नई दिल्ली: भारत के घरेलू मामलों में विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ नरेंद्र मोदी सरकार के कड़े रुख से कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को अपनी बयानबाजी और किसान आंदोलन को समर्थन देने से पीछे हटना पड़ा है। पिछले हफ्ते ट्रूडो ने भारत के किसान आंदोलन को अपना समर्थन दिया था, यह दावा करते हुए कि स्थिति चिंताजनक है। टोरंटो में सूत्रों ने बताया कि ट्रूडो की टिप्पणी पर मोदी सरकार के नई दिल्ली में कनाडाई उच्चायुक्त को बुलाने और विदेश मंत्री एस जयशंकर के इस घोषणा के बाद कि वो कोविड-19 (MCGC) पर कनाडा के नेतृत्व वाले मंत्री समन्वय समूह को छोड़ देंगे, कनाडा के सरकारी हलकों में दहशत फैल गई।
भारत और कनाडा के बीच कम हुआ व्यापार
भारत सरकार ने स्पष्ट संदेश भेजा था कि इस तरह के व्यवहार से द्विपक्षीय व्यापार प्रभावित होगा क्योंकि यह ट्रूडो सरकार में पहले भी हो चुका है। भारत और कनाडा के बीच द्विपक्षीय व्यापार ट्रूडो के खालिस्तानी समर्थक दृष्टिकोण के चलते 2017-18 से 2018-19 तक लगभग 1 बिलियन डॉलर कम हो गया। भारत और कनाडा के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2017-18 में 7.23 बिलियन डॉलर का था। इस अवधि में कनाडा को भारत का निर्यात 2.51 बिलियन डॉलर और कनाडा से आयात 4.72 बिलियन डॉलर था, जो कि 2018-19 में 6.3 बिलियन डॉलर का था।
भारत में हैं कनाडा की 400 से ज्यादा कंपनियां
कनाडाई निवेशक भारत को निवेश के लिए एक आकर्षक देश मानते हैं, विशेषकर कोरोना वायरस के बाद की अवधि में। 400 से अधिक कनाडाई कंपनियों की भारत में मौजूदगी है, और 1,000 से अधिक कंपनियां सक्रिय रूप से भारतीय बाजार में कारोबार कर रही हैं। कनाडा दाल, अखबारी कागज, लकड़ी के गूदे, अभ्रक, पोटाश, लोहे के स्क्रैप, तांबा, खनिज और औद्योगिक रसायनों का निर्यात करता है और चाहता है कि भारत और अधिक आयात करे। सूत्रों ने कहा कि कनाडा के कारोबारी चाहते हैं कि उनकी सरकार भारत के साथ व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) और द्विपक्षीय निवेश संवर्धन और भागीदारी समझौते (BIPPA) पर हस्ताक्षर करे।
अब नरम पड़ गया है ट्रूडो का रुख
सूत्रों ने कहा कि कनाडा में भारतीय उच्चायोग की कूटनीति के बाद ट्रूडो ने अब अपना रुख नरम कर लिया है। ट्रूडो ने कहा, कनाडा हमेशा दुनिया भर में कहीं भी शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार के लिए खड़ा रहेगा और हम डी-एस्केलेशन और बातचीत की ओर कदम बढ़ते देख खुश हैं। सूत्रों ने कहा कि ट्रूडो के किसान आंदोलन पर भारत के खिलाफ पहले की बयानबाजी उनकी राजनीतिक मजबूरियों से प्रेरित थी, वह अपने दूसरे कार्यकाल में अल्पमत की सरकार चला रहे हैं और उन्हें सिख वोट बैंक की जरूरत है। कनाडा में 6 लाख सिख प्रवासी हैं, जिनको ट्रूडो की लिबरल पार्टी से लेकर सभी दल अपनी ओर खींचना चाहते हैं।
खालिस्तानी आंदोलन के समर्थक रहे हैं कई कनाडाई सिख
कनाडा में सिखों का एक बड़ा वर्ग वैचारिक रूप से खालिस्तान आंदोलन का समर्थक रहा है। 1980 के दशक के दौरान पंजाब में एक हिंसक अलगाववादी सिख आतंकवादी आंदोलन, पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित था। पंजाब में हजारों निर्दोष लोगों को खालिस्तानी आतंकवादियों ने मार डाला, जिसके बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने उन्हें पूरी तरह से बाहर निकाल दिया। हालांकि, पंजाब में उग्रवाद का सफाया हो चुका है, पिछले 5 सालों में, पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी ISI कनाडा, यूके और अन्य जगहों पर सिख प्रवासियों की मदद से आंदोलन को फिर से जीवित करने का प्रयास कर रही है।