नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को सबरीमला मंदिर में पुलिस की सुरक्षा में महिलाओं का प्रवेश सुनिश्चित करने के लिये केरल सरकार को कोई आदेश देने से इंकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह बहुत ही भावनात्मक विषय है और वह नहीं चाहता कि स्थिति विस्फोटक हो। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने कहा कि इस मामले में ‘संतुलन’ बनाये रखने के लिये जरूरी है कि आज कोई आदेश नहीं दिया जाये क्योंकि यह मुद्दा पहले ही सात सदस्यीय पीठ को सौंपा जा चुका है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले पर विचार के लिये यथाशीघ्र सात सदस्यीय पीठ गठित करने का प्रयास किया जायेगा। पीठ ने कहा कि हालांकि सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने वाले 28 सितंबर, 2018 के फैसले पर किसी प्रकार की रोक नहीं है लेकिन यह भी सही है कि यह अभी अंतिम नहीं है।
पीठ ने कहा कि सात सदस्यीय पीठ को सौंपे गये मुद्दों पर फैसला आने के बाद जल्द से जल्द पिछले साल सितंबर के फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकाओं को सूचीबद्ध किया जायेगा। इसने कहा कि वह वृहद पीठ का निर्णय आने तक इस मामले में कोई आदेश नहीं देगा और यदि मंदिर में पूजा के लिए महिलाओं का सहर्ष स्वागत किया जाता है तो इसमें कोई समस्या नहीं होगी। एक याचिकाकर्ता के वकील ने जब जोर देकर कहा कि पिछले साल के निर्णय पर न्यायालय ने रोक नहीं लगाई है तो पीठ ने कहा, ‘‘हम जानते हैं कि कानून आपके पक्ष में है और यदि इसका पालन किया गया और इसका उल्लंघन हुआ तो हम लोगों को जेल भेजेंगे।’’ इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही एक महिला कार्यकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्साल्विज ने कहा कि केरल सरकार महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दे रही है और यह पिछले साल के फैसले पर रोक जैसा ही है। उन्होंने कहा कि यह समाज में गलत संदेश देगा।
हालांकि, प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस मामले में एक फैसला है। इस बारे में भी कोई संदेह नहीं है कि मामले को वृहद पीठ को सौंप दिया गया है। मैंने अभी तक वृहद पीठ गठित नहीं की है। सहूलियत के संतुलन के लिये जरूरत है कि हम आज कोई आदेश नहीं दें। यदि मामले का फैसला आपके पक्ष में हुआ तो हम इसे लागू करेंगे।’’ गोन्साल्विज ने जब यह कहा कि मंदिर जाने वाली महिलाओं को पुलिस संरक्षण का आदेश दिया जा सकता है तो पीठ ने कहा कि वह नहीं चाहती कि स्थिति विस्फोटक हो। पीठ ने कहा, ‘‘हम किसी तरह की हिंसा नहीं चाहते।
हम इस मामले की सुनवाई करेंगे। हम फैसला लेंगे। इसमें संदेह नहीं कि फैसला आपके पक्ष में है लेकिन यह भी सही है कि यह अंतिम नहीं है। एक अन्य याचिकाकर्ता दलित महिला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दिरा जयसिंह ने कहा कि वे किसी प्रकार की हिंसा नहीं चाहते और हमारा देश अहिंसा में विश्वास रखने की बुनियाद पर आधारित है। पीठ ने कहा, ‘‘समाचार पत्र की खबरों के अनुसार तो इस विषय को लेकर लोग बहुत ही भावनात्मक हैं। जयसिंह ने जब यह कहा कि इस साल जनवरी में न्यायालय ने इन दो याचिकाकर्ताओं में से एक को 24 घंटे सुरक्षा प्रदान करने का आदेश केरल सरकार को दिया था। पीठ ने कहा कि यह आदेश जारी रहेगा।