नयी दिल्ली: नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर किसान संगठनों के ‘भारत बंद’ का ज्यादा असर देखने को नही मिला। भारत बंद को 22 विपक्षी दलों ने अपना समर्थन दिया था। विपक्षी दलों ने भारत बंद को सफल बनाने के लिए पूरी ताकत भी झोंकी थी। कांग्रेस, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, लेफ्ट सहित तमाम दलों के नेता कार्यकर्ता बाजार बंद कराने निकले लेकिन देशभर के अलग-अलग राज्यों, शहरों से जो तस्वीरें सामने आई उन्हें देखने पर लगा कि विपक्षी दलों के भारत बंद की अपील का आम लोगों पर कोई असर नहीं दिखा।
भारत बंद की कॉल का ज्यादा असर क्यों नहीं हुआ? पहली बात तो ये कि इस बंद की कॉल तो किसान संगठनों ने दी थी पर इसमें राजनैतिक दल घुस गए। किसानों से तो लोगों की सहानुभूति है पर बंद कराने सड़कों पर उतरे कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं को लोग स्वार्थी मानते हैं। लोगों को साफ लगा कि नेता अपने फायदे के लिए बंद करवा रहे हैं। और किसानों के आंदोलन को उन्होंने हाइजैक कर लिया है। आपने देखा होगा जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं वहां कांग्रेस ने और जहां दूसरे विरोधी दलों की सरकारें हैं वहां उन्होंने भी अपनी-अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की फौज मैदान में उतार दी। कई जगह दुकानदारों ने साफ कहा कि हम बंद का सपोर्ट नहीं करते है। लोगों को पहले ही लॉकडाउन और कोरोना के चलते कई दिन दुकानें बंद रखनी पड़ी थी। उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा था। ऐसे में अब वो और नुकसान नहीं उठाना चाहते। इसलिए वो भारत बंद के साथ नहीं हैं।
किसानों की देशव्यापी बंद की कॉल का असर नहीं हुआ यह तो पूरा देश ने देखा। लेकिन पूरा देश देख रहा है कि पंजाब के किसान भाई सर्दी में दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे हैं। दिल्ली के बॉर्डर्स को बंद किया गया है। किसानों के प्रति आम लोगों में हमदर्दी है। लोग चाहते हैं कि सरकार किसानों से बात करे। किसानों की बात सुनें, लोग चाहते हैं कि किसानों की मुश्किलें दूर हो, उनकी आशंकाओं को खत्म किया जाए। इसके बाद भी लोगों ने किसानों की बंद की कॉल को सपोर्ट क्यों नहीं किया ये वाकई में हैरानी की बात है। असल में एक बात साफ हुई कि लोग किसानों के समर्थन में हैं। अन्नदाता के प्रति लोगों के मन में सम्मान है। किसानों की बंद की कॉल को लोग सपोर्ट भी करते बंद भी करते लेकिन जैसे ही इसमें सियासत घुसी, जैसे ही इसमें राजनीतिक पार्टियां कूदीं, जैसे ही नेताओं ने फायदे के लिए बयानवाजी शुरू की, वैसे ही आम लोगों के जो सेंटीमेंट किसानों के साथ जुड़े थे वो टूट गए।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल कल किसानों के बीच सेवादार बनकर पहुंचे थे लेकिन आज केजरीवाल की पार्टी के नेताओ ने ये बात फैला दी कि केजरीवाल को सरकार ने नजरबंद कर दिया है। भारत बंद को नाकाम करने के लिए दिल्ली पुलिस ने केजरीवाल को हाउस अरेस्ट कर दिया है। आम आदमी पार्टी के नेताओं ने दावा किया कि बीजेपी के इशारे पर दिल्ली पुलिस ने केजरीवाल को नजरबंद किया है और उन्हें घर से बाहर नहीं आने दे रही है।
इस दावे पर दिल्ली में सियासी हंगामा शुरू हो गया। आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता चीफ मिनिस्टर हाउस के सामने पहुंचने लगे। बाद में डिप्टी चीफ मिनिस्टर मनीष सिसोदिया भी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ केजरीवाल के घर के बाहर पहुंच गए। पुलिस तैनात थी, पुलिस अफसरों ने कहा कि केजरीवाल न हाउस अरेस्ट हैं न उन्हें नजरबंद किया गया है लेकिन तीन सौ चार सौ लोगों को एक साथ तो मुख्यमंत्री के घर में जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। ग्रुप्स में लोग जा सकते हैं लेकिन मनीष सिसोदिया सभी लोगों को लेकर केजरीवाल के घर में जाने की जिद पर अड़ गए और जब इसकी परमीशन नहीं मिली तो पार्टी के विधायकों और दो सासंदों के साथ वहीं धरने पर बैठ गए।
जो किसान खेतों में काम कर रहे हैं उन्हें आंदोलन में शामिल होने की फुर्सत नहीं है चूंकि खेती का वक्त है। इसके बाद भी अगर हजारों किसान खेती बाड़ी छोड़कर दिल्ली आए हैं, 13 दिन से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं तो उनकी बात सुनी जानी चाहिए और गंभीरता से सुनी जानी चाहिए क्योंकि देश के अन्नदाता को अनसुना नहीं किया जा सकता। अच्छी बात ये है कि सरकार किसानों से पांच राउंड की बात कर चुकी है। सरकार, किसानों की आंशकाएं दूर करने को तैयार है। कानून में संशोधन को भी तैयार है। अब बुधवार को छठे राउंड की बातचीत होनी है। ऐसे में अब यह देखना होगा की इसमें कोई हल निकलेगा या नहीं।