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राजीव गांधी हत्याकांड के मुजरिमों की रिहाई के प्रस्ताव का केंद्र ने किया विरोध, कहा- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असर पड़ेगा

केन्द्र ने आज सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषियों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के प्रस्ताव का समर्थन नहीं करती है क्योंकि इन मुजरिमों की सजा की माफी से ‘‘खतरनाक परंपरा’’ पड़ेगी

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: August 10, 2018 17:20 IST
Supreme Court- India TV Hindi
Supreme Court

नयी दिल्ली: केन्द्र ने आज सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषियों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के प्रस्ताव का समर्थन नहीं करती है क्योंकि इन मुजरिमों की सजा की माफी से ‘‘खतरनाक परंपरा’’ पड़ेगी और इसके ‘अंतरराष्ट्रीय नतीजे’ होंगे। जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस के एम जोसेफ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने गृह मंत्रालय द्वारा इस संबंध में दायर दस्तावेज रिकार्ड पर लेने के बाद मामले की सुनवाई स्थगित कर दी। 

शीर्ष अदालत ने 23 जनवरी को केन्द्र सरकार से कहा था कि तमिलनाडु सरकार के 2016 के पत्र पर तीन महीने के भीतर निर्णय ले। राज्य सरकार राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषियों की सजा माफ करके उनकी रिहाई करने के निर्णय पर केन्द्र की सहमति चाहती है। राज्य सरकार ने इस संबंध में दो मार्च, 2016 को केन्द्र सरकार को पत्र लिखा था। इसमें कहा गया था कि राज्य सरकार ने इन सात दोषियों को रिहा करने का निर्णय लिया है परंतु शीर्ष अदालत के 2015 के आदेश के अनुरूप इसके लिये केन्द्र की सहमति लेना अनिवार्य है। 

केन्द्रीय गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव वी बी दुबे ने कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा है, ‘‘केन्द्र सरकार, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 435 का पालन करते हुये तमिलनाडु सरकार के दो मार्च, 2016 के पत्र में इन सात दोषियों की सजा और माफ करने के प्रस्ताव से सहमत नहीं है।’’ मंत्रालय ने कहा कि निचली अदालत ने दोषियों को मौत की सजा देने के बारे में ‘‘ठोस कारण’’ दिये हैं। मंत्रालय ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस हत्याकांड को देश में हुये अपराधों में सबसे घृणित कृत्य करार दिया था। 

मंत्रालय ने कहा कि चार विदेशियों, जिन्होंने तीन भारतीयों की मिलीभगत से देश के पूर्व प्रधान मंत्री और 15 अन्य की नृशंस हत्या की थी, को रिहा करने से बहुत ही खतरनाक परपंरा स्थापित होगी और भविष्य में ऐसे ही अन्य अपराधों के लिये इसके गंभीरतम अंतरराष्ट्रीय नतीजे हो सकते हैं। राजीव गांधी की 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनाव सभा के दौरान एक आत्मघाती महिला ने विस्फोट करके हत्या कर दी थी। बाद में इस महिला की पहचान धनु के रूप में हुयी। इस विस्फोट में धनु सहित 14 अन्य लोग भी मारे गये थे। 

यह संभवत: पहला मामला था कि जिसमें विश्व के एक प्रमुख नेता की आत्मघाती विस्फोट से हत्या की गयी थी। गृह मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा कि यह मामला देश के पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या से संबंधित है जिसमे एक विदेशी आतंकवादी संगठन ने बहुत ही सावधानी पूर्वक इसकी योजना तैयार करके इसे अंजाम दिया था। 

गृह मंत्रालय ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या की घटना ने देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ‘रोक’ दिया था क्योंकि इस वजह से उस समय लोकसभा और कुछ राज्यों की विधान सभा के चुनाव की प्रक्रिया स्थगित करनी पड़ी थी। इस हत्याकांड के सिलसिले में वी श्रीहरण उर्फ मुरूगन, टी सतेन्द्रराजा उर्फ संथम, ए जी पेरारिवलन उर्फ अरिवु, जयकुमार, राबर्ट पायस, पी रविचन्द्रन और नलिनी 25 साल से जेल में बंद हैं।

शीर्ष अदालत ने 18 फरवरी, 2014 को तीन मुजरिमों-मुरूगन, संथम और पेरारिवलन- की मौत की सजा उम्र कैद में तब्दील कर दी थी क्योंकि उनकी दया याचिकाओं पर फैसला लेने में अत्यधिक विलंब हुआ था। न्यायालय की इस व्यवस्था के एक दिन बाद 19 फरवरी, 2014 को तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयलिलता की सरकार ने केन्द्र में संप्रग सरकार को पत्र लिखकर सभी सात मुजरिमों की सजा माफ करने के बारे में उसकी सलाह मांगी थी। 

इस पत्र पर कोई सलाह देने की बजाये केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट आयी और दावा किया कि इन कैदियों की सजा माफ करने के मामले में दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत राज्य सरकार नहीं बल्कि वह खुद सक्षम प्राधिकार है। 

इस मामले में शीर्ष अदालत ने 21 फरवरी, 2014 को अपने अंतरिम आदेश में सभी सात मुजरिमों की रिाई पर रोक लगा दी और सारे प्रकरण को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेज दिया था। संविधान पीठ ने दो दिसंबर, 2015 को अपने फैसले में कहा कि सजा माफ करने के राज्य के अधिकार पर केन्द्र को प्राथिमकता प्राप्त है और चुनिन्दा मामलों में कैदियों को रिहा करने से पहले उसकी सहमति आवश्यक है। (भाषा)

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