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Blog: देश में कठोर क़ानून बनाना ठीक है, पर दूषित मानसिकता का क्या करोगे?

 महज़ क़ानून के डर से क्या बेटियों को सुरक्षित रखा जा सकता है? देश में कठोर क़ानून के साथ दूषित मानसिकता को भी बदलने का वक्त आ गया है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : December 05, 2019 0:01 IST
Blog: देश में कठोर क़ानून बनाना ठीक है, पर दूषित मानसिकता का क्या करोगे?
Image Source : PTI Blog: देश में कठोर क़ानून बनाना ठीक है, पर दूषित मानसिकता का क्या करोगे?

तेलंगाना में महिला पशु चिकित्सक के साथ दुष्कर्म को लेकर दूरे देश में दुःख, शोक, दर्द और अथाह गुस्सा है। सड़क पर उतरकर लोग उस बेटी को न्याय दिलाने की गुहार लगा रहे हैं, जिसके साथ समाज पर काले धब्बे के रूप में मौज़ूद कुछ दरिंदों ने पहले तो दुष्कर्म किया और फिर जलाकर उसकी जघन्य हत्या कर दी। सड़क पर उतर रहे लोगों में न सिर्फ़ उस बेटी के लिए दर्द है, बल्कि ये लोग चाहते हैं कि उन आरोपियों को जल्द से जल्द मौत की सजा मिले। लोगों की मांग है कि जल्द से जल्द इन हैवानों को सूली पर चढ़ाया जाए जिन्होंने एक नारी के अथाह दर्द और उसकी चीख़ को अनसुना करते हुए उसकी आबरू उतारी और फिर उसे मौत की नींद सुला दिया।

लोगों के ज़हन में सवाल ये भी है कि आख़िर कितनी जल्दी इन आरोपियों को कठोर सज़ा मिल पाएगी? जहां एक तरफ़ 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया रेप कांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था, वहीं दूसरी तरफ आज लोगों को लग रहा है कि कहीं निर्भया केस की तरह इस बार भी लचर क़ानून और कमजोर पड़ी न्यायिक प्रणाली के चलते इन दरिंदों को जल्द कठोर सज़ा न मिल पाए। लोगों के ज़हन में यह सवाल बार-बार इसलिए गूंज रहा है, क्योंकि निर्भया गैंगरेप केस के दोषियों को फ़ांसी दिलाने के लिए उसकी मां अभी-भी पटियाला हाउस कोर्ट के चक्कर काट रही है और फिलहाल कोर्ट ने चारों दोषियों के ख़िलाफ डेथ वारंट ज़ारी करने से इनक़ार कर दिया है।

संसद में भी गूंजा बेटी का दर्द

हैदराबाद गैंगरेप की गूंज संसद में भी सुनाई दी। हर दल के सांसदों ने कड़े शब्दों में इसकी निंदा की। संसद में इस केस को लेकर पक्ष और विपक्ष ने न सिर्फ़ चिंता ज़ाहिर बल्कि कई सदस्य बेहद आहत भी दिखे। यही वज़ह रही कि कई सदस्यों ने एक सुर में आवाज़ उठाते हुए इस बात पर अपनी सहमति रखी कि जल्द दोषियों पर कठोरतम कार्रवाई हो, जिससे देश के किसी भी राज्य में ऐसी घटनाएं दोबारा घटित ना हों। विपक्ष ने सरकार से शर्मसार करने वाली इस घटना के साथ ही मुजफ्फरनगर, कठुआ, उन्नाव की घटनाओं की भी याद दिलाई और दोषियों को तुरन्त फ़ांसी की मांग की।

समाज़वादी पार्टी से राज्यसभा सदस्य जया बच्चन ने तो यहां तक कह दिया कि दोषियों की सार्वजनिक तौर पर लिंचिंग करनी चाहिए, जिससे ऐसे अपराध करने वालों को सबक मिल सके। उन्होंने कुछ देशों में ऐसे दोषियों को जनता द्वारा सज़ा देने का हवाला दिया। सदन में हैदराबाद की घटना पर आहत दिखे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि अगर इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सदन में कठोर क़ानून बनाने पर सहमति बनेगी तो सरकार इसके लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि निर्भया कांड के बाद इसी सदन में कठोर क़ानून बना था लेकिन उसके बाद भी इस तरह के जघन्य अपराध हो रहे हैं, जो कि दुखद है। 

