नई दिल्ली। दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी का आज 41वां स्थापना दिवस है। 41 साल पहले आज ही के दिन यानि 6 अप्रैल 1980 को अटल बिहारी वाजपेयी तथा लालकृष्ण आडवाणी ने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की थी। उस समय जनता पार्टी को छोड़ कई जनसंघ के सदस्यों ने मिलकर भाजपा का गठन किया और 6 अप्रैल 1980 को अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। इस गठन के बाद पार्टी ने 1984 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था और तब से लेकर अबतक भारतीय जनता पार्टी ने जो सफर तय किया है वह किसी करिश्मे से कम नहीं है।
1984 मे सिर्फ 2 सीट और 7.74% वोट
1984 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने कुल 224 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे लेकिन सिर्फ 2 लोगों को ही जीत मिल सकी। आंध्र प्रदेश की हनमकोंडा लोकसभा सीट से चंदूपतला जंगा रेड्डी और गुजरात की मेहसाणा लोकसभा सीट से एके पटेल भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा में पहले सांसद थे। 1984 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के 108 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी और देशभर में पार्टी का वोटबैंक सिर्फ 7.74 प्रतिशत दर्ज किया गया था।
1989 में 85 सांसद
1984 में भले ही लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत सिर्फ 2 सीटों पर हो पायी हो, लेकिन भाजपा राष्ट्रीय राजनीति में अपनी दस्तक दे चुकी थी और संगठन मजबूती से खड़ा हो रहा था। पार्टी ने तेजी से संगठन को मजबूत करने का काम किया और इसका फायदा पार्टी को 1989 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला। 1989 में भारतीय जनता पार्टी ने 225 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे और उसमें पार्टी के 85 सांसद जीतकर आए, हालांकि 88 लोगों की जमानत भी जप्त हुई लेकिन पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़कर 11.36 प्रतिशत तक पहुंच गया था। 1989 में भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें मध्य प्रदेश (उस समय छत्तीसगढ़ अलग नहीं था) से मिली, मध्य प्रदेश में पार्टी 27 सीटों पर जीत प्राप्त करने में कामयाब हुई, इसके अलावा राजस्थान से 13, गुजरात से 13, महाराष्ट्र से 10, यूपी और बिहार से 8-8, दिल्ली से 4 और हिमाचल प्रदेश से 3 सीटों पर जीत मिली।
1991 में 120 सांसद, अकेले यूपी में 51 सीट
1989 के लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी की मजबूत एंट्री हो चुकी थी लेकिन उस समय कांग्रेस और जनता दल के बाद भाजपा तीसरे नंबर की पार्टी थी। केंद्र में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली मिली जुली या यूं कहें कि खिचड़ी सरकार थी और वह ज्यादा समय टिक नहीं पायी जिस वजह से 1991 में फिर से चुनाव कराने पड़े। 1991 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी और मजबूती के साथ उभरी, उस समय पार्टी ने देशभर में 468 प्रत्याशी उतारे, हालांकि जीत 120 सीटों पर मिली और 185 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। लेकिन लोकसबा में भाजपा अपना संख्याबल बढ़ाने में सफल हो गई थी, 1991 के लोकसभा चुनावों में भाजपा का मत प्रतिशत भी बढ़कर 20.11 प्रतिशत हो गया था। 1991 में अकेले उत्तर प्रदेश से भाजपा को 51 सीटें मिली थीं, इसके अलावा गुजरात में भी सीटें बढ़ीं थी और कर्नाटक, असम जैसे राज्यों में पार्टी के सांसद चुने गए थे।
1996 में 161 सांसद वोट शेयर 20.29%
1991 से लेकर 1996 तक केंद्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी और 1992 में अयोध्या आंदोलन हुआ था। देशभर में भारतीय जनता पार्टी का जनाधार बढ़ने लगा था और कई राज्यों में पार्टी की सरकारें बनना शुरू हुई थी। 1996 के लोकसभा चुनाव में ऐसा पहली बार हुआ जब भारतीय जनता पार्टी को केंद्र में भी सरकार बनाने का मौका मिला, 1996 के चुनाव में भाजपा 161 सीटों के साथ सबसे बड़ा दल बनकर उभरी और देशभर में पार्टी का वोट शेयर 20.29 प्रतिशत हो गया था, सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते राष्ट्रपति ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा को सरकार बनाने का न्यौता दिया, लेकिन संसद में 13 दिन के अंदर ही अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार विश्वास मत हार गई। इसके बाद केंद्र में कांग्रेस तथा अन्य दलों के गठबंधन संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी जिसमें पहले एचडी देवेगौड़ा और फिर इंद्र कुमार गुजरात प्रधानमंत्री बने। हालांकि वह सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चल सकी और 1998 में फिर से चुनाव कराने पड़े।
1998 में 182 सांसद, क्षेत्रीय दलों से मिलाया हाथ
