Highlights
- संसद भवन के सेंट्रल हॉल में किया गया संविधान दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना नाम लिए साधा कांग्रेस पर निशाना
- भारत एक संवैधानिक लोकतांत्रिक परंपरा है और राजनीतिक दलों का अपना महत्व है- मोदी
नई दिल्ली. संविधान दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सियासत में बढ़ रहे परिवारवाद पर जमकर हमला बोला। संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने विभिन्न पार्टियों में बढ़ रहे परिवारवाद को लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी राजनीतिक दलों की तरफ देखिए, यह लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है, संविधान हमें जो कहता है उसके विपरीत है।
उन्होंने कहा, "भारत एक संवैधानिक लोकतांत्रिक परंपरा है और राजनीतिक दलों का अपना महत्व है, राजनीतिक दल भी हमारी संविधान की भावनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का प्रमुख माध्यम है लेकिन संविधान की भावना को भी चोट पहुंची है, जब राजनीतिक दल अपने आप में अपना लोकतांत्रिक चरित्र खो देते हैं, जो दल खुद लोकतांत्रिक चरित्र खो चुके हैं वो लोकतंत्र की रक्षा कैसे कर सकते हैं।"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "आज देश में कश्मीर से कन्याकुमारी, हिंदुस्तान के हर कोने में जाइए, भारत एक ऐसे संकट की तरफ बढ़ रहा है जो संविधान को समर्पित लोगों को चिंता का विषय है। लोकतंत्र के प्रति आस्था रखने वालों के लिए चिंता का विषय है और वो है पारिवारिक पार्टियां। राजनीतिक दल पार्टी फॉर द फैमिली, पार्टी बाइ द फैमिली, अब आगे कहने की जरूरत मुझे नहीं लगती है।"
उन्होंने कहा, "जब मैं कहता हूं कि पारिवारिक पार्टियां, इसका मतलब मैं ये नहीं कहता हूं कि एक परिवार से एक से अधिक लोग राजनीति में न आएं। योग्यता के आधार पर जनता के आशीर्वाद से किसी परिवार से एक से अधिक लोग राजनीतिक पार्टी में जाएं, इससे पार्टी राजनीतिक परिवार नहीं बनती लेकिन जो पार्टी पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार चलाता रहे, पार्टी की सारी व्यवस्था एक ही परिवार के पास रहे, वह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा संकट होता है।"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज संविधान दिवस पर, संविधान को समर्पित सभी देशवासियों से आहवान करूंगा कि देश में एक जागरूकता लाने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि जापान में देखा गया था कि कुछ ही परिवार राजनीतिक व्यवस्था में चल रहे हैं तो किसी ने बीड़ा उठाया था कि वे नागरिकों को तैयार करेंगे और राजनीतिक परिवारों से बाहर के लोग निर्णय प्रक्रिया में कैसे आएं, 30 40 साल लगे लेकिन प्रयोग सफल रहा।