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Blog: अस्पताल के कर्मचारियों को अपने भीतर की मानवता को बचाए रखना चाहिए

अस्पताल में काम करने वाले हरेक कर्मचारी को हर स्तर पर ज़्यादा से ज़्यादा नैतिकता का पालन करने की कोशिश करनी चाहिए। नैतिकतापूर्ण सेवा उनका धर्म है और मरीज़ के परिजनों से हर स्तर पर संवाद करना उनका परम कर्तव्य है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated : October 05, 2019 22:49 IST
Blog: अस्पताल के कर्मचारियों को अपने भीतर की मानवता को बचाए रखना चाहिए
Blog: अस्पताल के कर्मचारियों को अपने भीतर की मानवता को बचाए रखना चाहिए

अभी कुछ दिन पहले भिवाड़ी,राजस्थान में एक बच्चों के अस्पताल जाना हुआ था। अस्पताल का नाम नहीं लिखूंगा क्योंकि मेरा मक़सद हॉस्पिटल को बदनाम करने का नहीं है। मेरा मक़सद है कि मैंने जो अस्पताल में उपचार की व्यवस्था और मरीज़ के परिजनों से अस्पताल के कर्मचारियों द्वारा किए उस व्यवहार को लिखूं, ताकि अस्पताल में काम करने वाला कोई भी शख़्स पढ़े तो ध्यान रखे कि अस्पताल में वो किसी व्यवसायी नहीं बल्कि जीवन रक्षक के रूप में काम कर रहा है। अस्पताल में काम करने वाले हरेक कर्मचारी को हर स्तर पर ज़्यादा से ज़्यादा नैतिकता का पालन करने की कोशिश करनी चाहिए। नैतिकतापूर्ण सेवा उनका धर्म है और मरीज़ के परिजनों से हर स्तर पर संवाद करना उनका परम कर्तव्य है। हर परिजन समय-समय पर यह जानना चाहता है कि जिसका इलाज वो करवा रहा है, उसकी स्थिति कैसी है। स्थिर है या सुधार हो रहा है। मरीज़ की हालात को परिजनों को समय-समय पर बताना चाहिए। 

मैंने जो देखा उसको लिखने से पहले एक बात साफ़ कर दे रहा हूँ कि बहुत सारे ऐसे हॉस्पिटल भी हैं जो मरीज़ के परिजनों को समय-समय पर मरीज़ की स्थिति बताते हैं। जिस अस्पताल के बारे में मैं यहां ज़िक्र कर रहा हूँ,उस अस्पताल में सबसे ग़लत बात जो है,वो है रिकॉर्ड मेंटेन रखने के नाम पर जांच रिपोर्ट्स को अपने क़ब्ज़े में रखना। किसी भी अस्पताल में ऐसी प्रक्रिया होनी चाहिए कि मरीज़ का परिजन जब भी चाहे, बिना किसी रोक-टोक के जांच रिपोर्ट्स को एक्सेस कर सके। रिपोर्ट को दिखाकर किसी अन्य डॉक्टर से भी सलाह ले सके। 

यहां पर मैं जिस अस्पताल की बात कर रहा हूँ, उससे जुड़ी दो बातें हैं जिसकी वज्ह से मैंने शीर्षक दिया है ‘अस्पताल के कर्मचारियों को अपने भीतर की मानवता को बचाए रखना चाहिए!’ 

जब मैं अस्पताल गया था तो सुब्ह से लेकर शाम तक वहां रहना हुआ था। इस दौरान वहां मौजूद लोगों से मैंने अलग-अलग बिन्दुओं पर बात की। बात के दरमियान एक व्यक्ति ने जिस घटना का ज़िक्र किया उसने मुझे भीतर से झकझोर दिया। व्यक्ति ने बताया कि 4 दिन से अस्पताल में इलाज करवा रहे बच्चे को एक दिन सुब्ह में ही चार बजे, जब उजाला भी नहीं हुआ था अस्पताल के कर्मचारियों ने ले जाने को कहा दिया। फिर वहां मौजूद मेरे रिश्तेदार और अन्य लोगों ने अस्पतालकर्मियों के इस व्यवहार से नाराज़गी ज़ाहिर की। फिर बाद मे क़रीब सुब्ह 6 बजे बच्चे को उसके परिजन दूसरे अस्पताल में लेकर चले गए। बाद में मैंने अपने रिश्तेदार से उस ऑटोचालक का मोबाइल नम्बर लेकर घटना के बारे में विस्तार से बात की। 

बिहार के भागलपुर के रहने वाले मनु ने मुझसे बताया कि 10 दिन के उनके लड़के की अचानक से तबीयत बिगड़ गई,जिसे बाद उन्होंने इस हस्पताल में अपने बच्चे को भर्ती कराया। भर्ती करने के बाद मनु को बताया गया कि उनके बच्चे का इलाज जिस मशीन से हो रहा है उसके प्रति दिन का चार्ज 3500 रुपये है, दवाई अलग से ख़रीद कर देना होगा। बच्चा 2 दिन में ठीक हो जाएगा। 2 दिन इलाज कराने के बाद मनु ने जब बच्चे की स्थिती के बारे में पूछा तो, अस्पताल के स्टाफ़ ने कहा कि दो दिन तक अभी कुछ नहीं कह सकते हैं और अब बच्चे दो दिन एक दूसरी मशीन पर रखनी पड़ेगी, जिसका चार्ज 5500 रूपये प्रति दिन, दवाई अलग से ख़रीदना पड़ेगा। मनु की आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब तक हुए इलाज का पैसा, मनु के साले ने दिया था। स्टाफ़ के जवाब से निराश मनु ने निश्चय किया कि वो अपने बच्चे का इलाज अब इस अस्पताल में नहीं करायेंगे। क्योकि दो दिन के इलाज के बाद भी बच्चे की हालत नहीं बता रहे हैं,तो ऐसे में कैसे अपने बच्चे को यहां छोड़ दें। 

मनु ने बताया कि वो बच्चे को दूसरे अस्पताल ले गयें, जहां दो 2 दिन इलाज होने के बाद उनका बच्चा ठीक हो गया। जिस दूसरे अस्पताल में मनु ले गए थे, वहां मशीन और दवाई का खर्चा 3500 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से लगा। 2 दिन इलाज करने के बाद अस्पताल वालों ने कुछ सावधानी बरतने की बात बताकर बच्चे को घर भेज दिया। मनु ने मुझसे कहा कि अब उनका बच्चा बिल्कुल ठीक है। 

दूसरी घटना जिसको मैंने ख़ुद देखा। एक बच्चा जन्म लिया,जिसको सांस की समस्या थी। उसको ‘शीशे’ में रखे पांच मिनट भी नहीं हुए होंगे, पैसे मांगने लगे। बच्चे के परिजन ने कहा कि अभी तो उनके पास उतने पैसे नहीं है जितने वो मांग रहें हैं। स्टाफ़ ने कहा कि पैसे जमा करने होंगे। परिजन ने किसी भी तरह से 2500 रूपये इकट्ठा कर जमा कर दिए। फिर स्टाफ़ ने कहा कि बाक़ी पैसा भी जल्दी जमा करा दो। 

ब्लॉग लेखक-आदित्य शुभम

 

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