लखनऊ. कोरोना वायरस मरीजों के इलाज में लगे राजधानी के अस्पतालों की मेडिकल टीम ''सफेद कपड़ों में फरिश्तों'’ की टीम है। टीम में शामिल डाक्टर एवं अन्य कर्मी सात दिन तक पृथक वार्ड में रहकर काम करते हैं और उसके बाद अपने घर लौटकर चौदह दिन तक पृथक रहते हैं और उसके बाद अस्पताल में मरीजों की सेवा के लिये फिर वापस आ जाते हैं।
कोरोना मरीजों की सेवा करने वाले इन चिकित्सकों और अन्य मेडिकल कर्मियों का न तो कोई नाम जानता है और न ही इनकी चर्चा मीडिया में होती है लेकिन इसके बावजूद ये निस्वार्थ भाव से अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना संक्रमण से प्रभावित मरीजों की सेवा कर रहे हैं। इस टीम का एक जूनियर रेजीडेंट डाक्टर इन संक्रमित रोगियों का इलाज करते हुये स्वयं भी संक्रमित हो गया था जिसका इलाज चल रहा है और अब वह ठीक है।
पहले दिन से उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस के रोगियों का इलाज कर रहे किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के प्रवक्ता डा सुधीर सिंह ने 'भाषा' को बताया कि ''एक महीने से अधिक से हमारी टीमें कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों का इलाज कर रही हैं और सबसे पहली मरीज जो कि कनाडा की एक महिला डाक्टर थी वह ठीक होकर घर भी जा चुकी है। वहीं अन्य रोगियों का इलाज चल रहा है और सभी की हालत स्थिर है।’’
इस समय केजीएमयू के पृथक वार्ड में तीन टीमें एक-एक सप्ताह के रोटेशन पर काम कर रही हैं। एक मेडिकल टीम में 27 स्वास्थ्य कर्मी होते हैं। इनमें एक वरिष्ठ डाक्टर, एक सीनियर रेजीडेंट, छह जूनियर डाक्टर, एक सिस्टर इंचार्ज, छह नर्सें, छह वार्ड ब्वाय, छह सफाई कर्मी शमिल होते हैं। एक मेडिकल टीम एक सप्ताह तक दिन- रात पृथक वार्ड में ही रहती है।
इस दौरान ये टीम पृथक वार्ड में ही रहकर मरीजों की देखभाल करती है। ये टीम वहीं खाना खाती है और वहीं बारी-बारी से आराम करती है। जब एक सप्ताह बाद यह टीम वार्ड से बाहर निकलती है तो इनकी जांच की जाती है और उसके बाद ये लोग अपने घर में 14 दिन तक पृथक रहते हैं। उसके बाद फिर यह टीम वापस आ जाती है। प्रवक्ता डा.सिंह ने बताया कि तीन सप्ताह बाद पहली टीम फिर से अपनी डयूटी पर आ जाती है और तीसरी टीम को छुटटी दे दी जाती है। इस तरह से बारी-बारी से तीनों टीमें अपना काम कर रही हैं।
इन टीमों का नेतृत्व केजीएमसी के मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो वीरेंद्र रातम कर रहे हैं, वह ही टीमों का गठन करते हैं और उन पर कड़ी नजर रखते हैं। उन्होंने कहा कि पृथक वार्ड में रहने के दौरान ये मेडिकल टीम अपना बहुत ख्याल रखती है क्योंकि इस टीम का एक जूनियर डाक्टर पहले कोरोना संक्रमण की चपेट में आकर बीमार हो चुका है। इसलिये इस टीम के पृथक वार्ड में प्रवेश से पहले और सात दिन बाद वार्ड से निकलने के बाद इनकी बहुत बारीकी से जांच की जाती है।
केजीएमयू की कोविड-19 टास्क फोर्स टीम के सदस्य डा. संदीप तिवारी बताते हैं कि इस समय पृथक वार्ड में 200 बिस्तरों की व्यवस्था है। यह वार्ड संक्रामक रोग विभाग में बनाया गया है। जहां अभी कोरोना वायरस से पीड़ित सात रोगी भर्ती हैं। लेकिन अगर रोगी बढ़े तो हम दूसरे वार्डों जैसे न्यूरोलोजी विभाग, मेडिसिन विभाग, नेत्र रोग विभाग में भी आइसोलेशन वार्ड बना सकते हैं और इन दो सौ बिस्तरों को 4000 बिस्तरों तक बढ़ा सकते हैं। डा. तिवारी कहते हैं कि केजीएमयू में इस समय केवल गंभीर रोगों जैसे हार्ट अटैक, कैंसर, महिलाओं के प्रसव जैसे रोगियों को ही भर्ती कर रहे हैं, अन्य रोगियों जिनमें इर्मेजेंसी उपचार की जरूरत नहीं है उन्हें एक माह के बाद का समय दिया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि केजीएमयू के अलावा कोरोना वायरस के संक्रमित रोगियों का इलाज संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान और राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भी किया जा रहा है लेकिन वहां पृथक वार्ड छोटे हैं और वहां इतने अधिक मरीजों के उपचार की व्यवस्था नहीं है। उल्लेखनीय है कि केजीएमयू प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल है जहां एकसाथ इतने रोगियों का उपचार किया जा सकता है और कोरोना संक्रमित पहली महिला मरीज यहीं भर्ती हुई थी जो ठीक होकर अपने घर भी जा चुकी है।