नयी दिल्ली: सीबीआई बनाम सीबीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट से फिलहाल सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को राहत नहीं मिली है। कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर को होगी।
भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी वर्मा ने भ्रष्टाचार के आरोपों के मद्देनजर उन्हें सीबीआई निदेशक के अधिकारों से वंचित कर अवकाश पर भेजने के सरकार के निर्णय को चुनौती दी है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ वर्मा के सील बंद लिफाफे में दिये गये जवाब पर विचार कर सकती है। केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने वर्मा के खिलाफ प्रारंभिक जांच करके अपनी रिपोर्ट दी थी और वर्मा का इसी पर जवाब दिया गया है।
पीठ को आलोक वर्मा द्वारा सीलबंद लिफाफे में न्यायालय को सौंपे गये जवाब पर 20 नवंबर को विचार करना था। किंतु उनके खिलाफ सीवीसी के निष्कर्ष कथित रूप से मीडिया में लीक होने और जांच एजेन्सी के उपमहानिरीक्षक मनीष कुमार सिन्हा द्वारा एक अलग अर्जी में लगाये गये आरोप मीडिया में प्रकाशित होने पर न्यायालय ने कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुये सुनवाई स्थगित कर दी थी।
पीठ द्वारा जांच एजेन्सी के कार्यवाहक निदेशक एम नागेश्वर राव की रिपोर्ट पर भी विचार किये जाने की संभावना है। नागेश्वर राव ने 23 से 26 अक्टूबर के दौरान उनके द्वारा लिये गये फैसलों के बारे में सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट दाखिल की है। इसके अलावा, जांच एजेन्सी के अधिकारियों के खिलाफ शीर्ष अदालत की निगरानी में स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली जनहित याचिका पर भी पीठ सुनवाई कर सकती है। गैर सरकारी संगठन कामन काज ने यह याचिका दाखिल की है।
न्यायालय ने 20 नवंबर के स्पष्ट किया था कि वह किसी भी पक्षकार को नहीं सुनेगी और यह उसके द्वारा उठाये गये मुद्दों तक ही सीमित रहेगी। सीवीसी के निष्कर्षो पर आलोक वर्मा का गोपनीय जवाब कथित रूप से लीक होने पर नाराज न्यायालय ने कहा था कि वह जांच एजेन्सी की गरिमा बनाये रखने के लिये एजेंसी के निदेशक के जवाब को गोपनीय रखना चाहता था।
उपमहानिरीक्षक सिन्हा ने 19 नवंबर को अपने आवेदन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, केन्द्रीय मंत्री हरिभाई पी चौधरी, सीवीसी के वी चौधरी पर भी सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच में हस्तक्षेप करने के प्रयास करने के आरोप लगाये थे।