नई दिल्ली: कांग्रेस नेता और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने राम मंदिर निर्माण को अपना समर्थन देते हुए बयान जारी किया। अपने लिखित बयान के आखिर में उन्होंने 'जय सियाराम' लिखा। अब यहां गौर देने वाली बात है कि आज जो कांग्रेस 'जय सियाराम' कह रही है, वही कांग्रेस एक वक्त में भगवान राम के लंका पहुंचने के लिए वानर सेना द्वारा बनाए गए रामसेतु के अस्तिव को ही चुनौती देती थी। यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि रामसेतु काल्पनिक है।
2007 में हुआ था विवाद
दरअसल, यह बात 2007 की है। तब उस समय की UPA सरकार सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट पास करने के चक्कर में थी। लेकिन, भाजपा इसका विरोध कर रही थी। क्योंकि, इसके परियोजना के तहत बड़े जहाजों के परिवहन के लिए नया रास्ता बताया जाना था, जो रामसेतु से होकर गुजरता। इसके लिए रामसेतु को तोड़ना पड़ा। लेकिन, रामसेतु की पुरानी मान्यताओं के कारण भाजपा ने सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट का विरोध किया और फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
कांग्रेस का हलफनामा
2008 में यूपीए सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर रामसेतु को काल्पनिक करार देते हुए कहा, “वहां कोई पुल नहीं है। ये स्ट्रक्चर किसी इंसान ने नहीं बनाया। यह किसी सुपर पावर से बना होगा और फिर खुद ही नष्ट हो गया। इसी वजह से सदियों तक इसके बारे में कोई बात नहीं हुई। न कोई सुबूत है।” कांग्रेस द्वारा दाखिल किए गए इस हलफनामे का खूब विरोध हुआ था, जिसके बाद कांग्रेस ने इसे वापिस लिया और कहा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है।
क्या था सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-1 सरकार ने 2005 में सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट का ऐलान किया था। इसका प्रस्ताव डीएमके ने रखा था, गठबंधन की सरकार में डीएमके के पास जहाजरानी मंत्रालय था। सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट के तहत बड़े जहाजों के परिवहन के लिए करीब 83 किलोमीटर लंबा नया रास्ता बनना था, जिसके लिए समुंद्र में कम गहराई वाले हिस्से की खुदाई करनी थी। यह खुदाई रामसेतु की जगह पर भी होनी थी।