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‘कुछ तुझ में हूं मैं, कुछ मुझसे में है तू’: हम से ये दुश्मनी निभाई न जाएगी!

भारत और पाकिस्तान का अतीत साझा लेकिन वर्तमान बंटा हुआ है। यह भी सच है कि भारत-पाकिस्तान का नाम आज सिर्फ आपसी मनमुटाव के बारे में लिया जाता है लेकिन दोनों मुल्कों में करीब सात दशक बाद आज भी आपसी एकता की कई निशानियां मौजूद हैं।

Reported by: PTI
Published : March 14, 2019 15:50 IST
Call me by your name: Archiving history and present of...
Call me by your name: Archiving history and present of arch-rivals India and Pakistan

नई दिल्ली: भारत-पाकिस्तान को सरहदें भले ही बांटती हों, लेकिन दोनों मुल्कों में कुछ ऐसी मूक निशानियां हैं जो आज भी सीमाओं और अपने-पराये के भेद को तोड़कर ‘कुछ अपना सा’ बयां करती हैं। इतिहास के आईने से झांकते कुछ नाम आज भी उसी खामोशी से ‘तुझमें भी मैं हूं’ का संदेशा देते हैं।

ये हिंदुस्तान का गुजरात और वो पाकिस्तान का गुजरात, ये हमारा हैदराबाद तो वो उनका हैदराबाद ...सरहद के उस पार लाहौर में भी दिल्ली की महक बिखेरता दिल्ली गेट मिलेगा तो भारत के पटियाला में लाहौरी गेट से आज भी उस देश की खुशबू आती है। भारत में ‘कराची हलवे’ के शौकीन हर नुक्कड़ पर मिल जाएंगे तो पाकिस्तान में भी ‘बंगाली समोसे’ के मुरीद कम नहीं हैं। विभाजन के बाद से दशकों से चली आ रही अशांति के बीच ये कुछ नाम आज भी ऐसी जिद से खड़े हैं, मानो शत्रुता से भरे माहौल में एकता और अखंडता का संदेश देते हुए कहते हों कि दोनों पड़ोसी मुल्क न सिर्फ सीमाएं साझा करते हैं बल्कि सदियों पुरानी सांस्कृतिक विरासत भी एक दूसरे से बांटते हैं।

भारत और पाकिस्तान का अतीत साझा लेकिन वर्तमान बंटा हुआ है। यह भी सच है कि भारत-पाकिस्तान का नाम आज सिर्फ आपसी मनमुटाव के बारे में लिया जाता है लेकिन दोनों मुल्कों में करीब सात दशक बाद आज भी आपसी एकता की कई निशानियां मौजूद हैं। फिर चाहे वह गलियां, दुकानें, स्मारक, खाने-पीने की चीजें हों या और भी बहुत कुछ, इनका जिक्र दोनों देशों के इतिहासकार करते हैं।

पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद हालिया तनाव बढ़ने से यह विरासत भी बढ़ते तनाव के साये में आ गई है। 14 फरवरी के आतंकवादी हमले की घटना के बाद अहमदाबाद और बेंगलुरु में ‘कराची बेकरी’ लोगों के कोप का शिकार बनी। पुलवामा हमले के बाद 1971 के बाद से पहली बार दोनों देशों की वायुसेनाओं के बीच 27 फरवरी को पहली बार हवाई झड़प हुई, इसी दरम्यान पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के पायलट को अपने कब्जे में ले लिया। हालांकि इसके तीन दिन बाद विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को एक मार्च को रिहा कर दिया गया।

दोनों दुकानों के प्रबंधनों को कुछ लोगों ने अपने साइनबोर्ड से ‘कराची’ नाम ढंकने की हिदायत दी क्योंकि बेकरी के नाम के साथ कराची शहर का नाम जुड़ा है। इसके बाद उन्होंने अपनी भारतीयता के प्रदर्शन के लिए एक पोस्टर के साथ तिरंगा भी लगाया, जिसमें लिखा था कि इस ब्रैंड की स्थापना विभाजन के बाद भारत आए खानचंद रामनानी नामक एक सिंधी ने 1953 में की थी और वह ‘‘दिल से पूर्ण भारतीय’’ हैं।

इस खौफ का असर राष्ट्रीय राजधानी सहित अन्य शहरों में भी दिखा। पुरानी दिल्ली के एक कारोबारी ने कहा, ‘‘मैं आपको केवल इतना बता सकता हूं कि हम उतने ही भारतीय हैं जितना कि यहां सड़क पर खड़े होने या कारोबार करने वाला कोई व्यक्ति। मेरी दुकान के नाम से इस देश के लिए मेरी निष्ठा पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए। मेरी यह दुकान 50 साल से अधिक समय से है।’’

बहरहाल विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान का उल्लेख वाले नामों को बदलना न तो राष्ट्रवाद है और न ही यह कोई बहादुरी का काम है। हाल में प्रकाशित किताब ‘‘द पार्टिशन ऑफ इंडिया’’ के संपादक अमित रंजन ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘भारत में भी गुजरात (राज्य) है तो पाकिस्तान के पंजाब में एक जिले को गुजरात कहते हैं। वहां सिंध में एक शहर हैदराबाद है तो हमारे यहां भी हैदराबाद शहर है। यहां तक कि बाजवा, सेठी, राठौड़, चौधरी आदि जैसे उपनाम भी दोनों देशों में इस्तेमाल किए जाते हैं। हम लोग भूगोल नहीं बदल सकते और न ही अपने साझा इतिहास को मिटा सकते हैं।’’

पाकिस्तान में शहरों के नाम पर भोजन, जगह और दुकानों के नामों का जिक्र करते हुए सांस्कृति इतिहासविद सोहेल हाशमी ने कहा कि यह सब विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण से पहले के हैं। उन्होंने कहा, ‘‘पहाड़गंज में मुल्तानी ढांडा नामक एक जगह है लेकिन अब मुल्तान पाकिस्तान में है। यह पाकिस्तान के बनने की कहानी कहता है। ये जगहें अब भारत में हैं और सिर्फ इसलिए उनके नामों को क्या बदलना होगा? हमें निश्चित रूप से यह समझना चाहिए कि लोग जब पलायन करते हैं तब भी वे अपने नाम के साथ अपने जगह का नाम ढोते हैं।’’ उन्होंने सवाल पूछते हुए कहा, ‘‘...एक विशेष तरह का हलवा है, जो कहीं भी चले जाइए, कराची हलवे के नाम से ही मशहूर है। आप इसका क्या करेंगे, क्या इसे दिल्ली हलवा या पटियाला हलवा कहेंगे?’’

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