मुंबई: सरकार के देश में सभी लोगों के टीकाकरण के लिये राज्यों को मुफ्त टीकों की आपूर्ति और गरीबों को महामारी से निपटने में मदद के लिये नवंबर तक मुफ्त राशन उपलब्ध कराये जाने के निर्णय से राजकोषीय घाटे पर जीडीपी का केवल 0.4 प्रतिशत अतिरिक्त असर पड़ेगा। एक रिपोर्ट में यह कहा गया है। वित्तीय सेवा देने वाली कंपनी यूबीएस सिक्योरिटीज इंडिया की रिपोर्ट में राज्यों को प्रभावी तरीके से टीके के आबंटन को लेकर और पारदर्शी वितरण योजना का भी आह्वान किया गया है।
यूबीएस सिक्योरिटीज इंडिया की अर्थशास्त्री तन्वी गुप्ता जैन ने रिपोर्ट में कहा है कि 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को मुफ्त टीकाकरण तथा राशन की दुकानों से मुफ्त खाद्यान्न की उपलब्धता से राजकोषीय घाटे पर 2021-22 में केवल 0.40 प्रतिशत असर पड़ेगा। इससे घाटे का जीडीपी के 6.8 प्रतिशत से ऊपर जाने का जोखिम है।
उन्होंने कहा कि टीके की प्रति खुराक का औसत मूल्य 150 रुपये माने जाने तथा इतनी ही राशि ‘लॉजिस्टक’ और अन्य आपूर्ति व्यवस्था पर खर्च के आधार पर, हमारा अनुमान है कि केंद्र के ऊपर कुल 40,000 से 45,000 करोड़ रुपये या जीडीपी का 0.2 प्रतिशत का खर्च आएगा।
इसमें से 35,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था पहले ही बजट में की जा चुकी है। इसका मतलब है कि केंद्र को अधिकतम 10,000 करोड़ रुपये और आबंटित करने की जरूरत होगी। केंद्र ने सोमवार को टीकाकरण नीति में बदलाव की घोषणा की। यह घोषणा उच्चतम न्यायालय के टीकाकरण खरीद नीति पर बयान के कुछ दिनों बाद की गयी।
न्यायालय ने केंद्र की टीकाकरण खरीद नीति को मनमाना करार दिया था और इस मामले में सभी ‘फाइल नोटिंग’ उपलब्ध कराने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि केंद्र के इस कदम से यह सुनिश्चित होगा कि टीके का वितरण अब राज्यों की क्रय शक्ति के बजाय आवश्यकता पर आधारित होगा और राज्यों के लिये 18 से 44 वर्ष के लोगों को टीका लगाने के लिए निर्माताओं से सीधे खुराक खरीदने को लेकर उत्पन्न होने वाली समस्याएं दूर होंगी।
हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार राज्यों को प्रभावी तथा कुशल आबंटन के लिए टीका वितरण योजना को और अधिक पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है। टीकाकरण की यह नीति और मुफ्त खाद्यान्न वितरण नवंबर तक बढ़ाये जाने के बारे में अर्थशास्त्री ने कहा कि इसका राजकोषीय लागत जीडीपी का 0.4 प्रतिशत बैठेगी। सरकार के बही-खाते पर दबाव बना हुआ है।
केंद्र एवं राज्यों का राजकोषीय घाटा 2020-21 में बढ़कर जीडीपी का 13.3 प्रतिशत पहुंच गया जो 2019-20 में 7.8 प्रतिशत था। सरकार का अनुमान है कि केंद्र एवं राज्यों का संयुक्त रूप से राजकोषीय घाटा 2021-22 में जीडीपी का 10.3 प्रतिशत रहेगा।