नई दिल्ली. हिमालय में ग्लेशियर टूटने से पिछले सप्ताह आई आफत को लेकर यही अनुमान लगाया जा रहा है कि पहाड़ में हुई बर्फबारी से ग्लेशियर के नीचे का रॉकमास उसके भार को संभाल नहीं पाया होगा और वह गिर गया होगा। हालांकि ग्लैशियर यानी हिमनद के टूटकर गिरने की अन्य वजहों से भी वैज्ञानिक इनकार नहीं कर रहे हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) के डायरेक्टर कलांचद साई ने आईएएनएस को बताया कि प्रभावित क्षेत्र के सर्वेक्षण के दौरान वैज्ञानिकों द्वारा संग्रहित सैंपल का अभी अध्ययन चल रहा है जिससे इस संबंध में कुछ और जानकारी मिल सकती है।
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भूभौतिकी के विशेषज्ञ कलाचंद साईं ने IANS के साथ खास बातचीत के दौरान कहा कि ग्लैशियर जहां टूटा है, वहां की तस्वीर के साथ साथ चट्टान, गाद, पानी, बर्फ के सैंपल लेकर वैज्ञानिक आए हैं, जिनमें परस्पर संबंध का अध्ययन कर रहे हैं, क्योंकि ग्लेशियर के आइस यानी हिम और घाटी में पड़ने वाले स्नो में अंतर होता है। उन्होंने बताया कि ग्लेश्यिर का आइस चट्टान की तरह कठोर होता है और सैंपल में जो आइस का टुकड़ा लाया गया है, वह ऊपर से लुढ़ककर तपोवन तक आया है, जिसके चलते उसका आकार गोल हो गया है।
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उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में भी वैज्ञानिक घटनास्थल का दौरा करेंगे और उनके अध्ययन का सिलसिला अभी जारी रहेगा। डब्ल्यूआईएचजी के डायरेक्टर ने बताया कि रौंथी ग्लेशियर बैंक का जो कैचमेंट था वहां से एक बहुत बड़ा ग्लेशियर का टुकड़ा नीचे गिरा। उसके नीचे का रॉक मास काफी कमजोर हो गया था और उसके ऊपर जो ग्लेशियर था, उसके भार को वह संभाल नहीं पाया, इसलिए वह टूटकर गिर गया। उन्होंने कहा कि ग्लेशियर के उपर शायद कुछ बर्फबारी भी हुई होगी क्योंकि उससे दो तीन दिन पहले बर्फबारी हुई थी। इसके कारण वह क्रिटिकल जोन में पहुंच गया था। उन्होंने कहा, ''हमारा अनुमान है कि बर्फबारी की वजह से उसके भार से नीचे का रॉकमास गिर गया और उसके बाद उपर का हैंगिंग ग्लेशियर टूट गया।''
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ग्लेशियर और उसका मलबा नीचे रौंथी गदेरे पर गिरा और गदेरे के दोनों छोर के पहाड़ पर जीम बर्फ खिसकने लगी और बर्फ के साथ चट्टान और आसपास में जीम ऋषिगंगा नदी की तरफ बढ़ने लगी। उन्होंने बताया कि ऋषि गंगा के ऊपरी इलाके में एक झील बन गई है और उसकी भी तस्वीर लेकर वैज्ञानिक आए हैं। उत्तराखंड के चमोली जिला स्थित नीति घाटी के रैणी क्षेत्र में बीते रविवार को आई इस भयावह प्राकृतिक आपदा के बाद शुक्रवार को उत्तर भारत के कई इलाकों में भूकंप के झटके महसूस किए गए।
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ग्लेशियर फटने के पीछे भूकंप जैसी वजह के बारे में पूछे जाने पर कलाचंद साईं ने कहा, ''भूमि के कंपन से भूस्खलन होता है, लेकिन हालिया घटना को भूकंप से जोड़कर नहीं देखा जा रहा है कि हालांकि हम इसके सभी कारकों का अध्ययन कर रहे हैं, लेकिन इसके पीछे बहरहाल अत्यधिक बर्फबारी, नीचे रॉकमास का कमजोर होना और हैंगिंग ग्लेशियर जैसे एक साथ कई कारकों को देखा जा रहा है।'' पहाड़ में आपदा के पीछे मानव की दखल और विभिन्न विकास परियोजनाओं के कारण बनने के सवाल पर उन्होंने कहा कि विकास की जब कोई परियोजना शुरू की जाती है तो उसके पहले उसक प्रभावों का अध्ययन किया जाता है।
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हिमालय स्थित अन्य ग्लेशियरों में इस तरह के खतरे को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि इस संबंध में फिलहाल कोई डाटा नहीं है, लेकिन निरंतर अध्ययन की जरूरत है। हालांकि उन्होंने कहा कि हिमालय में 10,000 से अधिक ग्लेशियर हैं और उत्तराखंड में 1,000 से अधिक ग्लेशियर हैं और हिमालय में होने वाली ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का अलग-अलग कारण होता है। मसलन, 2013 में केदारनाथ की त्रासदी और हालिया ऋषिगंगा की घटना में अंतर है। उन्होंने बताया कि 2013 में क्लाउडबस्र्ट यानी बादल फटा था, जबकि हालिया घटना में ग्लेशियर टूटा है।
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