नई दिल्ली: केन्द्र सरकार लगभग पांच दशक पहले तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से भारत में आये करीब एक लाख चकमा और हजांग शरणार्थियों को जल्द ही भारतीय नागरिकता प्रदान कर देगी।
गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू ने आज यह जानकारी देते हुए बताया कि पूर्वोत्तर राज्यों में रह रहे अधिकांश चकमा और हजांग शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने से स्थानीय नागरिकों के अधिकारों में कोई कटौती नहीं होने दी जाएगी। चकमा और हजांग शरणार्थियों के मुद्दे पर केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में आज हुई उच्चस्तरीय बैठक में चर्चा की गयी।
उच्चतम न्यायालय ने साल 2015 में चकमा और हजांग शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का आदेश दिया था। इनमें से अधिकांश शरणार्थी अरुणाचल प्रदेश में रह रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, रिजीजू और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की मौजूदगी में हुई बैठक में अदालत के इस फैसले को लागू करने की कार्ययोजना पर चर्चा की गयी।
बैठक के बाद रिजीजू ने कहा कि इन शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने के लिए बीच का रास्ता अपनाया जायेगा जिससे न्यायपालिका के आदेश का पालन भी सुनिश्चित हो सके और स्थानीय लोगों के अधिकारों में कोई कटौती भी न हो। उन्होंने कहा कि चकमा शरणार्थी अरुणाचल प्रदेश में 1964 से रह रहे हैं और इन्हें नागरिकता देने संबंधी अदालत के आदेश का यथाशीघ्र पालन करने की जरूरत है। स्वयं अरुणाचल प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले रिजीजू ने भरोसा दिलाया कि इससे स्थानीय लोगों और आदिवासी समुदायों के नागरिक अधिकारों में कोई कटौती नहीं होगी।
अरुणाचल प्रदेश के तमाम सामाजिक संगठन शरणार्थियों को नागरिकता देने का विरोध कर रहे हैं। इनकी दलील है कि इससे राज्य की जनसांख्यिकी की स्थिति बदल जायेगी। इसके मद्देनजर केन्द्र सरकार बीच का रास्ता निकालने की कोशिश करते हुए चकमा और हजांग शरणार्थियों को जमीन खरीदने सहित अन्य अधिकार नहीं देने के प्रस्ताव सहित अन्य विकल्पों पर विचार कर रही है।
रिजीजू ने मौजूदा स्थिति के लिए कांग्रेस को कसूरवार ठहराते हुए कहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अरुणाचल प्रदेश में स्थानीय लोगों को विश्वास में लिए बिना इन शरणार्थियों को राज्य में बसाया था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने ऐसा कर स्थानीय लोगों के साथ घोर अन्याय किया और अब हम इस मामले में बीच का रास्ता निकालने का प्रयास कर रहे हैं जिससे अदालत के आदेश का भी सम्मान किया जा सके और स्थानीय लोगों के अधिकार भी प्रभावित नहीं हों। साथ ही चकमा और हजांग शरणार्थियों के मानवाधिकार भी सुरक्षित किये जा सकें।