Friday, November 22, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राष्ट्रीय
  4. कीटनाशकों के चलते गई 63 किसानों की जान, अब कानून बनाएगी सरकार!

कीटनाशकों के चलते गई 63 किसानों की जान, अब कानून बनाएगी सरकार!

देश के विभिन्न हिस्सों में कीटनाशकों के हानिकारक प्रभावों के कारण 63 किसानों की मौत की रिपोर्ट है...

Reported by: Bhasha
Published on: March 11, 2018 15:28 IST
Representational Image | PTI Photo- India TV Hindi
Representational Image | PTI Photo

नई दिल्ली: देश के विभिन्न हिस्सों में कीटनाशकों के हानिकारक प्रभावों के कारण 63 किसानों की मौत की रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट के बाद अब सरकार इसके हानिकारक प्रभावों को देखते हुए कीटनाशक प्रबंधन विधेयक को संसद से पारित कराने पर विचार कर रही है। तत्कालीन संप्रग सरकार ने वर्ष 2008 में कीटनाशक प्रबंधन विधेयक संसद में पेश किया था, लेकिन उसे पारित नहीं किया जा सका। इसकी मियाद खत्म होने से विधेयक निष्प्रभावी हो गया। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, ऐसे 66 कीटनाशक हैं जो एक या एक से अधिक देशों में प्रतिबंधित हैं तथा वापस ले लिए गए हैं लेकिन भारत में रजिस्टर्ड किए जा रहे हैं। इस विषय पर अनुपम वर्मा समिति ने दिसंबर 2015 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इस विशेषज्ञ समिति ने 13 कीटनाशकों पर पूरी तरह से रोक लगाने और वर्ष 2018 तक कुछ तकनीकी अध्ययन पूरा करने की सिफारिश की थी।

समिति ने कहा कि कीटनाशक फेनीट्रोथियोन पर प्रतिबंध बना रहेगा जबकि 13 कीटनाशकों का प्रयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाएगा जिसमें बेनोमोइल, कार्बारील, DDT डायाजिनोन, फेनरिमोल, फेथिओन, लिनुरान, MIMC, मिथाइल पैराथियान, सोडियम सायनाइड, थियोटोन, ट्राइडमोर्फ, ट्राइफ्लारेलिन शामिल है। एंडोसल्फान की समीक्षा नहीं की गई है क्योंकि यह न्यायाधीन है। कृषि मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि सरकार कीटनाशक प्रबंधन संबंधी विधेयक को संसद से पारित कराना चाहती है जो किसानों के हितों की पूर्ति करने वाला है। लोकसभा में असदुद्दीन ओवैसी के प्रश्न के लिखित उत्तर में कृषि राज्य मंत्री ने कुछ ही दिन पहले कहा था कि भारत सरकार से प्राप्त सूचना के आधार पर कीटनाशकों की हैंडलिंग के कारण 63 किसानों या श्रमिकों की मृत्यु की रिपोर्ट मिली है।

साल 2016 में संसद के मानसून सत्र के दौरान कीटनाशक प्रबंधन विधेयक 2008 को चर्चा एवं पारित किए जाने के लिए कामकाज की सूची में शामिल किया गया था लेकिन यह पारित नहीं हो सका। इस विधेयक पर संसद की स्थायी समिति विचार कर रिपोर्ट पेश कर चुकी है। संसद की मंजूरी मिलने पर यह कीटनाशक अधिनियम 1968 का स्थान लेगा। इस विधेयक में कीटनाशक को नए सिरे से परिभाषित किया गया है। इसमें खराब गुणवत्ता, मिलावटी या हानिकारक कीटनाशकों के नियमन एवं अन्य मानदंड निर्धारित किए गए हैं। इसमें कहा गया है कि किसी भी कीटनाशक का तब तक रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकता जब तक कि उसके फसलों या उत्पादों पर पड़ने वाले प्रभाव तय नहीं होते जो खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के तहत निर्धारित हों। इसमें कीटनाशक निर्माताओं, वितरकों एवं खुदरा विक्रेताओं के लाइसेंस की प्रक्रिया तय की गई है।

सरकार ने नवंबर 2014 में लोकसभा में हुकुमदेव नारायण यादव के प्रश्न के उत्तर में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री संजीव बालयान ने कहा था कि कीटनाशक प्रबंधन विधेयक 2008 संसद में लंबित है जिसमें कीटनाशकों के संदर्भ में गलत तरीके से ब्रांडिंग करने, खराब गुणवत्ता और हानिकारक प्रभावों के संदर्भ में दंड का प्रावधान हो। महाराष्ट्र समेत देश के कई हिस्सों में कथित तौर पर जहरीले कीटनाशकों की वजह से पिछले कुछ समय में हुई किसानों की मौत की रिपोर्ट को देखते हुए हाल ही में सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरन्मेंट (CSE) ने कीटनाशकों के उपयोग के बारे में ठोस दिशा-निर्देश तैयार करने तथा श्रेणी 1 के कई कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। संगठन ने इस तरह के जहरीले कीटनाशकों के असुरक्षित इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए कीटनाशक प्रबंधन वाले एक विधेयक की मांग की है। CSE के उप महानिदेशक चंद्रभूषण ने कहा है कि कीटनाशक के जहर से महाराष्ट्र में हुई मौतों के पीछे की वजह देश में बड़े पैमाने पर कीटनाशक प्रबंधन में बरती जा रही लापरवाही है। 

सरकार ने वर्ष 2008 में कीटनाशक प्रबंधन विधेयक संसद में पेश किया था, लेकिन उसे पारित नहीं किया गया है। बिल को पारित कराने की आवश्यकता पर बल देते हुए चंद्रभूषण ने कहा है कि जब तक सरकार अपने कीटनाशकों के प्रबंधन संबंधी नियमों और विनियामक संस्थानों में सुधार नहीं करती, तब तक कीटनाशक के उपयोग से मृत्यु का यह सिलसिला जारी रहेगा। महाराष्ट्र के किसान कार्यकर्ता गणेश ननोटे ने कहा कि कीटनाशकों के कारण काफी संख्या में किसानों की ऐसी मौतें हुई जिन्हें रोका जा सकता था। कृषि विभाग कीटनाशकों के प्रबंधन में पूरी तरह से विफल रहा है। उन्होंने कहा कि अनेक ऐसे कीट-पतंगे पर्यावरण मित्र होते हैं, उनकी प्रजातियां इन खतरनाक रसायनों के चलते लुप्त होती जा रही हैं। हालांकि बढ़ती जनसंख्या को खाद्यान्न उपलब्ध कराना भी बड़ी चुनौती है। कर्ज के जाल में फंसा किसान जोखिम उठाकर कीटनाशकों का इस्तेमाल करने के लिए कुछ हद तक मजबूर है।

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement