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BLOG: दिल्ली की जनता ने हमारे रिंकिया के पापा वाले भैया को तिरस्कार के नमस्कार क्यों भेज दिए?

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आखिर ऐसा हुआ क्या की दिल्ली की जनता ने हमारे रिंकिया के पापा वाले भैया को तिरस्कार के नमस्कार भेज दिए।

Reported by: IndiaTV Hindi Desk
Updated : February 14, 2020 19:15 IST
Delhi vidhan sabha chunav 2020
Delhi vidhan sabha chunav 2020

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में एक बार फिर आम आदमी पार्टी ने बंपर जीत हासिल की है। हालांकि पिछली बार से 5 सीट जरूर कम है लेकिन फिर भी पूर्ण बहुमत से बहुत ज्यादा मिला है। भारतीय जनता पार्टी ने भी सीटों में इजाफा किया लेकिन तीन से आठ के आंकड़े तक ही पहुंच पाए। बाकी कई पार्टी ने भी चुनाव लड़ा लेकिन उनकी चर्चा न की जाए तो बेहतर होगा, क्योंकि हमारे यहां एक कहावत है, 'बाढ़ के पानी में से एक लोटा पानी निकाल लो या डाल दो कोई फर्क नहीं पड़ता', और जिस पार्टी की हम यहां बात कर रहे हैं उनके सर्वेसर्वा ने कसम खायी है की हम तो डूबेंगे सनम तुम्हे भी ले के डूबेंगे। खैर आज बात करते हैं भारतीय जनता पार्टी और आदम आदमी पार्टी की......

AAP क्यों चमकी और बीजेपी का मैजिक क्यों रहा फीका?

भारतीय जनता पार्टी में आजकल क्या चल रहा है, यह बात सब जानते हैं। मतलब पार्टी में जो भी जोर से भारत माता की जय या पाकिस्तान मुर्दाबाद बोलेगा वहीं पार्टी में आगे जाएगा। इस बात को भारतीय जनता पार्टी के बड़े-बड़े सुरमाओं ने अच्छे से समझ लिया है। तभी तो चुनाव कहीं का हो, छुटभैए नेताजी को तो छोड़िए, माननीय प्रधानमंत्री भी इसमें पीछे नहीं रहते। ऐसे उदहारण के लिए आप गूगल भी कर सकते हैं।

दिल्ली के चुनाव में शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य मुद्दें होते तो विश्वास कीजिए 6-8 महीने पहले इसी दिल्ली के नागरिक भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनाव में 7 में 7 सीट जीता के नहीं देते। अब अगर चुनाव में मुद्दा राष्ट्रीयता, देशभक्ति होता तो दिल्ली की जनता इतनी भी निर्दयी नहीं की भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में नहीं बिठाती। फिर आखिर ऐसा हुआ क्या की दिल्ली की जनता ने हमारे रिंकिया के पापा वाले भैया को तिरस्कार के नमस्कार भेज दिए। यह पता लगाने के लिए अब यहा कोई CID का दया और ACP प्रद्युमन तो हैं नहीं लेकिन यहां गुजरात का सिंघम मोटा भाई और पहाड़ के राजाजी नड्डा बाबू हैं जो कुछ न कुछ तो जरूर कर रहे होंगे। 

इसबार दिल्ली में जनता जनार्दन की नजरों में मुद्दों को सही से प्रस्तुत किया गया। दिल्ली के मफलर मैन माफ कीजिएगा मतलब माननीय मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल जी ने पिछले 2-3 सालों से अपने स्वभाभिक राजनैतिक चरित्र को छोड़कर मुद्दों की राजनीति करने लगे हैं। जो काम वो 3 साल पहले करते थे मतलब संवैधानिक पद पर बैठ के भी बाकी संवैधानिक पदों को बुरा भाला कहना, अपने ही गवर्नर के घर बैठ के धरना-प्रदर्शन करना, अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना देना वगैरा-वगैरा, वो काम अब उन्होंने एक कुशल राजनेता (क्योंकि अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम अभी भी अपने आप को कच्चा खिलाड़ी ही मानते हैं) श्री संजय सिंह जी को दे दिया है। टीम केजरीवाल ने इस चुनाव में फ्री बिजली, फ्री पानी, शिक्षा की उपलब्धि, मोहल्ला क्लिनिक (इसपर अलग से चर्चा करेंगे कभी) जैसे मुद्दों पर जोर देकर दिल्ली के जनता को वोट देने के लिए विवश कर दिया, जिस कारण उनको इतना बड़ा बहुमत मिला है।

