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विरोध के बाद अब दिल्ली दंगों पर किताब पब्लिश नहीं करेगा Bloomsbury, कपिल मिश्रा भड़के

ब्लूम्सबरी इंडिया (Bloomsbury India) ने शनिवार को फरवरी के दिल्ली दंगों से जुड़ी एक किताब का प्रकाशन नहीं करने की घोषणा की। प्रकाशन संस्था ने यह घोषणा उनकी जानकारी के बिना किताब के बारे में एक ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किये जाने के बाद की।

Reported by: Bhasha
Published on: August 23, 2020 0:00 IST
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Image Source : PTI FILE ब्लूम्सबरी इंडिया (Bloomsbury India) ने शनिवार को फरवरी के दिल्ली दंगों से जुड़ी एक किताब का प्रकाशन नहीं करने की घोषणा की।

नई दिल्ली: ब्लूम्सबरी इंडिया (Bloomsbury India) ने शनिवार को फरवरी के दिल्ली दंगों से जुड़ी एक किताब का प्रकाशन नहीं करने की घोषणा की। प्रकाशन संस्था ने यह घोषणा उनकी जानकारी के बिना किताब के बारे में एक ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किये जाने के बाद की। हालांकि इस किताब की लेखिकाओं- वकील मोनिका अरोड़ा, दिल्ली विश्वविद्यालय की शिक्षकाएं सोनाली चितलकर और प्रेरणा मल्होत्रा ने कहा कि भले ही एक प्रकाशक ने इनकार कर दिया हो सकता है लेकिन पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए कई अन्य हैं।

कपिला मिश्रा की एंट्री के बाद हुआ फैसला?

बता दें कि इस प्रकाशन संस्था को शुक्रवार को उस समय व्यापक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा जब शनिवार को किताब के लोकार्पण का एक कथित विज्ञापन सामने आया और इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में भाजपा नेता कपिल मिश्रा को दिखाया गया। उत्तर पूर्वी दिल्ली में 23 फरवरी को हिंसा भड़कने के पहले ऐसे आरोप लगाए गए थे कि मिश्रा समेत कई नेताओं ने भड़काऊ भाषण दिए। ब्लूम्सबरी इंडिया ने एक बयान जारी कर कहा कि वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्के हिमायती हैं लेकिन समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को लेकर भी उतने ही सचेत हैं।


‘बोलने की स्वतंत्रता के ठेकेदार डरते हैं कि...’
ब्लूम्सबरी इंडिया फरवरी में हुए दिल्ली दंगों के बारे में ‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ (Delhi Riots 2020: The Untold Story) इस साल सितंबर में प्रकाशित करने वाला था। लेखिका मोनिका अरोड़ा ने कहा, ‘यदि एक प्रकाशक मना करता है, तो 10 और आ जाएंगे। बोलने की आजादी के मसीहा इस किताब से डरे हुए हैं।’ वहीं, कपिल मिश्रा ने कहा, ‘दुनिया की कोई भी शक्ति इस पुस्तक को आने से नहीं रोक सकती है और लोग इसे पढ़ना चाहते हैं। बोलने की स्वतंत्रता के ठेकेदार डरते हैं कि पुस्तक यह उजागर करेगी कि दंगों के लिए प्रशिक्षण कैसे दिया गया था और दुष्प्रचार तंत्र इसमें शामिल था।’

‘दिल्ली दंगों की जांच NIA द्वारा की जानी चाहिए’
अरोड़ा ने कहा कि दिल्ली दंगों की जांच NIA द्वारा की जानी चाहिए। उन्होंने दावा किया कि ये दंगे ‘सुनियोजित’ थे। उन्होंने कहा कि पुस्तक को 8 अध्यायों और 5 अनुलग्नकों में विभाजित किया गया है, जो दंगा प्रभावित क्षेत्रों में जमीनी अनुसंधान पर आधारित हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तक के अध्याय भारत में शहरी नक्सवाल और जिहादी थ्योरी, सीएए, शाहीन बाग और अन्य के बारे में हैं। मल्होत्रा ने कहा कि पुस्तक का उन ‘तथाकथित वामपंथी विचारकों और बुद्धिजीवियों’ द्वारा विरोध किया गया, जिन्होंने पहले ‘झूठ फैलाया’ था कि मुसलमानों के खिलाफ नागरिकता कानून था।

‘पूरी तरह से जमीनी शोध का एक परिणाम है’
चितलकर ने कहा कि पुस्तक ‘पूरी तरह से जमीनी शोध का एक परिणाम है।’ उन्होंने दावा किया, ‘हमने मुसलमानों सहित सभी से बात की। हम पक्षपाती नहीं हैं। यह किताब शहरी नक्सलियों और इस्लामिक जिहादियों के खिलाफ रूख अपनाती हैं, यह मुस्लिम विरोधी किताब नहीं है।’ गौरतलब है कि नागरिक कानून के समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प के बाद 24 फरवरी को उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा में 53 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 200 लोग घायल हुए थे।

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