नई दिल्ली: एक तरफ लॉकडाउन में छूट मिल रही है वहीं दूसरी तरफ कोरोनामीटर बढ़ता जा रहा है। बड़े बड़े शहरों से लगातार उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड तक श्रमिक ट्रेनें चल रही हैं। अब तक ट्रेनों से लाखों प्रवासियों को उनके राज्यों तक पहुंचा दिया गया है और उनके पीछे पीछे कोरोना का वायरस भी छोटे छोटे जिलों तक पहुंच रहा है जिस कारण राज्यों का कोरोनाग्राफ बढ़ा रहा है। हालत ये है कि यूपी, बिहार के जो जिले कुछ दिनों पहले ग्रीन जोन में थे, वो अब रेड जोन में आ गए हैं।
दिल्ली, मुंबई, सूरत जैसे महानगरों से लाखों मजदूर यूपी, बिहार, झारखंड, एमपी पहुंच चुके हैं और इसी के साथ कोरोना का घातक वायरस भी शहरों से देहात में पहुंच चुका है और इसी के साथ खतरा भी बढ़ चुका है। बिहार में कोरोना वायरस के करीब 19 सौ से ज्यादा केस हैं। चौबीस घंटे में रिकॉर्ड 274 केस सामने आ चुके हैं।
इन 19 सौ कोरोना पॉजिटिव केसों में से करीब एक हजार कोरोना पॉजिटिव प्रवासी मजदूर हैं। इनमें से 296 मजदूर दिल्ली से लौटे थे, 253 महाराष्ट्र से और 180 गुजरात से लौटकर आए थे। हरियाणा और राजस्थान से भी 100 से ज्यादा मजदूर वायरस लेकर लौटे। यानी बिहार में 55 परसेंट केस सिर्फ मजदूरों की वजह से बढ़े हैं।
कोरोना का वायरस उन जिलों में पहुंच गया है जो पहले ग्रीन जोन में थे। मजदूरों के लौटने के बाद कई जिलों में नए हॉट स्पॉट बन गए हैं। बिहार में लौटते प्रवासी, कैसे छोटी से लापरवाही से खतरा बन सकते हैं, इसकी एक तस्वीर खगड़िया से सामने आई। खगड़िया रेलवे स्टेशन से पहले हजारों की तादाद में मजदूरों ने रेल की चेन पुलिंग की और स्टेशन आने से पहले ही उतर गए क्योंकि ये मजदूर क्वारंटीन से बचना चाहते हैं।
बिहार में दूसरे राज्यों से आ रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन के मजदूरों को बसों के ज़रिए क्वारंटीन सेंटर में भेजा जा रहा है लेकिन कटिहार जा रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन जब खगड़िया स्टेशन से कुछ दूर आगे बढ़ी तो मजदूर बीच रास्ते में ट्रेन की चेन खींचने के बाद उतर गए। मजदूरों को उतरता देख स्थानीय लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया जिसके बाद कई मजदूर तो ट्रेन में चढ़ गए लेकिन बाकी के मजदूरों को वापस खगड़िया लाया गया और क्वारंटीन कैंप में पहुंचा दिया गया।
सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर उत्तर प्रदेश लौटे हैं। अकेले यूपी के लिए 1100 स्पेशल ट्रेने चल चुकी है। हजारों बस भी मजदूरों को लेकर उनके घर पहुंची। कुल मिलाकर अभी तक 16 लाख से ज्यादा मजदूर दूसरे राज्यों से यूपी के अलग अलग इलाकों में पहुंचे चुके हैं। प्रवासी मजदूरों के साथ यूपी के कई इलाकों में कोरोना का वायरस भी पहुंच गया है। सबसे डरावनी तस्वीर बाराबंकी की आई।
बारांबकी में 15 और 16 मई को 245 लोगों का टेस्ट कराया गया जिसमें से 95 कोरोना पॉजिटिव निकले। 95 में से 49 वो प्रवासी हैं जो अलग अलग राज्यों से बाराबंकी पहुंचे। गुरुवार को बाराबंकी में 9 नए केस सामने आए जिसमें से 8 मुंबई से लौटे थे और एक जयपुर से वापस आया। पिछले कुछ दिनों में अकेले बाराबंकी में करीब 20 हजार प्रवासी मजदूर लौटे हैं और 1100 गांव में इन सबकी निगरानी के लिए बाकायदा निगरानी समति भी बनाई गई है। हर घर के आगे होम क्वारंटीन का पोस्टर भी लगाया गया है।
सिर्फ बाराबंकी नहीं, यूपी के कई और जिलों में घर लौटे मजदूरों की वजह से कोरोना का ग्राफ बढा है। सिद्धार्थनगर में 63 कोरोना पॉजिटिव केस हैं। ये सभी प्रवासी मजदूर हैं। इसी तरह जौनपुर में 47 मजदूरों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है, रामपुर में 45 मजदूरों को कोरोना इन्फेक्शन का पता चला है। बहराइच में 42 में से 41 कोरोना पॉजिटिव मरीज़ प्रवासी मजदूर हैं।
इसके साथ साथ लखीमपुर में 35 कोरोना पॉजिटिव केस मिले। इनमें से 34 प्रवासी मजूदर हैं। आजमगढ और बलरामपुर में तीस-तीस मजदूरों को कोरोना हुआ, वारासणी में 28 मजदूर कोरोना की चपेट में आए, संभल में 27, गोंडा में 24, हरदोई में 20 मजदूर कोरोना लेकर वापस लौटे। बिहार और उत्तर प्रदेश के साथ साथ मजदूरों की घर वापसी से कोरोना का खतरा दूसरे राज्यों में भी बढ गया है।
राजस्थान में कोरोना वायरस के 5800 से ज्यादा मामले सामने आए हैं लेकिन इनमें 1099 कोरोना पॉजिटिव प्रवासी मजदूर हैं। मध्य प्रदेश में 5700 से ज्यादा केस हैं, इनमें से 400 मजदूर अपने साथ दूसरे स्टेट्स से कोरोना लाए हैं। कोरोना का ग्राफ उन राज्यों में भी तेजी से बदल रहा है जहां अभी तक कई ग्रीन जोन थे। ये अब ऑरेंज और रेड जोन्स में बदलने लगे हैं।
वैसे हीं एक राज्य झारखंड में कोरोना वायरस के 281 में से 130 मरीज प्रवासी मजदूरों के हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ में कोरोना के 126 केस डिटेक्ट हुए थे लेकिन इनमें से 62 कोरोना के मरीज दूसरे राज्यों से घर लौटे प्रवासी मजदूर ही हैं। इसी तरह हिमाचल में कोरोना के 140 से ज्यादा केस डिटेक्ट हुए है लेकिन इनमें से 79 केस सिर्फ प्रवासी मजदूरों की वजह से हैं।
बस और ट्रेन से पहुंचे प्रवासी मजदूरों को ट्रैक करना आसान है। उन्हें क्वारंटीन सेंटरों में भी पहुंचाना आसान है लेकिन प्रशासन के लिए सबसे बड़े सिरदर्द वो प्रवासी बने हैं जो पैदल या फिर साइकिल से अपने अपने गांव पहुंचे हैं।