हवा में धुएं और केमिकल्स की वजह से हो रहे प्रदूषण से जुड़ी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूरे NCR में 31 अक्टूबर तक पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की टाइमिंग गलत है। इस साल दिवाली 19 अक्टूबर को पड़ रही है, और अधिकांश थोक और खुदरा पटाखा विक्रेता कारोबार के लिए तैयार बैठे थे। दुकानें सज गई थीं, हालिया हफ्तों में पटाखों की बिक्री भी तेज हो गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध ने त्योहार का मजा किरकिरा कर दिया है। बड़ी संख्या में लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर क्यों हर बार हिंदुओं के त्योहारों को ही निशाना बनाया जाता है।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन तीन बच्चों की याचिका का असर है जो अपना नाम तक ठीक से नहीं बोल सकते। दो साल पहले जिन तीन बच्चों की तरफ से पिटीशन फाइल की गई थी, उनमें से दो की उम्र छह महीने थी और एक की 14 महीने। इन बच्चों की ओर से कोर्ट से कहा गया था कि पटाखों से प्रदूषण होता है जिससे बच्चों और बुजुर्गों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। बच्चों की याचिका पर पहला फैसला 11 नवंबर 2016 को आया था, तब कोर्ट ने अपने अगले आदेश तक पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी थी। दुकानदारों के लाइसेंस सस्पेंड कर दिए गए थे। इस फैसले के खिलाफ पटाखा कारोबारी सुप्रीम कोर्ट गए, और इस साल 12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में बदलाव करते हुए कंट्रोल्ड बिक्री की इजाजत दी जिसके बाद करीब 500 कारोबारियों को लाइसेंस जारी हुए।
लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में फिर से बदलाव करते हुए कहा है कि 12 सितंबर के फैसले को 1 नवंबर से लागू किया जाएगा, यानि 31 अक्टूबर तक पटाखों की बिक्री दिल्ली-NCR में बैन रहेगी। सुप्रीम कोर्ट के बार-बार फैसला बदलने से प्रदूषण पर असर पड़े न पड़े, छोटे-छोटे व्यापारियों की दीवाली काली हो गई। दिल्ली की बात करें तो कई पटाखा कारोबारियों ने इसमें काफी पैसा लगाया था, और वे इस निर्णय से बुरी तरह प्रभावित होंगे। मेरे ख्याल से यह उनके प्रति अन्याय है। (रजत शर्मा)