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स्मार्टफोन, करेंसी नोट से Coronavirus का सबसे बड़ा खतरा, इतने दिनों तक रह सकता है जिंदा

कोरोना वायरस को लेकर लगातार किए जा रहे रिसर्च से इसके संक्रमण को लेकर नई-नई जानकारियां सामने आ रहीं हैं। आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय विज्ञान एजेंसी के एक लैब में हुए एक शोध की मानें तो जानलेवा नोवल कोरोना वायरस बैंक करेंसी, स्मार्टफोन्स के ग्लास पर कुल 28 दिनों तक जीवित रह सकता है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : October 12, 2020 15:40 IST
Coronavirus can survive on smartphones, banknotes for 28 days: Study
Image Source : PTI Coronavirus can survive on smartphones, banknotes for 28 days: Study

नयी दिल्ली: कोरोना वायरस को लेकर लगातार किए जा रहे रिसर्च से इसके संक्रमण को लेकर नई-नई जानकारियां सामने आ रहीं हैं। आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय विज्ञान एजेंसी के एक लैब में हुए एक शोध की मानें तो जानलेवा नोवल कोरोना वायरस बैंक करेंसी, स्मार्टफोन्स के ग्लास और स्टेनलेस स्टील जैसी सामान्य सतहों पर कुल 28 दिनों तक जीवित रह सकता है।

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वायरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के नतीजे दिखाते हैं कि सार्स-सीओवी-2 लंबे समय तक सहतों पर संक्रामक बना रह सकता है और ऐसे में एक बार फिर से स्वच्छ आदतों जैसे नियमित रूप से हाथ धुलना और सतहों को साफ करने की आवश्यकता का महत्व रेखांकित हुआ है।

ऑस्ट्रेलियन सेंटर फॉर डिजीज प्रिपेयर्डनेस (एसीडीपी) में हुए शोध में पाया गया कि सार्स-सीओवी-2 कम तापमान और गैर छिद्रयुक्त व चिकनी सतहों जैसे शीशा, स्टेनलेस स्टील, प्लास्टिक की शीट आदि पर छिद्रयुक्त जटिल सतहों के मुकाबले लंबे समय तक जीवित रहता है। 

ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय विज्ञान एजेंसी सीएसआईआरओ में शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि प्लास्टिक के बैंक नोट के मुकाबले कागज के करेंसी नोट पर कोरोना वायरस ज्यादा समय तक मौजूद रहता है। 

सीएसआईआरओ के मुख्य कार्यकारी लैरी मार्शल ने कहा, “किसी सतह पर वायरस कितने लंबे समय तक बना रहता है यह स्थापित हो जाने से हम इसके प्रसार और शमन को लेकर ज्यादा सटीक भविष्यवाणी कर पाएंगे और लोगों को बचाने का काम बेहतर तरीके से करेंगे।” 

एसीडीपी की उप निदेशक डेबी ईगल्स ने कहा, “20 डिग्री सेल्सियस पर जो कि लगभग सामान्य कमरे का तापमान है, हमने पाया कि वायरस बेहद मजबूत था, मोबाइल फोन की स्क्रीन के शीशे, प्लास्टिक बैंकनोट जैसी चिकनी सतहों पर 28 दिनों तक जीवित रहता है।” प्रयोग के दौरान जैसे-जैसे तापमान बढ़ाया गया, इनके जीवित रहने का समय कम हुआ।

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