नयी दिल्ली: भारत ने पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के लिए बीजिंग को जिम्मेदार ठहराते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि चीन मई के शुरू से ही वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बड़ी संख्या में सैनिक और युद्ध सामग्री जुटा रहा है तथा चीनी बलों का आचरण पारस्परिक सहमति वाले नियमों के प्रति पूर्ण अनादर का रहा है। इसने कहा कि मौजूदा स्थिति के जारी रहने से केवल माहौल ही खराब होगा और संबंधों के विकास पर इसका असर पड़ेगा। मई के शुरू में सैन्य गतिरोध शुरू होने के बाद से यह पहली बार है जब भारत ने एलएसी पर चीनी जमावड़े की बात औपचारिक रूप से स्वीकार की है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने एक ऑनलाइन ब्रीफिंग में पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास हुए घटनाक्रमों का क्रमिक ब्योरा दिया और 15 जून को गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया। प्रवक्ता ने कड़े शब्दों में कहा कि चीनी बलों का आचरण पारस्परिक सहमति वाले सभी नियमों के प्रति ‘‘पूर्ण अनादर’’ का रहा है।
श्रीवास्तव ने कहा कि भारत चाहता है कि चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता की त्वरित बहाली सुनिश्चित करने के लिए सैनिक हटाने पर दोनों पक्षों के बीच बनी समझ का ईमानदारी से ‘‘अनुसरण’’ करे। प्रवक्ता ने कहा, ‘‘मौजूदा स्थिति के जारी रहने से केवल माहौल ही खराब होगा और इसका संबंधों के विकास पर असर पड़ेगा।’’ विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने चीन पर ऐसे समय असामान्य रूप से तीखा हमला बोला है जब एक दिन पहले चीन के विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय ने गलवान घाटी संघर्ष के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया तथा भारतीय विदेश मंत्रालय पर घटना के बारे में झूठी सूचना फैलाने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि मई के शुरू में चीनी पक्ष ने गलवान घाटी क्षेत्र में भारत की ‘‘सामान्य, पारंपरिक’’ गश्त को बाधित करने वाली कार्रवाई की और मई के मध्य में इसने पश्चिमी सेक्टर के अन्य क्षेत्रों में यथास्थिति को बदलने की कोशिश की। श्रीवास्तव ने कहा कि यह विभिन्न द्विपक्षीय समझौतों के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है, खासकर 1993 में सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए हुए महत्वपूर्ण समझौते के प्रावधानों के अनुरूप, जो कहता है कि दोनों पक्ष एलएसी से लगते सीमावर्ती क्षेत्रों में अपने सैन्य बलों की मौजूदगी न्यूनतम स्तर पर रखेंगे।
उन्होंने कहा, ‘‘गलवान घाटी में चीन की स्थिति में हालिया बदलाव एक उदाहरण है।’’ श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘हमने चीन की कार्रवाई को लेकर कूटनीतिक और सैन्य दोनों माध्यमों से अपना विरोध दर्ज कराया था और यह स्पष्ट कर दिया था कि इस तरह का कोई भी बदलाव हमें अस्वीकार्य है।’’ उन्होंने कहा कि बाद में, छह जून को वरिष्ठ कमांडरों की बैठक हुई और तनाव कम करने तथा एलएसी से पीछे हटने पर सहमति बनी जिसमें ‘‘पारस्परिक कदम’’ उठाने की बात शामिल थी। श्रीवास्तव ने कहा कि दोनों पक्ष एलएसी का सम्मान और नियमों का पालन करने तथा यथास्थिति को बदलने वाली कोई कार्रवाई न करने पर सहमत हुए थे।
उन्होंने कहा, ‘‘चीनी पक्ष एलएसी के संबंध में बनी इस समझ से गलवान घाटी में पीछे हट गया और उसने एलएसी के बिलकुल पास ढांचे खड़े करने की कोशिश की।’’ प्रवक्ता ने कहा, ‘‘जब यह कोशिश विफल कर दी गई तो चीनी सैनिकों ने 15 जून को हिंसक कार्रवाई की जिसका परिणाम सैनिकों के हताहत होने के रूप में निकला। इसके बाद, दोनों पक्षों की क्षेत्र में बड़ी संख्या में तैनाती है, हालांकि सैन्य एवं कूटनीतिक संपर्क जारी हैं।’’ श्रीवास्तव ने कहा कि चीनी पक्ष मई के शुरू से ही एलएसी पर बड़ी संख्या में सैनिक और युद्धक सामग्री जुटा रहा है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘‘स्पष्ट तौर पर, भारत को भी जवाबी तैनाती करनी पड़ी और उसके बाद से तनाव स्वत: ही दिख रहा है।’’ उन्होंने कहा कि एलएसी का सम्मान और संबंधित नियमों का सख्ती से पालन करना सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता का आधार है जिसे 1993 और बाद के समझौतों में स्पष्ट तौर पर मान्यता दी गई थी। श्रीवास्तव ने कहा कि भारतीय सैनिक भारत-चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में एलएसी के संरेखण से भली-भांति परिचित हैं और पूरी ईमानदारी से इसका पालन करते हैं।
प्रवक्ता ने कहा, ‘‘वे (भारतीय सैनिक) गलवान घाटी सहित एलएसी पर लंबे समय से गश्त कर रहे हैं। भारत द्वारा बनाए गए सभी ढांचे एलएसी के भारतीय क्षेत्र में रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय पक्ष ने कभी एलएसी के पार कोई कार्रवाई नहीं की और यथास्थिति को कभी भी एकतरफा से ढंग से बदलने की कोशिश नहीं की। हालांकि, चीनी पक्ष की तरफ से ऐसा नहीं होता है और समय-समय पर टकराव की नौबत आती रहती है।’’
प्रवक्ता ने कहा कि भारत-चीन सीमा मुद्दे पर विमर्श और समन्वय कार्य तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) की बुधवार को हुई बैठक एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम थी। उन्होंने कहा कि इससे पहले 22 जून को वरिष्ठ सैन्य कमांडरों के बीच चर्चा हुई जो छह जून को उनके बीच बनी समझ को क्रियान्वित करने पर केंद्रित थी।