चीनी थिंक टैंक के एक विश्लेषक ने रविवार को कमाल की बात कही। इन विश्लेषक ने कहा कि जिस तरह भूटान की ओर से सिक्किम सेक्टर के डोकलाम इलाके में सड़क निर्माण से चीनी सेना को भारतीय सेना ने रोका, उसी तर्क का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान के आग्रह पर कश्मीर में तीसरे देश की सेना घुस सकती है। इस 'तीसरे देश' से उनका इशारा चीन की तरफ था, यह दुनिया की राजनीति की हल्की समझ रखने वाला इंसान भी बता सकता है। लेकिन चीनी विश्लेषक की यह धमकी एक लतीफे से ज्यादा कुछ नहीं हैं, जानिए क्यों...
चीनी विश्लेषक की इस गीदड़ भभकी के गंभीर मायने निकालने की कोई जरूरत ही नहीं है। चीन तो पहले ही PoK में ‘वन बेल्ट वन रोड’ पॉलिसी के तहत चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) के जरिए दाखिल हो चुका है। यदि चीन की मंशा विवादित क्षेत्रों से दूर रहने की होती तो चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर कभी अस्तित्व में ही नहीं आया होता। चीन के इस कॉरिडोर पर भारत ने कई बार अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है, लेकिन चीन ने हर बार इसे नजरअंदाज किया है। अब चूंकि भारत ने डोकलाम इलाके में चीन की सड़क बनाने की मंशा पर पानी फेर दिया है, तो चीन अपने मीडिया और ऐसे विश्लेषकों की मदद से तरह-तरह से धमकाने की कोशिश कर रहा है।
कश्मीर में घुसी चीनी सेना तो होंगे भयंकर परिणाम
चीन भी यह बात अच्छी तरह जानता है कि यदि बात बयानों से आगे बढ़ी और उसकी सेना ने कश्मीर में दखल देने की हिम्मत की तो उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। दोनों देशों के बीच बेशक तनाव की स्थिति है और चीन ऐसी हालत में धमकियों से ही काम निकालता रहा है। ऐसे में सझा जाना चाहिए कि चीन की तरफ से ऐसे और भी बयान आते रहेंगे, लेकिन चीन द्वारा भारत पर किसी तरह की सैन्य कार्रवाई करना फिलहाल मुश्किल लगता है। चीन अच्छी तरह जानता है कि कश्मीर का मामला डोकलाम के मामले से अलग है। दूसरी बात यह है कि ये एक चीनी विश्लेषक की टिप्पणी है न कि चीनी सरकार का स्टैंड। इसलिए कश्मीर में चीनी सेना घुसने की विश्लेषक की बात को ज्यादा गंभीरता से लेना सही नहीं होगा।
ASEAN देशों से मजबूत रिश्तों पर चीन को होगी छटपटाहट
भारत और चीन की सैन्य क्षमताओं में भले ही बहुत ज्यादा अन्तर हो, लेकिन यदि भारत ASEAN के सदस्य देशों के बीच अपनी पकड़ मजबूत रखता है तो चीन के लिए भारत से पार पाना बेहद मुश्किल हो जाएगा। भारत के लिहाज से अच्छी बात यह है कि ASEAN देश भी चीन की विस्तारवादी नीति से परेशान हैं और वे भारत को इस क्षेत्र में नेतृत्वकर्ता की भूमिका में देखना चाहते हैं। हाल ही में आई कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2018 के गणतंत्र दिवस समारोह में मोदी सरकार परिपाटी तोड़ते हुए एक साथ 10 राष्ट्राध्यक्षों को बुलाने की सोच रही है। ये 10 देश ASEAN के सदस्य हैं जिनमें ब्रुनेई, कम्बोडिया, म्यांमार, फिलीपिंस, मलेशिया, सिंगापुर, थाइलैंड, इंडोनोशिया, लाओस और वियतनाम शामिल हैं। इन सभी देशों का चीन के साथ कोई न कोई विवाद है और ये सभी भारत को इस क्षेत्र की एक बड़ी ताकत के रूप में देखते हैं।
इसलिए चीनी विश्लेषक की धमकी में दम नहीं
चीनी विश्लेषक की धमकी में इसलिए भी दम नहीं है क्योंकि हाल ही में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान जब PM मोदी और शी चिनफिंग की अनौपचारिक मुलाकात हुई, तब भी दोनों देशों ने एक-दूसरे के लिए तारीफ के बोल बोले थे। चीन समय-समय पर डोकलाम को लेकर धमकियां इसलिए दे रहा है क्योंकि उसे लगता है कि धमकियों से काम बन जाएगा। लेकिन उसे अच्छी तरह पता है कि धमकियों से आगे बढ़ना उसके लिए कितना खतरनाक हो सकता है। चीन कभी नहीं चाहेगा कि उसकी आर्थिक प्रगति भारत जैसे मजबूत मुल्क के साथ युद्ध में उलझकर बर्बादी की तरफ बढ़ जाए। ऐसे में दोनों देश देर-सबेर बातचीत के जरिए ही अपने मुद्दों को हल करने की कोशिश करेंगे।
(ब्लॉग लेखक विनीत कुमार सिंह khabarindiatv.com में डेप्युटी न्यूज एडिटर हैं)