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हम असमिया अंतिम सांस तक लड़ने वाले हैं, जनता की आवाज बुलंद रहेगी: समुज्जल भट्टाचार्य

असम में 1979 से 1985 तक ऐतिहासिक आंदोलन की अगुवाई कर चुका आसू अब नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है। प्रदर्शनकारियों का मानना है कि यह कानून 1985 के असम समझौते का उल्लंघन है और वे इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

Reported by: Bhasha
Published on: December 21, 2019 16:56 IST
Assam- India TV Hindi
Image Source : PTI A protestor hangs Assamese traditional 'gamusas' with various messages as part of a demonstration against the Citizenship Amendment Act (CAA) in Dibrugarh.

गुवाहाटी। ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने साफ किया कि जब तक संशोधित नागरिकता कानून को वापस नहीं लिया जाता, तब तक इसका गांधीवादी तरीके से विरोध जारी रहेगा। भट्टाचार्य ने कहा कि असमिया लोग अंतिम सांस तक लड़ने वाले हैं और उनकी आवाज बुलंद रहेगी।

असम में 1979 से 1985 तक ऐतिहासिक आंदोलन की अगुवाई कर चुका आसू अब नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है। प्रदर्शनकारियों का मानना है कि यह कानून 1985 के असम समझौते का उल्लंघन है और वे इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, "हमने नागरिकता (संशोधन) विधेयक का पुरजोर विरोध किया और हम सीएए के भी खिलाफ हैं। असम के लोग अथक भाव के साथ इसका विरोध जारी रखेंगे। हम हार नहीं मानने वाले, हम तब तक लड़ेंगे जब तक सीएए को निरस्त नहीं कर दिया जाता।"

असम आंदोलन का भी हिस्सा रहे भट्टाचार्य ने कहा कि सीएए विरोधी आंदोलन "अभूतपूर्व एकजुटता" का गवाह बना है। भट्टाचार्य ने पीटीआई-भाषा को दिये साक्षात्कार में कहा, "मैंने 80 के दशक में असम आंदोलन के दौरान लोगों को प्रदर्शन करते देखा है, लेकिन जिस तरह से इतने कम समय में इतनी बड़ी संख्या में असम के लोग ने बाहर निकले हैं उसे देखकर तो यही लगता है कि वह नागरिकता (संशोधन) कानून को थोपने की वजह से दर्द का सामना कर रहे हैं।"

यह पूछे जाने पर कि यदि सरकार उनकी मांगों का जवाब नहीं देती तो क्या आसू और जनता लंबे समय तक इस आंदोलन को कायम रख पाएंगे तो उन्होंने कहा, "हम असमिया अंत तक लड़ने वाले हैं।" उन्होंने कहा, "यह आंदोलन हिंदुओं, मुसलमानों या बंगालियों का नहीं बल्कि सभी असमिया लोगों का है, भले ही उनकी धार्मिक आस्था या आर्थिक वर्ग कुछ भी हो। यह हमारे असम और असमिया गौरव से जुड़ा है। हमने सत्याग्रह और अंहिसा के गांधीवादी तरीकों पर चलते हुए बिना कोई समझौता किये विरोध किया है और मुझे लगता है कि अंततः लोगों की आवाजें प्रबल होंगी।"

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