पैराडाइज़ पेपर्स लीक मामले में कई देशों के बड़े-बड़े लोगों के नाम आए हैं. इनमें राजनेताओं, फ़िल्म कलाकारों, उद्योगपतियों, सेलेब्रिटीज़ और धन्नासेठों के नाम हैं. इन्ही नामों में एक नाम है ब्रिटेन की महारीनी एलिज़ाबेथ का. महारानी के अलावा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रपं के वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस पर भी शक़ की सुई है.
महारानी को क्यों ज़रुरत पड़ी विदेश में निवेश की?
द पैराडाइज़ पेपर्स ख़ुलासे से पता चला है कि ब्रितानी महारानी के निजी धन में से क़रीब एक करोड़ पाउंड विदेश में निवेश किए गए हैं. ये पैसा डची ऑफ़ लेंकास्टर ने कैयमन आइलैंड्स और बरमुडा के फंड में निवेश किया था. ये महारानी को आय देते हैं और उनके क़रीब 50 करोड़ पाउंड की निजी जागीर के निवेशों को संभालते हैं. इन निवेशों में कुछ भी ग़ैरक़ानूनी नहीं है और इसके कोई संकेत भी नहीं है कि महारानी कर चोरी करती रही हैं लेकिन सवाल ये है कि महारानी को विदेश में निवेश करना चाहिए था या नहीं?
ग़रीबों का शोषण करने के आरोप झेलने वाले रीटेलर समूह ब्राइटहाउस में भी छोटे निवेश किए. ऑफ़-लाइसेंस फर्म थ्रेशर्स में भी निवेश किया गया. इस कंपनी ने बाद में 1.75 करोड़ पाउंड की देनदारी के साथ अपना काम बंद कर दिया था, जिससे 6 हज़ार लोगों की नौकरी चली गई थी.
डोनाल्ड ट्रंप के मंत्री भी फंसे
बताया जाता है कि 90 के दशक में विल्बर रॉस ने डोनल्ड ट्रंप को दीवालिया होने से बचाया था और ट्रंप ने अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद उन्हें वाणिज्य मंत्री बनाकर ''कर्ज़ अदायगी'' की. दस्तावेज़ों से पता चलता है कि रॉस ने एक जहाजरानी कंपनी में निवेश बरक़रार रखा जो रूस की एक ऊर्जा कंपनी के लिए गैस और तेल की आवाजाही करके सालाना करोड़ों डॉलर कमाती है. रूस की ऊर्जा फर्म में व्लादिमीर पुतिन के दामाद और अमरीका के प्रतिबंधों का सामना कर रहे दो लोगों का भी निवेश है. पेपेर्स लीक के बाद अब एक बार फिर डोनल्ड ट्रंप की टीम और रूस के बीच संबंधों को लेकर सवाल उठेंगे. राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल इन आरोपों के साये में है कि रूस ने बीते साल हुए अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों के नतीजों को प्रभावित करने में भूमिका निभाई है.
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