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कोविड-19 की दूसरी लहर ने बच्चों पर मनोवैज्ञानिक असर डाला: विशेषज्ञ

कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान स्क्रीन पर अधिक समय गुजारने, कोई सामाजिक मेल-जोल नहीं होने और माता-पिता के घर से काम करने के बावजूद बच्चों को पर्याप्त समय नहीं देने के कारण सभी उम्र वर्ग के बच्चों पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: June 28, 2021 21:19 IST
कोविड-19 की दूसरी लहर ने बच्चों पर मनोवैज्ञानिक असर डाला: विशेषज्ञ- India TV Hindi
Image Source : FREEPIK कोविड-19 की दूसरी लहर ने बच्चों पर मनोवैज्ञानिक असर डाला: विशेषज्ञ

नयी दिल्ली। कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान स्क्रीन पर अधिक समय गुजारने, कोई सामाजिक मेल-जोल नहीं होने और माता-पिता के घर से काम करने के बावजूद बच्चों को पर्याप्त समय नहीं देने के कारण सभी उम्र वर्ग के बच्चों पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है। द्वारका में आकाश हेल्थकेयर में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ मीना जे ने कहा कि बड़े उम्र के बच्चों में चिड़चिड़ापन, बेचैनी, घबराहट और व्यवहार से जुड़ी समस्याएं हो रही हैं तो दो से तीन साल की उम्र के बच्चों में देरी से विकास हो रहा है। 

डॉ मीना जे ने कहा, ‘‘बच्चे आम तौर पर दो से तीन साल की उम्र में बोलना शुरू कर देते हैं लेकिन हम देख रहे हैं कि बच्चे देरी से बोल रहे हैं। वे कुछ गतिविधियां करना सीख रहे हैं लेकिन उसे कर नहीं पा रहे हैं। उदाहरण के लिए कुछ बच्चे हैं जिन्हें शौचालय उपयोग का प्रशिक्षण दिया गया है लेकिन शौचालय जाने की जरूरत होने पर वे माता-पिता को नहीं बताते और बिस्तर गिला कर देते हैं।’’ जो बच्चे न तो किशोर हैं और न ही छोटे हैं, उन्हें पढ़ने में दिक्कत, अधिक नखरे दिखाना, गुस्सा दिखाना और सामाजिकता से दूरी बरतने जैसी व्यवहारगत दिक्कतें आ रही हैं। कुछ में सामाजिक डर और अजनबियों से घबराहट जैसी परेशानियां पनपने लगी हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जो बच्चे इलाज के लिए आते हैं वे हमसे बात करने से घबराते हैं।’’ 

विशेषज्ञों ने कहा कि लॉकडाउन, कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर की गंभीरता और संक्रमण का डर इसके मुख्य कारण हैं। इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में बालरोग गहन देखभाल विशेषज्ञ और वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ नमीत जेरथ ने कहा कि लॉकडाउन के लंबा खींचने के कारण बच्चों में असामान्य बर्ताव, नखरा, गुस्से वाला व्यवहार पैदा हो गया है क्योंकि बच्चे और माता पिता दोनों ही घर में रहने को मजबूर हैं। डॉ जेराठ के विचारों से सहमति जताते हुए मूलचंद हॉस्पिटल में मनोविज्ञानी, कंस्ल्टेंट डॉ जितेंद्र नागपाल ने कहा कि वे रोजाना ऐसे दो-तीन मामले देख रहे हैं और खासकर किशोरों के लिए यह बेहद मुश्किल वक्त है।

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