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अगर आप पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों से परेशान है तो आप चुपचाप देशहित में तेल भरवाते रहिए। क्योंकि आजकल सारा काम देशहित में हो रहा है। आप के हंगामा, प्रदर्शन और नारेबाज़ी करने से कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला है। ऐसा सरकार की बातों और रवैये से लगभग स्पष्ट हो चुका है। जब से लोगों ने तेल की लगातार बढ़ती कीमतों पर आवाज़ उठाना शुरू किया है, तब से रोज़ केन्द्र सरकार के मंत्री अलग-अलग बात बोल रहे हैं। जनता इसी में कन्फ्यूज है कि किसकी बात पर भरोसा करें और किसकी बात पर नहीं। कोई बोल रहा है कि सरकार तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर चिन्तित है। जल्द कोई ना कोई रास्ता निकाल लिया जाएगा। लेकिन ये रास्ता कितने दिनों में निकलेगा, ये कोई नहीं बता रहा है। कोई सरकार के उस लॉन्ग टर्म सॉल्यूशन की बात कर रहा है, जो चार साल में भी नहीं निकल पाया।
पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने की वकालत करने वाले की बात को जीएसटी काउंसिल से जुड़े बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने ख़ारिज कर दिया है। उन्होंने साफ़ कर दिया है कि पेट्रोल-डीजल को अभी जीएसटी में लाने का कोई विचार नहीं है। केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और नितिन गडकरी ने तो देशहित की बात कर दी है। भला कौन ऐसा होगा जो देश की विकास में बाधक कहलाना पसंद करेगा?
रविशंकर प्रसाद ने कहा कि टैक्स के पैसे से देश में विकास का काम होता है। इसमें नया क्या है ये तो सब जानते हैं। नितिन गडकरी ने कहा है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में सब्सिडी को बढ़ावा देना सरकार की समाज कल्याण योजनाओं को प्रभावित कर सकता है। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में सब्सिडी देने के लिए हमें सिंचाई योजनाओं, गांवों तक फ़्री एलपीजी देने की उज्जवला योजना, ग्रामीण विद्युतीकरण प्रक्रिया, लोन के लिए मुद्रा योजना और अन्य कई योजनाओं को बन्द करना पड़ेगा। गडकरी ने ये भी कहा कि हम 10 करोड़ परिवारों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना पर काम कर रहे हैं। फ़सल बीमा योजना पर भी काम चल रहा है। हमारे पास सीमित पैसा है। अगर हमने पेट्रोल-डीजल पर सब्सि़डी दी तो सब गड़बड़ हो जाएगा। नितिन गडकरी के बयान से तो ये साफ़ हो रहा है कि विकास का सारा काम पेट्रोल-डीजल से मिलने वाले टैक्स से हो रहा है।
दरअसल बात ये है कि डीजल-पेट्रोल के रोज़-रोज़ बढ़ते दामों की मार झेल रही जनता के लिए तेल के खेल की प्रक्रिया पहले से ही इतनी जटिल है कि वो या तो समझ नहीं पाती है या फिर उसके पास बैठकर समझने का समय नहीं है। यदि जनता तेल के खेल को समझती तो सरकार से पूछती कि 9 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर, एक बार किस खुशी में घटाया?
अब 25 रुपये तक तेल की कीमतों को सस्ती करने वाली पार्टी कांग्रेस की बात करते हैं। जब से तेल की कीमतों में लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है, तब से विपक्षी दल बड़े-बड़े बयान दे रहे हैं। स्टूडियो में बैठकर कांग्रेस के प्रवक्ता चीख-चीख जनता से अपनी हमदर्दी दिखा रहे हैं। एंकर जब पूछता है कि अभी तक दाम कम क्यों नही किए,तो सवाल को ये कहकर टाल देते हैं कि हम ही सबसे पहले कम करेंगे। लेकिन ये नहीं बताते हैं कि अभी तक क्यों नहीं किए। हक़ीक़त ये है कि अभी जिन राज्यों में इनका शासन है वहां अबतक एक रूपया भी कम नहीं किया है और ना ही कभी इनके शासनकाल में 25 रूपये कम करने का कोई प्रमाण है।
सितम्बर 2012 में राष्ट्र को संबोधित करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने डीजल की कीमतों में वृद्धि और सब्सिडी युक्त गैस सीमित किए जाने के फ़ैसले का बचाव करते हुए कहा था कि 'पैसे पेड़ पर नहीं उगते।' 25 रूपये दाम कम करने का फ़ॉर्मूला देने वाले पूर्व वित्तमंत्री पी.चिदम्बरम,जो आग महंगाई को लेकर जनता की दुहाई देते फिर रहे हैं। उन्होंने ये कहकर जनता का मज़ाक उड़ाया था कि 'देश के लोग पन्द्रह रूपये का पानी और बीस रूपये का आइसक्रीम खरीदने के लिए तैयार हैं, लेकिन एक रूपये चावल और गेहूं का भाव बढ़ता है, तो बवाल करने लगते हैं।तब बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन ने चिदम्बरम के बयान की निन्दा करते हुए कहा था कि ''जब अमेरिका चश्मे से ग़रीबी की हक़ीक़त समझने की कोशिश की जाएगी तो ऐसी ही बातें कही जाएंगी।" क्या शाहनवाज हुसैन को आज भी ग़रीबों का इतना ख़याल रखते हैं?
चित्र में आज से पांच साल पहले भी 76 के पार पेट्रोल की कीमत थी, लेकिन उस वक़्त शायद जनता को इतना पता नहीं चलता होगा। क्योंकि उस वक़्त की सरकार आपसे तेल पर कम टैक्स लेकर,आपके किसी अन्य टैक्स के पैसे से सब्सिडी देती थी। लेकिन वर्तमान सरकार इसके उल्टा कर रही है। आपसे तेल पर ज़्यादा टैक्स लेकर सब्सिडी कम दे रही है। सब्सिडी के संदर्भ में सरकार का क्या कहना है,ऊपर बता ही दिया हूँ। तो यही है तेल में खेल।
ब्लॉग लेखक आदित्य शुभम देश के नंबर वन न्यूज चैनल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं