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IAS की जान पर खतरा: सुरक्षा मुहैया नहीं कराने पर CAT ने बिहार सरकार को लगाई फटकार

केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) ने ट्रांसपोर्ट माफिया से अपनी जान पर खतरा होने की बार बार शिकायत करने वाले एक आईएएस अधिकारी को सुरक्षा प्रदान नहीं करने पर बिहार सरकार की खिंचाई की है और कहा कि उसे सत्येंद्र दुबे हत्याकांड की पुनरावृति की आशंका है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: April 17, 2018 19:07 IST
Nitish kumar- India TV Hindi
Nitish kumar

नयी दिल्ली: केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) ने ट्रांसपोर्ट माफिया से अपनी जान पर खतरा होने की बार बार शिकायत करने वाले एक आईएएस अधिकारी को सुरक्षा प्रदान नहीं करने पर बिहार सरकार की खिंचाई की है और कहा कि उसे सत्येंद्र दुबे हत्याकांड की पुनरावृति की आशंका है। कैट अध्यक्ष जस्टिस प्रमोद कोहली की अगुवाई वाली प्रधान पीठ ने कहा कि उनकी जान की रक्षा करना केंद्र और बिहार सरकार का दायित्व है। 

न्यायाधिकरण वर्ष 2013 बैच के आईएएस अधिकारी जितेंद्र गुप्ता की शिकायत पर सुनवाई कर रहा है। उन्होंने बिहार में ‘ ट्रांसपोर्ट माफिया ’ पर सख्त कदम उठाने पर अपनी जान पर खतरा मंडराने का आरोप लगाते हुए बिहार से हरियाणा तबादला करने की मांग की है। पीठ ने कहा , ‘‘ यदि उन्हें बिहार से नहीं निकाला गया तो हमें डर है कि सत्येंद्र दुबे हत्याकांड की पुनरावृति हो सकती है। बिहार के गया में एनएचएआई में परियोजना निदेशक के तौर पर काम करने वाले युवा इंजीनियर दुबे ने अपनी जान पर खतरा की आशंका प्रकट की थी और सुरक्षा मांगी थी लेकिन उन्हें सुरक्षा नहीं दी गयी थी। बाद में सड़क निर्माण माफिया ने उनकी हत्या कर दी थी। ’’ 

पीठ ने कहा कि बड़ा दुर्भाग्य है कि राज्य ने अधिकारी और उनके परिवार के सदस्यों को निजी सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। उसने हरियाणा तबादला किये जाने के अधिकारी के अनुरोध को ठुकराने के केंद्र के फैसले को भी खारिज कर दिया। गुप्ता ने आरोप लगाया है कि राज्य सतर्कता विभाग की मिलीभगत से माफिया ने उन्हें एक झूठे मामले में फंसा दिया और आरोप लगाया कि उन्होंने तीन जुलाई , 2016 को चार ट्रकों को जब्त किया था और उन्हें छोड़ने के लिए रिश्वत मांगी थी। उन्होंने कहा कि उन्हें इस मामले में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें एक महीने सलाखों के पीछे रहना पड़ा। जमानत पर रिहा होने के बाद वह अपने विरुद्ध दर्ज प्राथिमकी रद्द करवाने पटना हाईकोर्ट पहुंचे। उच्च न्यायालय ने 28 अक्तूबर , 2016 को यह प्राथमिकी रद्द कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा था। 

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