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ममता बनर्जी ने प्रणब मुखर्जी के निधन पर जताया शोक, कहा- उनके जाने से एक युग की समाप्ति हुई

पश्चिम बंगाल की मख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रणब मुखर्जी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा, ''मैं इसे गहरे दुख के साथ लिख रही हूं। भारत रत्न प्रणब मुखर्जी ने हमें छोड़ दिया है। उनके जाने से एक युग की समाप्ति हुई है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: August 31, 2020 19:05 IST
Bharat Ratna Pranab Mukherjee has left us, an era has ended: Mamata Banerjee- India TV Hindi
Image Source : PTI Bharat Ratna Pranab Mukherjee has left us, an era has ended: Mamata Banerjee

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की मख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रणब मुखर्जी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा, ''मैं इसे गहरे दुख के साथ लिख रही हूं। भारत रत्न प्रणब मुखर्जी ने हमें छोड़ दिया है। उनके जाने से एक युग की समाप्ति हुई है। सांसद के रूप में मेरी पहली जीत के समय, मेरे वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगी होने के नाते, उनके राष्ट्रपति और मेरे सीएम रहते हुए वह दशकों तक एक पिता के रूप में थे''। ममता ने कहा, ''उनके साथ बहुत सारी यादें रही है। प्रणब दा के बिना दिल्ली आना अकल्पनीय है। वह राजनीति से लेकर अर्थशास्त्र तक सभी विषयों में महान थे। हम सदा उनके कृतज्ञ रहेंगे। उन्हें बहुत याद करेंगे। अभिजीत और शर्मिष्ठा को मेरी संवेदना''।

प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस का संकटमोचक कहा जाता था, 11 दिसंबर, 1935 को प्रणब मुखर्जी का जन्म मिराती, पश्चिम बंगाल में हुआ था। प्रणब मुखर्जी के पिता का नाम कामदा किंकर मुखर्जी और माता का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी है। प्रणब मुखर्जी की पत्नी का नाम सुरवा मुखर्जी है। इनका विवाह सन 1957 में हुआ था। इनके 3 बच्चे अभिजित (बेटा), शर्मिष्ठ (बेटी) और इन्द्रजीत (बेटा) है। अपने करियर की शुरुवात प्रणब मुखर्जीजी ने पोस्ट एंड टेलेग्राफ़ ऑफिस से की थी जहां वे एक क्लर्क थे। सन 1963 में विद्यानगर कॉलेज में वे राजनीती शास्त्र के प्रोफेसर बन गए और साथ ही साथ देशेर डाक में पत्रकार के रूप में कार्य करने लगे।

प्रणब मुखर्जी ने राजनीतिक सफर की शुरुवात 1969 में की, वे कांग्रेस का टिकट प्राप्त कर राज्यसभा के सदस्य बने। थोड़े ही समय में इंदिरा जी के चहेते बन गए थे, सन 1973 में इंदिरा जी के कार्यकाल के दौरान वे औद्योगिक विकास मंत्रालय में उप-मंत्री बन गए। सन 1975-77 में आपातकालीन स्थिति के दौरान प्रणब मुखर्जी पर बहुत से आरोप भी लगाये गए, लेकिन इंदिरा जी की सत्ता आने के बाद उन्हें क्लीन चिट मिल गई।

वर्ष 2012 से 2018 तक प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति पद की गरिमा बनाये हुए थे। प्रणब जी भारत के राष्ट्रपति बनने से पहले मनमोहन सिंह की सरकार में वित्त मंत्री बने थे। प्रणब जी भारत के आर्थिक मामलों, संसदीय कार्य, बुनियादी सुविधाएं व सुरक्षा समिति में वरिष्ठ नेता रहे हैं। 

प्रणब मुखर्जी प्रोफेसर भी रहे, उन्होंने 1963 में पश्चिम बंगाल के विद्यानगर कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस छात्रों को पढ़ाया था। प्रणब मुखर्जी ने स्थानीय बंगाली समाचार पत्र देशर डाक में बतौर पत्रकार भी काम किया था। शायद कम लोग ही जानते हैं कि राजनीती में प्रणब मुखर्जी को इंदिरा गांधी लेकर आई थीं और उन्होंने ही राज्यसभा का सदस्य बनने में प्रणब का मार्गदर्शन किया था।  

प्रणब मुखर्जी अपनी तरह के एकलौते वित्तमंत्री हुए थे जिन्होंने सात बार बजट पेश किया था, इसके लिए उन्हें 1984 में यूरोमनी मैग्जीन द्वारा दुनिया का सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री भी घोषित किया गया था। प्रणब मुखर्जी देश के उन राष्ट्रपतियों में से एक थे, जिन्होंने कई दया याचिकाएं खारिज की थीं। प्रणब ने 7 दया याचिकाओं को खारिज किया था। जिनमें अफजल गुरु और अजमल कसाब की भी दया याचिका शामिल थी।

इतना ही नहीं, प्रणब का बच्चों, छात्रों और जिज्ञासु युवाओं के प्रति खासा झुकाव था। उन्होंने इसका एक सबूत साल 2015 में दिया था जब शिक्षक दिवस के मौके पर 5 सितंबर को स्कूल के बच्चों को उन्होंने राजनीति शास्त्र पढ़ाकर इतिहास बनाया था। एक समय ऐसा भी आया था जब प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी, इंदिरा गांधी के निधन के बाद प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी। प्रणब ने तब कांग्रेस छोड़ कर अपनी राजनीतिक पार्टी 'राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी' बनाई थी।

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