मुजफ्फरपुर (बिहार): मुजफ्फरपुर आश्रय गृह को 2013 और 2018 के बीच धनराशि जारी करने के मामले में एक अदालत ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कई वरिष्ठ नौकरशाहों की भूमिका की जांच करने के सीबीआई को शनिवार को निर्देश दिये। विशेष पोक्सो न्यायाधीश मनोज कुमार ने शनिवार को पांच अधिकारियों के खिलाफ आदेश पारित किया। न्यायाधीश ने कुमार और दो अन्य वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ शुक्रवार को ऐसा ही आदेश दिया था। मुजफ्फरपुर आश्रय गृह यौन शोषण मामले में एक आरोपी अश्विनी कुमार ने अपने वकील सुधीर कुमार ओझा के माध्यम से याचिका दायर की थी।
ओझा के अनुसार अदालत ने कुमार, समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद और मुजफ्फरपुर के पूर्व जिला मजिस्ट्रेट धर्मेन्द्र कुमार के खिलाफ शुक्रवार को अपना आदेश दिया था। पूरक याचिका पर शनिवार को आदेश पारित किया गया। इस याचिका में समाज कल्याण विभाग के पूर्व प्रधान सचिवों एस एम राजू, वंदना किनी और अरविंद चौधरी, पूर्व निदेशकों मोहम्मद इमामुद्दीन और सुनील कुमार के अलावा पूर्व सहायक निदेशक देवेश कुमार के नाम थे। याचिका में अश्विनी ने आरोप लगाया है कि सीबीआई उन तथ्यों को दबा रही है जो आश्रय गृह में जारी धनराशि को देखते हुए उनकी याचिका में नामित लोगों की भूमिका की जांच में सामने आए थे।
रिपोर्ट के आधार पर प्राथमिकी दर्ज किये जाने के बाद आश्रय गृह को सील किया गया था और राज्य पोषित इकाई चलाने वाले एनजीओ का पंजीकरण रद्द कर दिया गया था। उसके मालिक एवं प्रमुख आरोपी ब्रजेश ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया था जो इस समय अपने करीबी सहयोगियों तथा कुछ सरकारी अधिकारियों के साथ पटियाला की जेल में बंद है। इस मामले को पिछले वर्ष जुलाई में सीबीआई को सौंपा गया था।
सीबीआई सूत्रों ने बताया कि इस बहुचर्चित मामले में मुकदमा सात फरवरी को दिल्ली के साकेत स्थित विशेष पोक्सो (बाल यौन शोषण रोकथाम अधिनियम) अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था, जहां सुनवाई अगले सप्ताह से शुरू होने की संभावना है।