शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने मादक पदार्थ संबंधी आरोप के तहत संभावित गिरफ्तारी का सामना कर रही 7 महीने की एक गर्भवती महिला को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि गर्भवती महिलाओं को जेल की नहीं जमानत की जरूरत है। जस्टिस अनूप चिटकारा ने शनिवार को अपने आदेश में अग्रिम जमानत की हिमायत की और जेल में प्रसव की दिक्कतों से बचाने के लिए महिला की सजा निलंबित कर दी। अदालत ने कहा कि गर्भवती महिलाओं को जेल की नहीं, जमानत की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अदालतों को महिलाओं की मातृत्व की गरिमा का सम्मान करना चाहिए।
वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए मामले की सुनवाई करते हुए जज ने सवाल किया, ‘कारावास को स्थगित न करने से राज्य और समाज को क्या फर्क पड़ेगा? सजा की तामील के लिए इतनी जल्दबाजी क्या है? अगर जेल की सजा टल गई तो आसमान नहीं गिर जाएगा। यहां तक कि अत्यधिक गंभीर अपराध और आरोप बेहद गंभीर होने की स्थिति में भी वे अस्थायी जमानत या सजा के निलंबन की पात्र हैं, जिसे प्रसव के एक साल बाद तक बढ़ाया जा सकता है।’ एकल न्यायाधीश की पीठ ने 16 पन्ने के अपने फैसले में कहा कि जेल में जन्म से बच्चे से उसके जन्म स्थान के बारे में पूछे जाने पर उसके मन मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ सकता है।
याचिकाकर्ता मोनिका पर आरोप है कि उसने अपने पति के साथ साजिश रची थी, जिसके घर से पुलिस ने 259 ग्राम डायसेटाइलमॉर्फिन (हेरोइन) और 713 ग्राम ट्रामाडोल युक्त गोलियां बरामद की थीं। उसने पहले कांगड़ा के स्पेशल जज के समक्ष जमानत याचिका दायर की थी लेकिन 19 जनवरी को उसकी अर्जी खारिज कर दी गई थी। इससे पहले हाई कोर्ट ने 23 फरवरी को उसकी अंतरिम जमानत मंजूर की थी। याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील राजीव शर्मा ने सुनवाई के दौरान अदालत को बताया कि वह (मोनिका) गर्भावस्था के 7वें महीने में है और कुछ चिकित्सकीय जटिलताओं का सामना कर रही है।
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि उसकी शादी करीब एक दशक पहले हुई थी और उसकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है। हालांकि, उसके पति का एक आपराधिक इतिहास रहा है।