नई दिल्ली। तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा कि दुनिया को आज भारत की अहिंसा और करुणा की प्राचीन परंपरा की जरूरत है क्योंकि लोग धर्म के आधार पर और देश क्षेत्रीय विवादों के आधार पर आपस में लड़ रहे हैं। लामा ने कहा कि भारत को 3000 साल पुरानी अपनी उच्च नैतिकता वाली प्राचीन परंपरागत शिक्षाओं को आधुनिक शिक्षाओं के साथ मिलाकर शिक्षा प्रणाली में किसी तरह की ‘क्रांति लाने’ की जरूरत है।
84 वर्षीय आध्यात्मिक नेता ने कहा कि धार्मिक शिक्षाओं के बजाए अहिंसा, प्रेम, करूणा और कृपा को शैक्षणिक विषयों के तौर पर शामिल करना चाहिए। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज की ओर से आयोजित 24वें सर्वपल्ली राधाकृष्णन स्मृति व्याख्यान में लामा ने कहा कि धार्मिक टकरावों और विश्व युद्धों के दौरान भी अहिंसा, करुणा, प्रेम और कृपा का संदेश फैला था।
उन्होंने कहा कि दुनिया के कुछ हिस्सों में शिया-सुन्नी के आपस में लड़ने के विपरीत भारत में ऐसी कोई लड़ाई नहीं है। लामा ने कहा कि प्राचीन भारतीय संस्कृति और परंपरा की ऐसी उच्च नैतिकता वाली शिक्षाओं की आज की दुनिया को जरूरत है। उन्होंने कहा कि किसी भी जुड़ाव या संबंध के बिना सच्ची करुणा होनी चाहिए।
भारत में आधुनिक शिक्षा प्रणाली लाने में भूमिका निभाने के लिए राधाकृष्णन को श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति आधुनिक शिक्षा, प्राचीन वैदिक ज्ञान, संस्कृति और परंपरा के मेल का उदाहरण थे। बाद में, दर्शकों के सवाल पर कि वह हमेशा कैसे मुस्कुराते रहते हैं और खुश रहते हैं।
लामा ने कहा कि व्यक्ति को अपने दुश्मन को भी शिक्षक मानना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक वक्त था जब वह तिब्बती और बौद्ध धर्म का अनुयायी होने की वजह से चीन के गुस्से और उसके डर से चिंतित थे, लेकिन उन्हें उसके प्रति कभी भी गुस्सा महसूस नहीं हुआ। उन्होंने मज़ाकिया तौर पर कहा, ‘‘ मेरे पास मुस्कुराते रहने और खुश रहने के लिए विशेष गोलियां (पिल्स) हैं।’’
एक अन्य सवाल पर 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित हुए लामा ने कहा कि भारत का शाकाहारी खाना चीन के मांसाहारी खाने से बेहतर है। भूतपूर्व जम्मू कश्मीर राज्य के पूर्व राज्यपाल एन एन वोहरा और आईसीसीआर के अध्यक्ष एवं सांसद विनय सहस्रबुद्धे ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।