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अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का विरोध नहीं, मजहब को बुनियाद बनाने की मुखालफत: अरशद मदनी

देश में मुसलमानों के प्रमुख संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा है कि संशोधित नागरिकता कानून की मुखालफत कुछ पड़ोसी मुल्कों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए नहीं, बल्कि इस कानून में धार्मिक आधार पर नागरिकता देने और इसमें एक समुदाय यानी मुसलमानों को शामिल नहीं करने के लिए की जा रही है।

Written by: Bhasha
Published : December 15, 2019 14:35 IST
Arshad Madni
अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का विरोध नहीं, मजहब को बुनियाद बनाने की मुखालफत: अरशद मदनी

नई दिल्ली: देश में मुसलमानों के प्रमुख संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा है कि संशोधित नागरिकता कानून की मुखालफत कुछ पड़ोसी मुल्कों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए नहीं, बल्कि इस कानून में धार्मिक आधार पर नागरिकता देने और इसमें एक समुदाय यानी मुसलमानों को शामिल नहीं करने के लिए की जा रही है। मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि वह चाहते हैं कि दलित-मुसलमान मजहब की दीवारों से ऊपर उठकर एक मंच बनाएं और इसके लिए उनके संगठन ने पहले भी कई बार कोशिश की है। 

मौलाना मदनी ने कहा, ‘‘किसी खास तबके (मुसलमानों) को किनारे लगाकर कोई कानून बनाया जाए तो उसे न संविधान और न ही मुल्क कबूल करता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ देश का मुसलमान पड़ोसी मुल्कों से आए अल्पसंख्यकों को यहां की नागरिकता देने का विरोध नहीं करता है, पर इसमें मजहबी बुनियाद पर मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है। इसलिए इसकी मुखालफत की जा रही है।’’ 

मदनी ने कहा, ‘‘कानून के अल्फाज़ को दुरुस्त किया जा सकता था और सिर्फ यह कानून बना दिया जाता कि अगर कोई भी शख्स मज़हब की बुनियाद पर सताए जाने की वजह से इस देश में आएगा, हम उसे अपने देश में जगह देंगे, क्योंकि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से कोई मुसलमान मज़हब की बुनियाद पर प्रताड़ना का शिकार हो कर भारत नहीं आएगा।’’ जमीयत प्रमुख ने आरोप लगाया, ‘‘मेरा मानना है कि इनको (भाजपा को) अपने लोगों को यह संदेश देना था कि अगर मुसलमानों को कोई नुकसान पहुंचा सकता है और संवैधानिक तौर पर उन्हें छोड़ सकता है तो यह वे ही कर सकते हैं।’’ 

रोहिंग्या मुसलमानों को भी भारतीय नागरिकता देने की मांग करते हुए मौलाना मदनी ने कहा, ‘‘बर्मा (म्यांमा) भी पहले भारत का ही हिस्सा था और अगर आप इन तीन मुल्कों के गैर मुस्लिमों को भारत में रहने की इजाजत दे सकते हैं तो आप रोहिंग्या को भी इजाजत दे सकते हैं। मगर आप ऐसा नहीं कर रहे हैं, क्योंकि आप की नागरिकता देने की बुनियाद मजहब पर आधारित है।’’ उन्होंने दावा किया, ‘‘हमारी फिक्र एनआरसी को लेकर है। असम में एनआरसी के लिए मुसलमानों के सबूत स्वीकार नहीं किए जा रहे हैं और इस कानून के बन जाने से उनके लिए हिन्दुस्तान की सरजमीं और तंग हो जाएगी।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘देश में ऐसे लोगों की बड़ी तादाद है जिसमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं, जो सिर्फ रोजी-रोटी कमाने में मशगूल रहते हैं और उनके लिए पुराने दस्तावेज इकट्ठा करना बहुत मुश्किल होगा। आपने (सरकार ने) महजब की बुनियाद पर एक तबके को इससे पूरी तरह से बाहर कर दिया है।’’ इस कानून के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में जाने का ऐलान करते हुए मौलाना मदनी ने कहा ‘‘हमने बार बार शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है और अब भी उच्चतम न्यायालय जाएंगे।’’ 

समूचे देश में एनआरसी होने की सूरत में, दलितों के साथ कोई मंच बनाने के सवाल पर मौलाना मदनी ने कहा, ‘‘हम समझते हैं कि जो भी तबके मजलूम हैं, उन्हें मजहब से ऊपर उठकर एक दूसरे का हाथ पकड़ना चाहिए। हमने पहले भी कई बार कोशिश की है कि दलित हमारे साथ आएं, लेकिन हमें कामयाबी नहीं मिली।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर मुसलमान और दलित मिलकर कोई मंच बनाते हैं तो जमीयत उलेमा-ए-हिंद का दिल खुला हुआ है और हम उनके साथ जा सकते हैं।’’ 

मुसलमानों से सड़कों पर प्रदर्शन नहीं करने की अपील करते हुए मौलाना मदनी ने कहा, ‘‘हम मुसलमानों से सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन नहीं करने को कहते हैं। यह हमारी रिवायत नहीं है। हम चाहते हैं मुल्क में चैन-ओ-अमन बना रहे। हम इसे कानूनी तौर पर लड़ेंगे और हमारा मानना है कि देश में मुसलमान हजारों साल से रह रहा है।’’ नए कानून के तहत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के जो सदस्य धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर 2014 तक भारत आ गए हैं, उन्हें अवैध प्रवासी नहीं समझा जाएगा और भारत की नागरिकता दी जाएगी।

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