ज्ञात हो कि ऐसे अपराध पर लगाम लगाने के लिए क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) ऑर्डिनेंस-2018 को सरकार ने मंज़ूरी दी थी, जिसमें 12 साल से कम उम्र की मासूमों से रेप के दोषियों को मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया था। कठुआ और उत्तर प्रदेश के उन्नाव कांड के बाद सरकार ने इस क़ानून को बनाया था। देश में इस तरह के क़ानून होने के बावज़ूद अपराधियों को डर न लगना कई लिहाज से सोचने पर मज़बूर करता है। यही वजह है कि लोग अब त्वरित न्याय की बात कह रहे हैं। 

त्वरित न्याय ही आख़िरी रास्ता?

सवाल उठता है कि क्या वाकई देश में त्वरित न्याय के लिए ऐसे कठोरतम क़ानून की ज़रूरत है, जिससे ऑन द स्पॉट न्याय हो सके? कई देशों में ऐसे क़ानून बनाए गए हैं, जिसमें अपराधियों को मौत की सज़ा दी जाती है। उदाहरण के तौर पर उत्तर कोरिया में ऐसी घटना को अंज़ाम देने वाले अपराधियों को मौत की सज़ा दी जाती है और बलात्कारी को गोलियों से भून दिया जाता है। इसी कड़ी में यूएई जैसे इस्लामिक देश में ऐसा अपराध करने वालों को 7 दिन के अंदर फ़ांसी की सज़ा मिलती है।

सऊदी अरब में तो दोषियों को फ़ांसी पर लटकाने, सिर कलम करने के अलावा यौन अंग को काटने तक की सज़ा दी जाती है। यही नहीं इराक, इंडोनेशिया, पोलैंड, जैसे देशों में ऐसे अपराध के लिए कई कठोर क़ानून हैं, जिसमें अपराधियों के अंदर महिलाओं के हार्मोन्स डालने और पत्थर मारकर यातना देने का क़ानून है। पड़ोसी मुल्क चीन में आरोप साबित होने के बाद आरोपी को तुरंत फ़ांसी देने का प्रावधान है। गौर करने वाली बात है कि ऐसे सख़्त क़ानून के चलते साऊदी अरब में प्रति 1 लाख की जनसंख्या पर यौन अपराध 0.3 है।

अब सवाल उठता है कि क्या हमारे लिए भी ऐसा क़ानून आख़िरी रास्ता है? और क्या सरकार ऐसे क़ानून को बनाने के लिए विचार कर सकती है? शायद भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए फिलहाल ये मुमकिन नहीं होगा। लोकतांत्रिक मूल्यों के चलते सरकार द्वारा ऐसे क़ानून को बना पाना काफी चुनौतियों भरा होगा। आज हमारा देश लोकतांत्रिक मूल्यों और बहुसंस्कृति को समेट कर सौम्य तरीके से चलने के लिए विश्व में जाना जाता है। ऐसे में इस तरह के अपराध को लेकर समाज के प्रत्येक तबके को सोचने की आवश्यकता है क्योंकि इस तरह के अपराध न सिर्फ़ मानवता को शर्मसार करते हैं, बल्कि विश्व में हमारी अलग पहचान को पलीता भी लगाते हैं। 

ये दुखद है कि जिस नारी को हम दु्र्गा के रूप में सदियों से पूजते आ रहे हैं उस पर ऐसा आत्याचार आज भी हो रहा है। इसमें दो राय नहीं है कि यदि त्वरित क़ानून होगा तो ऐसे अपराधों में कमी आएगी। लेकिन महज़ क़ानून के डर से क्या बेटियों को सुरक्षित रखा जा सकता है? देश में कठोर क़ानून के साथ दूषित मानसिकता को भी बदलने का वक्त आ गया है। समय रहते एक कठोर कानून बनाने के साथ ही अगर दूषित सोच और घटिया मानसिकता को नहीं बदला गया तो वो समय दूर नहीं जब हमारे देश को भी हेय दृष्टि से देखा जाएगा और दुर्गा मां की पूजा पर लोग हम पर हंसेंगे।  

ब्लॉग लेखक आशीष शुक्ला इंडिया टीवी न्यूज चैनल में कार्यरत हैं

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