1998 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी समझ चुकी थी कि क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किए बिना केंद्र में सरकार बनाना संभव नहीं है। भारतीय जनता पार्टी ने 1998 के चुनाव के लिए समान विचारधारा वाले कई क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किया और 388 सीटों पर ही चुनाव लड़ा, जबकि 1996 में पार्टी ने 468 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 1998 में भाजपा 182 सीटों पर जीत प्राप्त करने में कामयाब हुई और पार्टी का वोट शेयर भी 25.59 प्रतिशत तक पहुंचा। उस समय यूपी से 57, मध्य प्रदेश से 30, बिहार से 20, गुजरात से 19, कर्नाटक से 13 और ओडिशा से 7 सीटें भाजपा को मिली थीं। केंद्र में फिर से अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार बनी, हालांकि वह सरकार भी एक साल में विश्वास मत हार गई और देश को फिर चुनाव का सामना करना पड़ा।
1999 में बनाई मजबूत सरकार
1999 एक बार फिर से 13वीं लोकसभा के लिए चुनाव हुए और उस समय भी भारतीय जनता पार्टी ने क्षेत्रीय दलों को ज्यादा सीटें दी और खुद 339 सीटों पर चुनाव लड़ा, 1999 के लोकसभा चुनावों में भी भारतीय जनता पार्टी को 182 सीटें मिलीं और पार्टी का वोट शेयर 23.75 प्रतिशत रहा। हालांकि 1999 के चुनाव से भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में ग्राफ गिरना शुरू हुआ और वहां पर समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी का ग्राफ उठा। लेकिन 1999 में क्षेत्रीय दलों के सहयोग से केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली मजबूत सरकार बन चुकी थी जो 2004 तक चली।
2004 में गिरा BJP का ग्राफ
1984 से लेकर 1999 तके के सभी लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का ग्राफ उठता ही चला गया था लेकिन पहली बार 2004 में पार्टी का ग्राफ गिरा। लोकप्रिय नेता होने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा को लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा और केंद्र में एक बार फिर से कांग्रेस का ग्राफ उठा। 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 138 सीटें ही मिल पायी थीं और पार्टी को उत्तर प्रदेश में बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। 2004 में यूपी के अंदर भाजपा सिर्फ 10 सीटें जीत पायी थी।
2009 में घटकर सिर्फ 18.80% रह गया था वोट शेयर
2009 के लोकसभा चुनाव से पहले ही अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति छोड़ने की घोषणा कर चुके थे और भाजपा ने 2009 का चुनाव लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में लड़ा। हालांकि 2009 में भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और सिर्फ 116 सीटों पर ही जीत मिल सकी। 2009 में भाजपा ने देशभर में 443 प्रत्याशी उतारे थे जिसमें 170 की जमानत जब्त हो गई थी और देश में भाजपा का मत प्रतिशत भी घटकर 18.80 प्रतिशत रह गया था। 2009 में कांग्रेस एक बार फिर 200 से ज्यादा सीट जीतने में कामयाब हुई थी और मनमोहन सिंह लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे।
2014 से मोदी युग की शुरुआत
लेकिन 2009 के बाद भारतीय जनता पार्टी में मोदी युग की शुरुआत होती है और 2013 में पार्टी नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कर देती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का करिश्मा देशभर में देखने को मिलता है और 428 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा को 282 सीटों पर जीत प्राप्त होती है। 1984 के बाद देश में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी एक दल को लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ हो। 2014 में भाजपा को वोट शेयर भी बढ़कर 31.34 प्रतिशत तक पहुंच गया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर इतनी प्रचंड थी कि कांग्रेस पार्टी पहली बार दहाई के आंकड़े में खिसक गई, कांग्रेस को 2014 में सिर्फ 44 सीटों पर जीत मिली थी जबकि उसने 464 सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए थे। 2014 में कांग्रेस पार्टी के 178 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।
2019 में 303 सीट और 37.76% वोट
मोदी लहर सिर्फ 2014 तक ही सीमित नहीं थी बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर और भी ताकतवर हो चुकी थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 303 सीटों पर जीत प्राप्त की है, पार्टी ने 436 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। 2019 में भारतीय जनता पार्टी का वोट शेयर भी रिकॉर्ड 37.76 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। जबकि कांग्रेस की बात करें तो 2019 के लोकसभा चुनावों में भी उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा है और सिर्फ 52 सीटो पर ही जीत मिल सकी है। 2019 में कांग्रेस का वोट शेयर 19.7 प्रतिशत दर्ज किया गया है।
यह एक संयोग ही है कि 1984 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सिर्फ 2 सीटों पर जीत प्राप्त कर पायी थी और उस चुनाव में कांग्रेस पार्टी के सिर्फ 2 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी। मौजूदा हालात ऐसे हो गए हैं कि देशभर में अधिकतर सीटों पर भाजपा के विरोधियों की जमानत जब्त होती है।