नीमच: भारत में कन्या भ्रूण हत्या जहां राष्ट्रीय स्तर पर चिंता का विषय है तो वहीं मध्य प्रदेश के मालवा इलाके के रतलाम, मंदसौर और नीमच जिलों में निवास करने वाले बांछड़ा समुदाय में लड़की का जन्म होने पर जश्न मनाया जाता है, लेकिन इस जश्न के पीछे की तस्वीर बड़ी भयावह है। यहां लड़की होने पर जश्न इसलिए मनाया जाता है ताकि बड़ा होने पर उन्हें देह व्यापार के नरक में धकेला जा सके। इतना ही अब ऐसे भी कई मामले सामने आए हैं जहां बांछड़ा समुदाय के लोग दूसरे समुदायों से लड़कियों को खरीद कर उन्हें देह व्यापार में धकेल रहे हैं। बांछड़ा समुदाय में देहव्यापार को सामाजिक मान्यता है और इसलिए इनके परिवार में लड़की का होना बड़ा अहमियत रखता है।
पुरुषों से ज्यादा हैं महिलाएं
समुदाय में लड़कियों की अहमियत के मद्देनजर लड़कियों की संख्या बढ़ाने का एक नया तरीका निकाला है। यह नया तरीका है कि दूसरे समुदाय की और गरीब परिवारों की लड़कियों को पैदा होते ही खरीद लो और उसको पालो-पोसो तथा बड़ी करके वेश्यावृति के दलदल में धकेल दो। बांछड़ा समुदाय के उत्थान के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘नई आभा सामाजिक चेतना समिति’ के संयोजक आकाश चौहान ने बताया, ‘मंदसौर, नीमच और रतलाम जिले में 75 गांवों में बांछड़ा समुदाय की 23,000 की आबादी रहती है। इनमें 2,000 से अधिक महिलाएं और युवतियां देह व्यापार में लिप्त हैं।’
सर्वे में सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े
चौहान ने दावा किया कि मंदसौर जिले की जनगणना के अनुसार यहां 1000 लड़कों पर 927 लड़कियां हैं, पर बांछड़ा समाज में स्थिति उलट है। महिला सशक्तिकरण विभाग द्वारा वर्ष 2015 में कराए गए सर्वे में 38 गांवों में 1047 बांछड़ा परिवार में इनकी कुल आबादी 3435 दर्ज की गई थी। इनमें 2243 महिलाएं और महज 1192 पुरुष थे, यानी पुरुषों के मुकाबले दो गुनी महिलाएं। वहीं नीमच जिले में वर्ष 2012 के एक सर्वे में 24 बांछड़ा बहुल गांवों में 1319 बांछड़ा परिवारों में 3595 महिलायें और 2770 पुरुष पाए गए। इस पूरे मामले में मालवा में पुलिस इंस्पेक्टर अनिरूद्व वाघिया ने बताया कि दूसरे समाज की लड़कियों को खरीदकर उनको वेश्यावृत्ति के धंधे मे धकेलना चौंकाने वाला है। नीमच, मन्दसौर जिले में इस तरह के अब तक करीब 70 से अधिक मामले उजागर हो चुके हैं।
पुलिस ने सुझाया यह तरीका
नीमच के पुलिस अधीक्षक (SP) टीके विधार्थी ने ख़ास बातचीत में मानव तस्करी और बांछड़ा समुदाय की सामाजिक बुराई पर कहा, ‘इस दिशा में पुलिस के चाहे जितने भी प्रयास हों वो नाकाफी हैं क्योंकि पुलिस कितने मुकदमे कायम करेगी? पुलिस की कार्रवाई उतनी प्रभावी नहीं होगी, इसके लिए सामाजिक जागरुकता की ज़रूरत है। यह एक सामूहिक बुराई है। अभी हाल ही में हमने इस दिशा में प्रयास शुरू किए हैं। हम बांछड़ा समुदाय के डेरों में सर्वे करवाकर यह प्रयास कर रहे हैं कि इनके सब बच्चे स्कूल जाएं, वहीं जो पढ़ लिख चुके है उन्हें रोजगार मिले। हमारे अधिकारी ऐसे बांछड़ा युवक युवतियों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवा रहे हैं। यदि ऐसा हो जाता है तो इसके परिणाम काफी सुखद होंगे। हमारा मानना है कि समाज की मुख्य धारा से जुड़कर ही इस समस्या का प्रभावी हल निकल सकता है।’ SP ने आगे कहा कि जागरूकता अभियान के साथ पुलिस उन लोगों को नहीं बख्शेगी जो नाबालिग बच्चियों को इस धंधे में लाते हैं, यदि हमें इस तरह की कोई शिकायत मिली तो हम ऐसे तत्वों से सख्ती से निपटेंगे। इस मामले में एंटी करप्शन मूवमेंट दिल्ली के सदस्य और RTI कार्यकर्ता ऐडवोकेट अमित शर्मा ने कहा, ‘यह एक गंभीर मामला है। निश्चित ही बांछड़ा समुदाय में बाहर से गरीब परिवारों की बच्चियां कम उम्र में खरीद कर लाई जा रही हैं। यही कारण है कि इस समाज में महिलाएं अधिक और पुरुष कम हैं।’
बच्ची की खरीद-फरोख्त में इस्तेमाल हुआ स्टांप पेपर
बांछड़ा समुदाय में जिस्मफरोशी के लिए मासूम बच्चियों की खरीद-फरोख्त का पहला मामला उस समय सामने आया जब 15 जुलाई 2014 को नीमच पुलिस ने कुकडेश्वर पुलिस थाना क्षेत्र के मौया गांव में स्थित बांछडा डेरे पर दबिश दी थी। यहां श्याम लाल बांछडा के पुलिस को 6 वर्षीय एक नाबालिग बालिका मिली। श्याम लाल की पत्नि प्रेमा बाई बांछडा ने पुलिस को बताया कि इस लड़की को सन् 2009 में वह नागदा से खरीद कर लाए थे। इस सौदे को करवाने वाला दलाल रामचन्द्र मानव तस्करी के मामले में सन् 2011 से जेल मे बंद है। इस मामले के खुलासे के बाद पुलिस भौचक्की रह गई क्योंकि इसमें बाकायदा 500 रुपये के स्टाम्प पेपर पर बच्ची को बेचा गया था। पुलिस ने उक्त बच्ची को बरामद कर प्रेमबाई के विरूद्व IPC की धारा 370/4,372,373, मानव तस्करी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया, लेकिन इस घटना ने समूचे प्रशासन को हिला दिया कि किस तरह गरीब परिवारों की बच्चियों की खरीद-फरोख्त कर उनको देह व्यापार में झोंका जाता है।
खाने और कपड़े के बदले बेचती हैं जिस्म
RTI कार्यकर्ता ऐडवोकेट अमित शर्मा ने कहा कि बांछड़ा समुदाय में मासूम बच्चियों की खरीद-फरोख्त बड़े ही संगठित तौर पर होती है और इसके लिए बकायदा दलाल होते है जो गरीब परिवारों की छोटी बच्चियों को ढूंढते हैं और इन दूध मुंही बच्चियों को 2,000 से 10,000 रूपये के बीच खरीद लिया जाता है। यह इन बांछडों का एक प्रकार से निवेश होता है। इसके बाद इन बच्चियों को पाल-पोस कर जिस्म फरोशी के धंधे मे झोंक दिया जाता है। यह चलन अब एक बड़े कारोबार का रूप ले चुका है। महू-नसीराबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित एक बांछडा डेरे की मुखिया, जो कि 14 वर्षीय नाबालिग बच्ची से देह व्यापार कराने के आरोप में गिरफ्तार हो चुकी है, ने अपना नहीं छापने की शर्त पर बताया कि वह बच्ची को देह व्यापार के बदले खाना और कपड़े देती थी। उसका यह बयान चौंकाने वाला है। मालवा में गरीब घर की लडकियां बांछड़ा समुदाय के लिये महज रुपया कमाने का माध्यम बन गई है और उन्हे मात्र भोजन और कपडों के लिए अपना तन बेचना पड़ रहा है।
जानलेवा बीमारियों का होता है खतरा
मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग के जिला संयोजक भानू दवे कहते हैं कि बांछडा समुदाय के नाम पर NGO और सामाजिक संस्थाए दुकानदारी तो चलाती हैं लेकिन इनकी दशा और दिशा सुधारने का कोई वास्तविक कार्य नही कर पाई है। मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति परिषद के प्रदेश महामंत्री प्रभुलाल चंदेल ने कहा कि राज्य की बीजेपी सरकार ‘बेटी बचाओ’ अभियान का लाख ढिंढोरा पीटे, लेकिन जमीनी सच्चाई रोंगटे खडे कर देने वाली है। सामाजिक कार्यकर्ता और रेडक्रास नीमच के पूर्व चैयरमेन रवींद्र मेहता ने कहा कि समुदाय की लड़कियां पूरी तरह से असुरक्षित सम्बन्ध बनाती हैं, जिससे इनमें एड्स जैसी जानलेवा बीमारियां फैलने का भारी अंदेशा बना रहता है। लेकिन क्योंकि ये खरीदकर कर लाई जाती हैं इसलिए इनकी कोई परवाह नहीं करता।