, "हमने ऐसी जानकारी एकत्र की है, जो बताती है कि बच्चों के शरीर का तापमान ऐंठन के बाद बढ़ेगा। वे सोडियम की कमी से हाइपोग्लाइकेमिया (बहुत कम रक्त शर्करा) से भी पीड़ित हैं।" केजरीवाल अस्पताल के राजीव कुमार ने कहा कि एईएस से पीड़ित बच्चों में बुखार के अचानक शुरू होने के बाद मानसिक समस्याएं होना आम बात है।

उन्होंने कहा, "ऐसी स्थिति में, हम माता-पिता को सलाह दे रहे हैं कि वे अपने बच्चों को इलाज के लिए देरी के बिना निकटतम पीएचसी या अस्पताल में ले जाएं। उनके जल्दी आगमन के साथ जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है।" एईएस के शिकार ज्यादातर बच्चे गरीब तबके के होते हैं, जिनमें दलित, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (ईबीसी) और मुस्लिम शामिल हैं। मुजफ्फरपुर में एक जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा, "एईएस पीड़ित ज्यादातर समाज के वंचित वर्ग के कुपोषित बच्चे हैं, वे गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणियों (बीपीएल) से हैं।"

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा मंगलवार को मुजफ्फरपुर का दौरा करने के बाद, सरकार ने उन ब्लॉकों और गांवों में एक सर्वेक्षण शुरू किया है। उन्होंने प्रभावित परिवारों के सामाजिक-आर्थिक प्रोफाइल और उनके रहने की स्थिति का अध्ययन करने के लिए कहा है, जहां सबसे अधिक संख्या में मौतें हुई हैं। केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए विशेषज्ञों की एक टीम ने कमजोर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और खराब अस्पताल सुविधाओं पर असंतोष व्यक्त किया है।

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