चुनाव के दौरान हमारी भोली भाली जनता मैन ऑफ द मोमेंट, हमारे जन नेता (ये मैं नहीं भारतीय जनता पार्टी के लोग बोलते हैं), भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की तरफ आशान्वित होकर देख रही थी की अब क्या होने वाला है, कौन सी गेंद पर वो धोनी वाला सिक्सर लगाएंगे और मैच अपनी तरफ कर जायेंगे, लेकिन इस बार शायद इस जनता के लिए विधाता ने कुछ और ही सोच रखा था, क्योंकि मुद्दा निकला तो लेकिन वो गया और जा के गिर गया शाहीन बाग के आस-पास।

भारतीय जनता पार्टी के एक-दो खिलाड़ी जैसे अनुराग ठाकुर साहब और प्रवेश वर्मा साहब ने लात मार के मुद्दों को शाहीन बाग तक पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन तभी एक और खिलाड़ी जो की कुछ दिन पहले तक झाड़ू वालों के लिए सफाई अभियान में लगा हुआ था और अभी-अभी भारतीय जनता पार्टी में कमल बनने की कोशिश में लगा हुआ हैं (क्रिकेट जगत के एक महानतम खिलाड़ी के नामकरण पर अपना नाम रखे हुए जनाब), उन्होंने पाकिस्तान नाम का बम उसी मुद्दे के पास फोड़ दिया और फिर तुरंत उस बयान से पलटी भी मार दी। बीजेपी वालों को जिस मुद्दे ने कभी कई जगहों पर जीत का स्वाद चखाया था वही मुद्दा दिल्ली में उन्हें गम का दीदार करा गया।

इस चुनाव में आर्यभट के द्वारा इजाद किए गए शून्य की तरह कांग्रेस पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल पाई। हालांकि फ्री वाली चीजों को देने में वो भी पीछे नहीं थी लेकिन अपने सामने प्रियंका चोपड़ा माफी प्लीज, प्रियंका गांधी का नारा लगाने वाले दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष (हाल ही में बने और स्टोरी लिखते समय तक भूतपूर्व अध्यक्ष भी हो गए) भूल ही गए की शीला दीक्षित जी को 15 साल तक सर पर बिठाने वाली भोली जनता अब उनके फ्री में विश्वास नहीं करती।    

चेहरा क्या देखते हो?

दिल्ली की जनता बहुत समझदार है, वो एक बार में चेहरा देख के भूखे/नौकरी/खुशी/गम यहां तक की चरित्र का भी विश्लेषण कर लेती है और उसके सामने आप बिना चेहरे के जाने की जहमत कर गए। रिंकिया के पापा तो खुश थे की 48 सीट हमारी है और भावी मुख्यमंत्री भी हमको ही बनाया जाएगा और कहां अब उनके प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक जाने की बात होने लगी है। उधर झाड़ू वाले ने तो पहले ही अपने आपको दिल्ली का बड़ा बेटा मनवा लिया था और फिर जब भारत में वोटिंग की बात होती है तो बाकी चीज पीछे पहले रिश्तेदारी और बिरादरी। तो बड़े बेटे ने पहले भले ही वैकल्पिक राजनितिक की बात की हो लेकिन अभी वो भी आजकल की राजनीति ही कर रहे हैं और इसमें वो अब कच्चे खिलाड़ी तो नहीं ही हैं।

 
खैर अब जो होना था वो तो हो गया। जीतने वाले को बधाई और हारने वाले को सांत्वना। जाते-जाते किसी शायर की लिखी दो पंकितयां-

पुरानी होकर भी खास होती जा रही है,
मोहब्बत बेशर्म है जनाब, बेहिसाब होती जा रही है।                                                                       

(लेखक- अजय कुमार, ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)

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