क्या है मनुस्मृति के श्लोकों का सच ?
स्त्री को आजाद मत रहने दो
स्त्री चाहे बालिका हो, युवती हो या वृद्धा उसे अपने घर में भी कोई काम स्वतंत्रता से नहीं करना चाहिए। बचपन में अपने पिता के, युवावस्था में पति के और बाद में अपने पुत्रों के अधीन बनकर रहना चाहिए। स्त्री को अपने पिता, पति और पुत्रों से अलग कभी नहीं होना चाहिए। ऐसी स्वच्छंद स्त्रियां पिता और पति दोनों के कुलों की बदनामी कराती हैं।
जाल में फंसाती हैं महिलाएं
पुरुषों को अपने जाल में फंसा लेना तो स्त्रियों का स्वभाव ही है इसलिए समझदार लोग स्त्रियों के साथ होने पर चौकन्ने रहते हैं, क्योंकि काम क्रोध के वश में हो जाने की कमजोरी को भड़काकर स्त्रियां, मूर्ख ही नहीं विद्वान पुरुषों तक को विचलित कर देती हैं। मनुस्मृति बेहद प्राचीन ग्रंथ है यहां तक कि कहा जाता है मनु के नाम पर ही मानव शब्द बना यानी महिलाओं के लिए तमाम लक्ष्मण रेखाएं मनुस्मृति ने सभ्यता के विकास से पहले ही खींच दी थी।
पति की सेवा में ही स्वर्ग है
मनुस्मृति कहती है- स्त्री का पति दुष्ट, कामी हो तो भी एक साध्वी स्त्री को उसकी देवता के समान सेवा और पूजा करनी चाहिए। स्त्री को अपने पति से अलग कोई यज्ञ, व्रत या उपवास नहीं करना चाहिए क्योंकि पति की सेवा से ही उसे स्वर्ग मिल जाता है।
आज के दौर में ऐसी पोंगापंथी बातें सुनकर किस महिला का खून नहीं खौल उठेगा ? क्या हिंदुस्तान की आजादी के बाद भी महिलाओं ने जिस तरह की गुलामी झेली है उसके लिए मनुस्मृति जैसे ग्रंथ जिम्मेदार नहीं हैं ? परेशानी ये है कि मनुस्मृति में सिर्फ महिलाओं को बेड़ियों में जकड़कर रखने की बात नहीं की गई, उसके वजूद को ही बेहद अजीब ढंग से पेश किया गया है। कुछ श्लोक तो स्त्री को बुराइयों का पुलिंदा बताते हैं। मनुस्मृति के एक श्लोक में कहा गया है-
स्त्री में कूट-कूट कर भरी हैं बुराइयां
मनुस्मृति के एक श्लोक में कहा गया है- पुरुषों में स्त्रियां न रूप देखती हैं न उम्र..जैसा भी पुरुष मिल जाये उसी के साथ भोग-रत हो जाती हैं। स्त्रियां हमेशा पुरुष के साथ की इच्छा रखने वाली, चंचल और निर्दयी होती हैं इसलिए कितनी भी कोशिश की जाए वो पतियों के प्रति वफादार नहीं रह जाती। ये बुराइयां स्त्रियों में सृष्टि की शुरुआत से ही मौजूद हैं। ईश्वर ने नारी की रचना करते समय ही उसमें शय्या, आसन, आभूषण के प्रति मोह और काम, क्रोध, बेईमानी, द्वेष और चरित्रहीनता जैसे दुर्गुण कूट-कूट कर भर दिए।
कहते हैं कोई भी समाज, उसमें रहने वालों की सोच से बनता है। इसमें कोई शक नहीं कि मनुस्मृति के ढेरों श्लोक महिलाओं के बारे में बेहद गलत सोच पैदा करने वाले हैं। शायद यही वजह है कि जिस 25 दिसंबर को 'मनुस्मृति दहन दिवस' मनाया जाता है उसी दिन को कुछ महिला समूह 'भारतीय महिला दिवस' भी मनाना चाहते हैं।