मुम्बई:बॉम्बे हाईकोर्ट ने सांप्रदायिक अशांति फैलाने और अवैध गतिविधियां चलाने के आरोपों का सामना कर रहे विवादास्पद इस्लामी उपदेशक जाकिर नाईक को राहत देने से आज इनकार कर दिया तथा कहा कि उसने जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करने में कोई दिलचस्पी या इच्छा नहीं दिखाई है। जस्टिस आर एम सावंत और जस्टिस रेवती मोहिते डेरे की खंडपीठ नाईक की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी कि जिसमें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) को उसके खिलाफ की गयी जांच की रिपोर्ट सौंपने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
अदालत ने अपने आदेश में कहा , ‘‘याचिका में मांगी गयी अन्य राहतों के संदर्भ में ........ हमें यह नजर नहीं आता कि यह अदालत कैसे इन बिन्दुओं पर विचार कर सकती है जब कि याचिकाकर्ता जांच एजेंसियों के सामने पेश ही नहीं हुआ। याचिकाकर्ता मलेशिया में बैठा है और वह जांच एजेंसियों को जांच रिपोर्ट जमा करने का निर्देश देने की मांग कर रहा है। ’’
नाईक के खिलाफ आईपीसी की धारा 153 (ए) (विभिन्न धर्मों के बीच वैमनस्य फैलाना) और अवैध गतिविधि रोकथाम अधिनियम की धाराएं 10,13 और 18 (जिनका संबंध अवैध संघ से संबंधित होने , गैर कनूनी गतिविधियों को बढ़ावा और आपराधिक साजिश से है) के तहत मामला दर्ज है। अदालत ने कहा कि आदर्श स्थिति तो यह है कि नाईक को भारत आना चाहिए था और जांच एजेंसियों के सामने पेश होना चाहिए, ‘इतनी दूर से बात आगे नहीं बढ़ती। याचिकाकर्ता की गैरहाजिरी में हम कैसे ऐसी याचिकाओं पर विचार कर सकते हैं।’
नाईक एनआईए और ईडी की जांच का सामना कर रहा है क्योंकि बांग्लादेश ने कहा था कि पीस टीवी पर उसका भाषण ढाका में 2016 के हमले की एक वजह था। इस हमले में 22 लोगों की जान चली गयी थी। नाईक के गैर सरकारी संगठन इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन को 2016 में ही अवैध घोषित किया जा चुका है और इस मामले में 18 करोड़ रूपए से अधिक की रकम के मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की प्रवर्तन निदेशालय जांच कर रहा है।